फाइलेरिया के रोगियों को अपने पांव का अधिक ख्याल रखना चाहिए: डॉ. रंजीत

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आरा, 16 फरवरी | जिला स्वास्थ्य समिति जिले में फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर प्रतिबद्ध है। इसको लेकर समुदाय स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। जिसके तहत जिले के सभी प्रखंडों के पीएचसी और सीएचसी में एमएमडीपी क्लिनिक खोले जा रहे हैं। जहां पर फाइलेरिया के हाथी पांव रोग को लेकर मार्बिडीटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रीवेंशन (एमएमडीपी) की जानकारी दी जाएगी। इस क्रम में भोजपुर जिले के तरारी प्रखंड स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एमएमडीपी क्लिनिक का शुभारंभ के साथ क्षेत्र के हाथी पांव से ग्रसित रोगियों के बीच एमएमडीपी किट का वितरण किया गया।

मरीजों के बीच रोग नियंत्रण और घरेलू प्रबंधन के लिए उपचार किट प्रदान किया गया है। इसमें टब, साबुन, तौलिया, पाउडर, क्रीम आदि शामिल हैं। साथ ही, उन्हें फाइलेरिया रोधी दवाएं भी दी गईं। इसके अलावा मरीजों को एमएमडीपी किट के इस्तेमाल की जानकारी दी गई। इस दौरान राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के डॉ. रंजीत कुमार, फील्ड वर्कर विरेंद्र प्रसाद व सद्दाम हुसैन, फार्मासिस्ट नरेंद्र प्रसाद व स्टोरकीपर प्रताप सिंह समेत अन्य स्वास्थ्य कर्मी मौजूद रहें।

इफेक्टेड पैर को साबुन से अच्छे से धोना है

आरबीएसके के डॉ. रंजीत कुमार ने एमएमडीपी किट के एक्सरसाइज करने के तरीकों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पहले हमें नॉर्मल पैर को धोना है। उसके बाद इन्फेक्टेड पैर को साबुन से अच्छे से धोना है। तौलिया से हलके हाथों से पोछना है। जहां कटा हुआ है सूती कपड़ा से साफ करना है और मलहम लगाना है। टब का पानी ऐसी जगह फेकना है जहां कोई बच्चा उस पानी के संपर्क में न आए। हमें प्रतिदिन एक्सरसाइज करना है।

उन्होंने बताया कि फाइलेरिया के रोगियों को अपने पांव का अधिक ख्याल रखना चाहिए। लोगों को फाइलेरिया के कारण व बचाव के प्रति सचेत किया जा रहा है। फाइलेरिया एक परजीवी रोग है। रोग का फैलाव मच्छर के काटने से फैलता है। इससे शरीर के किसी भी हिस्से में सूजन, हाइड्रोसील और हाथीपांव के रूप में प्रकट होता है। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रोहित कुमार ने बताया कि फैलेरिया मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है जहां गंदगी होती है वहां मादा क्यूलेक्स मच्छर पाया जाता है।

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फाइलेरिया का कोई समुचित उपचार संभव नहीं

फील्ड वर्कर सद्दाम हुसैन ने बताया, फाइलेरिया मरीजों को नियमित रूप से आवश्यक उपचार की जरूरत होती है। इसके लिए मरीज़ों को आवश्यक दवाओं के साथ संक्रमित अंगों का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। फाइलेरिया से ग्रसित मरीजों को दवा नि:शुल्क दी जाती है। फाइलेरिया संक्रमित होने पर व्यक्ति को प्रत्येक महीने एक-एक सप्ताह तक तेज बुखार, पैरों में दर्द, जलन के साथ ही बेचैनी होने लगती है।

एक्यूट अटैक के समय मरीज के पैर को साधारण पानी में डुबाकर रखना चाहिए या भीगे हुए धोती या साड़ी को पैर में अच्छी तरह से लपेट कर रहना चाहिए। फाइलेरिया का कोई समुचित उपचार संभव नहीं है। हालांकि शुरुआती दौर में बीमारी की पहचान कर इसे बढ़ने से रोका जा सकता है। इसके लिए संक्रमित व्यक्ति को फाइलेरिया ग्रसित अंगों को पूरी तरह स्वच्छ पानी से साफ करना चाहिए।

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