बिहार कृषि विश्वविद्यालय की नई किस्म सबौर मंसूरी धान देश के 10 राज्य के किसानों को करेगी समृद्ध

यह भी पढ़ें

- Advertisement -

डुमरांव. बिहार कृषि विश्वविद्यालय के धान की नई किस्म हीरा जहां राष्ट्रीय स्तर पर चयनित हुई है. वहीं वनस्पति अनुसंधान संस्थान के विज्ञानी डा. प्रकाश एवं उनकी टीम ने दूसरी नई किस्म इजाद कर दिया है. मंसूरी नाम की यह नई किस्म, कम समय, सीमित सिंचाई एवं कम उर्वरक में अन्य किस्मों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा उत्पादन देगी. इसकी उत्पादन क्षमता 122 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. ये प्रभेद, जीवाणु झुलसा, झोंका एवं कण्डदुआ रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है तथा तना छेदक एवं भूरा पत्तीलपेटक कीट के प्रति सहनशील है.

साथ ही इसका तना भी बहुत मजबूत है. जिससे ये आंधी एवं तूफान में यह प्रभेद, गिरेगी नहीं एवं जलवायु अनुकूल है. इस किस्म में प्रति पौध 20-22 कल्ले औसतन निकलते हैं. जिसमें बालियां लगी होती है. प्रभेद की बालियां 29-32 से.मी. लंबी एवं प्रति बाली 300 से अधिक दाने होते है. 1000 दाने का वजन 22 से 23 ग्राम होता है. इसके दाने सुनहरे रंग के नाटी मंसूरी (एमटीयू7029) जैसा होता है एवं चावल प्रतिशत भी 67 प्रतिशत से अधिक है.
सबौर मंसूरी प्रभेद, किसानों को कम खर्च में अधिक मुनाफा देगी तथा सिंचित एवं वर्षा आश्रित इलाकों में भी कम सिंचाई में बेहतर उत्पादन देने वाली यह नई किस्म धान उत्पादकों के लिए वरदान साबित होगी.

इस प्रभेद का परिक्षण विगत 4 वर्षों से बिहार सहित 19 राज्यों में अखिल भारतीय समन्वित धान सुधार परियोजना के अंतर्गत किया जा रहा था. इस प्रभेद का परिक्षण विगत 3 वर्षों से राज्य के विभिन्न जिलों जैसे किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, भागलपुर, लखीसराय, बेगूसराय, बक्सर, औरंगाबाद, गया, रोहतास में भी किया गया था.

उसमें बहुत ही बेहतर परिणाम मिले. राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षण उपरांत, केंद्रीय प्रभेद चयन समिति ने देश के 10 राज्यों के किसानों को समर्पित करने के लिए, चयन एवं संस्तुति दी है. जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक एवं पांडिचेरी हैं.

- Advertisement -

किस्म की विशेषता

इस किस्म में प्रति पौध 20-22 कल्ले जिसमें बालियां लगी रहती है एवं प्रत्येक बालियां 29-32 सेंटीमीटर लंबी, जिसमें दानों की संख्या 300 से अधिक होती है. 1000 दानों का वजन 22 से 23 ग्राम होता है, इसके दाने का रंग सुनहरा, नाटी मंसूरी-स्वर्णा जैसा होता है एवं धान से 67 प्रतिशत से अधिक चावल निकलता है. इस धान के चावल में एमीलोज भी 24 प्रतिशत है, जिसमें चावल भी मुलायम एवं भुरभुरा होता है.

सबौर मंसूरी प्रभेद, किसानों को कम खर्च में अधिक मुनाफा देगी तथा सिंचित एवं वर्षाआश्रित इलाकों के लिए, कम सिंचाई में बेहतर उत्पादन देने वाली यह नई किस्म, समय से बुवाई हेतु धान-गेहूं-मूंग/उर्द अथवा धान-मक्का/दलहनी फसल चक्र में, उत्पादकों के लिए वरदान साबित होगी.

इस प्रभेद को राज्य के विभिन्न जिलों में 50 से अधिक प्रगतिशील कृषकों के यहां मिनी किट प्रयोग के लिए, दी गई थी. जिसका निरीक्षण, अतंरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय विशेषज्ञों के साथ अनिल झा, पदाधिकारी, जलवायु अनुकूल कार्यक्रम, कृषि विभाग, बिहार सरकार के द्वारा की गई तथा प्रभेद को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डा. प्रकाश के प्रयासों की सराहना सभी विशेषज्ञों द्वारा की गयी.

सबौर मंसूरी प्रभेद के किसानों के प्रक्षेत्र में मूल्यांकन के दौरान, विजय कुमार, करमैनी, विक्रमगंज, रोहतास में 50 वर्गमीटर प्रक्षेत्र की क्रॉप कटिंग, डा. फिजा अहमद, सह निदेशक शोध, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, संस्थान के वैज्ञानिक एवं क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों की उपस्थिति में की गई. जिसकी ऊपज 107.64 कुंतल/हेक्टर प्राप्त हुई थी, ऊपज को देखकर, क्षेत्र के किसानों में काफी हर्ष है. इसका बीज अगले वर्ष से विश्वविद्यालय के वानस्पति अनुसंधान इकाई, बिक्रमगंज, बिहार में उपलब्ध होगा. कुछ किसानो को इस किस्म का बीज प्रयोग के लिए इस वर्ष भी दिये जायेंगे.

- Advertisement -

विज्ञापन और पोर्टल को सहयोग करने के लिए इसका उपयोग करें

spot_img
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

विज्ञापन

spot_img

विज्ञापन

spot_img

विज्ञापन

spot_img

संबंधित खबरें