चार दिवसीय प्रशिक्षण में किशोरावस्था स्वास्थ्य शिक्षा पर शिक्षकों को किया जा रहा है प्रशिक्षित, बनेंगे “आरोग्य दूत”

सीतामढ़ी। जिले के रून्नीसैदपुर प्रखंड अंतर्गत उत्क्रमित उच्च विद्यालय थुम्मा में विद्यालय स्वास्थ्य एवं आरोग्य कार्यक्रम के तहत कक्षा 6 से 12 तक के शिक्षकों का चार दिवसीय गैर आवासीय प्रशिक्षण जारी है। यह प्रशिक्षण निदेशक, राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT), महेन्दु पटना के निर्देशानुसार संचालित किया जा रहा है। प्रशिक्षण का समन्वय डायट डुमरा, सीतामढ़ी के व्याख्याता मनोज कुमार के नेतृत्व में किया जा रहा है।
इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य किशोरावस्था में विद्यार्थियों के मानसिक, शारीरिक एवं सामाजिक विकास को लेकर शिक्षकों को प्रशिक्षित करना है ताकि वे विद्यालय स्तर पर बेहतर मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान कर सकें। किशोरावस्था जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण व संवेदनशील चरण होता है, जिसमें बच्चों में हार्मोनल परिवर्तन, मानसिक उतार-चढ़ाव तथा सामाजिक दबाव जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। ऐसे में शिक्षक एक सशक्त मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकते हैं।
प्रशिक्षण में प्रशिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। राजेश लाल कर्ण, सुजीत कुमार झा, अभिषेक वर्मा, निकीता शर्मा और विनित कुमार सहित कुल 30 कुशल प्रशिक्षकों की टीम द्वारा यह प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण में सीतामढ़ी जिले के लगभग 256 शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भाग लिया, जिनमें अंजू कुमारी, रीता झा, अर्चना, ज्योति प्रभा, रानी कुमारी, रिंकी कुमारी, संगीता कुमारी और राखी कुमारी प्रमुख रूप से शामिल रहीं।
चार दिवसीय इस प्रशिक्षण के दौरान शिक्षकों को ‘स्कूल स्वास्थ्य एवं आरोग्य कार्यक्रम’ के तहत कई महत्वपूर्ण विषयों पर जानकारी दी जा रही है, जिनमें पोषण, व्यक्तिगत स्वच्छता, मानसिक स्वास्थ्य, नशा मुक्ति, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य, बाल सुरक्षा और जीवन कौशल जैसे पहलु शामिल हैं। इन विषयों पर आधारित गतिविधियों और संवाद के माध्यम से शिक्षकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वे भविष्य में विद्यार्थियों को इन मुद्दों पर जागरूक कर सकें।
प्रशिक्षण में यह विशेष रूप से बताया गया कि किशोरावस्था में बच्चों को सही मार्गदर्शन, सहयोग एवं समझ की आवश्यकता होती है। शिक्षकों को यह सीख दी जा रही है कि वे न केवल एक विषय विशेषज्ञ बनें, बल्कि एक संवेदनशील मार्गदर्शक के रूप में विद्यार्थियों के साथ संवाद स्थापित करें और उनके मनोवैज्ञानिक पक्ष को भी समझें।
प्रशिक्षण के पूर्ण होने के उपरांत सभी प्रतिभागी शिक्षकों को “आरोग्य दूत” की उपाधि प्रदान की जाएगी। यह उपाधि उन्हें अपने-अपने विद्यालयों में किशोर स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम को प्रभावी रूप से लागू करने और विद्यार्थियों के समग्र विकास में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु दी जाएगी।
विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने इस पूरे कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि ऐसी पहल से विद्यालय स्तर पर किशोरों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और वे मानसिक एवं शारीरिक रूप से अधिक सशक्त और संतुलित जीवन की ओर अग्रसर होंगे।