— शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रेरक पहल, बच्चों और शिक्षकों के बीच बढ़ी आत्मीयता
दरभंगा। सरकारी विद्यालयों की छवि को सकारात्मक दिशा देने वाली प्रेरणादायक खबर प्रथमिक विद्यालय शिवनगर पश्चिमी टोला से सामने आई है। यहाँ के शिक्षक अरविंद कुमार नायक, जिन्हें लोग “वायरल गुरु” के नाम से पहचानते हैं, ने एक सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विद्यालय के बच्चों के साथ बैठकर मिड-डे-मील (मध्याह्न भोजन) किया और उसकी गुणवत्ता की स्वयं जांच की।
शिक्षा विभाग द्वारा मिड-डे-मील की पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु बिहार के मुख्य सचिव द्वारा हाल ही में जारी आदेश के तहत यह पहल की गई है। आदेश में सभी शिक्षकों से आग्रह किया गया है कि वे बच्चों के साथ एक पंक्ति में बैठकर दोपहर का भोजन करें, ताकि बच्चों के भोजन की पौष्टिकता, स्वच्छता और स्वाद का सीधा आकलन किया जा सके।
इसी कड़ी में शिक्षक अरविंद नायक ने गुरुवार को विद्यालय में बच्चों के साथ बैठकर मिड-डे-मील खाया। उन्होंने बच्चों से भोजन की गुणवत्ता, स्वाद और संतुष्टि के बारे में बातचीत की। बच्चों ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि “गुरुजी हमारे साथ खा रहे हैं, इससे हमें बहुत अच्छा लग रहा है।” बच्चों के चेहरों पर मुस्कान और आत्मीयता झलक रही थी।
शिक्षक नायक का कहना है कि — “जब शिक्षक बच्चों के साथ भोजन करते हैं, तो न सिर्फ गुणवत्ता की जांच होती है, बल्कि यह कदम बच्चों में समानता, आत्मविश्वास और अपनापन की भावना भी जगाता है। बच्चों को लगता है कि उनके शिक्षक भी उनके अपने हैं, जो उनकी परवाह करते हैं।”
विद्यालय में उपस्थित अन्य शिक्षकों और रसोइयों ने भी इस पहल की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि बच्चों के साथ भोजन करने से साफ-सफाई पर अधिक ध्यान दिया जाता है, और रसोई में अनुशासन बढ़ता है। इस पहल से शिक्षकों को बच्चों की वास्तविक समस्याओं — जैसे भोजन की मात्रा, स्वाद, और पाचन से जुड़ी बातें — करीब से समझने का अवसर मिलता है।
मुख्य सचिव के निर्देश के बाद राज्य भर में यह मुहिम तेजी से आगे बढ़ रही है। कई जिलों में अधिकारी और शिक्षक बच्चों के साथ भोजन कर मिड-डे-मील की स्थिति का जायजा ले रहे हैं। यह न केवल एक प्रशासनिक आदेश का पालन है, बल्कि बच्चों के समग्र विकास और स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता का प्रतीक भी है।
अरविंद नायक की इस पहल को क्षेत्र में अत्यंत सराहना मिल रही है। ग्रामीणों और अभिभावकों का कहना है कि जब शिक्षक स्वयं बच्चों के साथ भोजन करते हैं, तो उन्हें भरोसा होता है कि उनके बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और स्वच्छ भोजन मिल रहा है। इससे शिक्षा प्रणाली में लोगों का विश्वास भी बढ़ता है।
यह छोटी सी पहल सरकारी विद्यालयों की छवि सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। मिड-डे-मील जैसी योजनाएँ तभी प्रभावी बन सकती हैं, जब उनमें पारदर्शिता और जिम्मेदारी का भाव हो। “वायरल गुरु” अरविंद नायक ने न केवल इस दिशा में उदाहरण पेश किया है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि शिक्षक यदि पहल करें, तो सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
निष्कर्षतः, बच्चों के साथ बैठकर भोजन करने का यह छोटा-सा प्रयास शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों क्षेत्रों में बड़ा प्रभाव डाल सकता है। इससे बच्चों में समानता, अनुशासन, और आत्मीयता की भावना विकसित होती है — और शिक्षकों में जवाबदेही और सेवा भावना का विस्तार होता है।