लेखिका – अंजू कुमारी, शिक्षिका, राजकीय मध्य विद्यालय गंगवारा, रून्नीसैदपुर
पटना। नवरात्रि भारतीय संस्कृति और परंपरा का वह पर्व है, जो शक्ति की आराधना और स्त्रीत्व के सम्मान का प्रतीक है। नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि नारी शक्ति ही सृजन, संरक्षण और परिवर्तन की धुरी है। जिस प्रकार माँ दुर्गा ने अपने साहस और अदम्य शक्ति से असुरों का संहार कर धर्म की रक्षा की, उसी प्रकार आज की नारी भी समाज में नई राहें बनाते हुए चुनौतियों का सामना कर रही है।
नवरात्र का सांस्कृतिक महत्व
नवरात्रि का पर्व भारत की विविध सांस्कृतिक परंपराओं को एक सूत्र में पिरोता है। ग्रामीण अंचलों से लेकर शहरी जीवन तक, हर जगह भक्ति, उत्साह और उमंग का माहौल होता है। माता के जयकारों से वातावरण गूँज उठता है, घर-घर में दीप प्रज्वलित होते हैं और मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यह पर्व केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्म-शुद्धि, आत्म-नियंत्रण और समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने का संदेश भी देता है।
नवरात्र और नारी शक्ति का प्रतीकवाद
नवरात्र में पूजी जाने वाली माँ दुर्गा केवल एक देवी नहीं, बल्कि नारी शक्ति का प्रत्यक्ष स्वरूप हैं। माँ शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक उनके नौ रूप नारी जीवन के विभिन्न आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं – धैर्य, ज्ञान, वीरता, करुणा, तपस्या और नेतृत्व। यह हमें सिखाता है कि एक नारी केवल परिवार की देखभाल तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने की क्षमता भी रखती है।
महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता
आज के समय में महिला सशक्तिकरण केवल एक नारा नहीं, बल्कि सामाजिक विकास की अनिवार्यता है। जब तक महिलाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और निर्णय लेने की प्रक्रिया में बराबरी की भागीदारी नहीं निभाएंगी, तब तक समाज पूर्ण प्रगति की ओर नहीं बढ़ सकता। गाँव से लेकर शहर तक, महिलाएँ धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रही हैं, लेकिन अभी भी कई बाधाएँ मौजूद हैं – बाल विवाह, दहेज प्रथा, अशिक्षा, घरेलू हिंसा और असमान अवसर। इन चुनौतियों को समाप्त करना हम सभी का दायित्व है।
शिक्षा और आत्मनिर्भरता की शक्ति
महिला सशक्तिकरण की नींव शिक्षा से ही रखी जा सकती है। एक पढ़ी-लिखी महिला न केवल अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती है, बल्कि पूरे परिवार और समाज को भी जागरूक करती है। शिक्षा आत्मविश्वास बढ़ाती है और महिलाओं को रोजगार तथा आत्मनिर्भरता के अवसर प्रदान करती है। यही कारण है कि आज बेटियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है।
नवरात्र से सीख : आत्मविश्वास और संघर्ष की प्रेरणा
नवरात्र हमें यह संदेश देता है कि कठिनाइयाँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास से उनका समाधान संभव है। जैसे माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर अधर्म पर धर्म की विजय दिलाई, वैसे ही आधुनिक युग की महिलाएँ भी सामाजिक बुराइयों और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाकर परिवर्तन की राह खोल रही हैं। आज महिलाएँ राजनीति, विज्ञान, शिक्षा, खेल और कला हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं।
समाज में सकारात्मक बदलाव की पहल
महिला सशक्तिकरण केवल सरकार या नीतियों के भरोसे संभव नहीं है। इसके लिए समाज की सोच में बदलाव आवश्यक है। परिवार से शुरुआत करनी होगी – बेटों और बेटियों के बीच भेदभाव समाप्त करना होगा। बेटियों को भी वही अवसर मिलने चाहिए, जो बेटों को मिलते हैं। यदि घर का माहौल सकारात्मक होगा, तो समाज और राष्ट्र दोनों मजबूत होंगे।
नवरात्र और नई चेतना
नवरात्र का पर्व हमें यह भी सिखाता है कि नारी केवल पूजनीय नहीं, बल्कि सहभागी भी है। उसे पूजा के स्थान पर अधिकार और सम्मान भी मिलना चाहिए। शक्ति की आराधना तभी सार्थक होगी जब हम समाज में हर बेटी और महिला को समान अवसर, सुरक्षा और स्वतंत्रता दें।
नवरात्र केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का प्रतीक भी है। माँ दुर्गा के स्वरूप हमें याद दिलाते हैं कि हर महिला में अपार शक्ति छिपी है, जिसे पहचानने और संवारने की जरूरत है। शिक्षा, समान अवसर और सम्मान देकर ही हम महिलाओं को वास्तविक अर्थों में सशक्त बना सकते हैं। जब महिलाएँ आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनेंगी, तभी समाज और राष्ट्र उन्नति की नई ऊँचाइयों को छुएगा।
नवरात्र की आराधना करते हुए आइए हम सब संकल्प लें कि नारी का सम्मान करेंगे, उसकी प्रतिभा को प्रोत्साहित करेंगे और उसे उसके अधिकार दिलाने में सहयोगी बनेंगे। यही नवरात्र का वास्तविक संदेश और यही महिला सशक्तिकरण का सच्चा मार्ग है।