शिक्षक का चरित्र समाज का दर्पण : शिक्षा जगत की गरिमा बचाना हम सबकी जिम्मेदारी

लेखक : सीमा पटेल, प्रस्तुति : अंजू अन्नु
डुमरांव। शिक्षा को सदा से समाज का आधार स्तंभ माना गया है। विद्यालय केवल पढ़ाई का स्थान नहीं बल्कि संस्कार, नैतिकता और मानवता के बीज बोने का केंद्र होता है। शिक्षक ही वह व्यक्तित्व है, जिससे समाज और विद्यार्थी अपने आचरण व व्यवहार की दिशा तय करते हैं। ऐसे में यदि कोई शिक्षक अपने पद, मर्यादा और गुरु-धर्म को भूलकर अपनी सहकर्मी शिक्षिका पर गलत दृष्टि डालता है, तो यह केवल व्यक्तिगत चरित्र का पतन नहीं बल्कि संपूर्ण शिक्षा-जगत की गरिमा को आहत करने वाली घटना होती है।
शिक्षा का मंदिर और शिक्षक की भूमिका
विद्यालय को ‘शिक्षा का मंदिर’ कहा जाता है। यहाँ कार्यरत प्रत्येक शिक्षक और शिक्षिका से समाज उच्च नैतिक मूल्यों और आदर्श आचरण की अपेक्षा करता है। शिक्षक केवल ज्ञान देने वाला नहीं बल्कि समाज को संस्कारित करने वाला मार्गदर्शक होता है। यदि वह स्वयं मर्यादाहीन आचरण करे तो विद्यार्थियों और समाज पर उसका दुष्प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
चरित्र पतन से समाज को आघात
शिक्षक जब अपने कर्तव्य और मर्यादा को भूलकर अनुचित व्यवहार करता है, तो यह शिक्षा-जगत के सम्मान को ठेस पहुँचाता है। ऐसे आचरण से न केवल सहकर्मी का अपमान होता है, बल्कि पूरे समाज में गलत संदेश जाता है। यह परिस्थिति इस सोच को जन्म देती है कि आज समाज को केवल विद्वान नहीं, बल्कि संस्कारवान और उच्च नैतिक मूल्यों वाले शिक्षकों की आवश्यकता है।
नारी का सम्मान : संस्कृति की पहचान
भारतीय संस्कृति सदा से नारी सम्मान की शिक्षा देती आई है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ शास्त्रों में वर्णित है। ऐसे में यदि शिक्षक ही नारी का अपमान करे, तो यह समाज पर कलंक है। नारी के सम्मान से ही संस्कृति की पहचान होती है, और उसका अपमान सभ्यता और संस्कार के ह्रास का प्रतीक है।
शिक्षा-जगत को स्वच्छ बनाए रखने की जिम्मेदारी
शिक्षक का सम्मान तभी संभव है जब वह स्वयं अपने चरित्र से प्रेरणा देने योग्य बने। यदि शिक्षक अपनी मर्यादा का पालन करेगा, तभी शिक्षा-जगत की पवित्रता और गरिमा बनी रह सकेगी। यह हम सभी का दायित्व है कि शिक्षा के इस पवित्र क्षेत्र को स्वच्छ और आदर्श बनाए रखें।
शिक्षक समाज का दर्पण है। उसके आचरण से ही विद्यार्थी और समाज दिशा पाते हैं। यदि चरित्रहीनता शिक्षा-जगत में स्थान बना लेगी तो भविष्य अंधकारमय होगा। ऐसे में हर शिक्षक को यह स्मरण रखना होगा कि ज्ञान बाँटना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि आदर्श जीवन जीकर दूसरों को प्रेरणा देना ही सच्चे गुरु का धर्म है।
लेखक : सीमा पटेल
