पटना : महिलाओं की सृजनात्मकता पर्यावरण सुरक्षा की बन सकती है मजबूत सूत्रधार
सहयोगी संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर आयोजित किए विभिन्न कार्यक्रम
जेंडर एवं पर्यावरण के बीच की कड़ी पर हुयी विस्तृत चर्चा
पेंटिंग आधारित प्रतियोगिता हुयी आयोजित
फोरम थिएटर एवं नृत्य के आयोजन ने दिया मजबूत सन्देश
पटना : पर्यावरण का नैसर्गिक स्वभाव सृजनात्मकता से जुड़ा है। वहीं, महिलाओं को ही सिर्फ सृजन करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गयी है। इस लिहाज से पर्यावरण एवं महिला एक गहरे अर्थ में एक-दूसरे की पूरक हैं। इस भाव को जन-समुदाय तक पहुँचाने के लिए सहयोगी संस्था के द्वारा बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर दीघा, पटना स्थित तरुमित्र में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस दौरान बड़ी संख्या में संत ज़ेवियर एवं जे डी वुमन्स कॉलेज के छात्र-छात्राएँ, गाँव की किशोरियाँ एवं महिलाओं सहित बिहार महिला उद्योग संघ की निदेशक उषा झा, एमिटी बिज़नेस स्कूल की सहायक निदेशिका डॉ चेतना प्रीति, मधुबनी पेंटिंग एंड कंटेम्पररी आर्ट की कलाकार सोमा आनंद, मशहूर गायिका नीतू नवगीत, योगा एक्सपर्ट आरती सिंह, शांति कुटीर एवं दिशा की सी ई ओ राखी शर्मा, लेट इन्स्पायर बिहार-गार्गी चैप्टर से करिश्मा, नेहा और सरीन, तरुमित्र की प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर देवप्रिया दत्ता, सामाजिक कार्यकर्ता कंचन बाला, सत्यनारायण मदन, इन्दु देवी सुनीता सिन्हा एवं सहयोगी टीम ने प्रतिभाग किया।
महिलाओं की भागीदारी से पर्यावरण सुरक्षा की जगेगी उम्मीद
सहयोगी संस्था की निदेशिका रजनी ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कार्यकर्मों का आयोजन किया गया है/ उन्होंने बताया कि महिला की स्थिति वर्तमान समय में बदलते पर्यावरण से काफ़ी मिलती-जुलती है. महिलाएं एवं पर्यावरण दोनों निजी स्वार्थ के लिए शोषित होती रही है।
जबकि दोनों हमेशा से ही नव-जीवन के सृजन से जुड़ी रही है। आज भी ग्रामीण परिवेश में पर्यावरण के बदलते दुष्परिणामों को सबसे अधिक एक छोटे से बंद कमरे में रहने वाली महिला को ही झेलना होता है। एक तरफ बढ़ती गर्मी में भी घर से बाहर नहीं निकलने की मज़बूरी सिर्फ महिलाओं तक ही सिमिति होती है।
वहीं, दूसरी तरफ पर्यावरण के अति दोहन के कारण घटते पानी स्रोतों के कारण एक महिला को ही इसकी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। इस लिहाज से एक महिला ही पर्यावरण की सृजनात्मकता के अर्थ को गहरे में समझ सकती हैं और पर्यावरण सुरक्षा की जिम्मेदारी को भली-भांति निर्वहन करने में योगदान दे सकती है।
सशक्त हों और जेंडर एवं पर्यावरण जैसे मुद्दे को सहयोग करें
बिहार महिला उद्योग संघ की निदेशक उषा झा ने कहा कि महिलाओं द्वारा उद्योग लगाया जाय इसके लिये सरकार सहयोग प्रदान करती है। उन्होंने महिलाओं को विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि महिलाओं को इसके लिए आगे आकर न सिर्फ़ योजनाओं का लाभ लेना चाहिए
बल्कि समाज और देश के विकास में अपनी भूमिका का नेतृत्व करना चाहिए। अगर महिलाएँ उद्योग लगती हैं, और व्यापार करती हैं तो वो और सशक्त होंगी। आप सशक्त होंगी तो और बेहतर तरीक़े से जेंडर और पर्यावरण जैसे मुद्दे पर सहयोग कर पायेंगी। महिलाएँ पर्यावरण को बचाने में बेहतर भूमिका अदा कर सकती हैं।
पेंटिंग एवं फोटो विडियो आधारित प्रतियोगिता आयोजित कर दिए गए पुरस्कार
इस दौरान प्रतिभागियों द्वारा जेंडर एवं पर्यावरण आधारित पेंटिंग प्रतियोगिता आयोजित की गयी। संत ज़ेवियर एवं जे डी वुमन्स कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने पेंटिंग बनाया। कुल 18 लोगो को बेहतर पेंटिंग तथा मुद्दे के समर्थन और सहयोग के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। मौक़े पर प्रतिभागियों एवं कार्यक्रम के अतिथियों ने सेल्फ़ी स्पोर्ट पर जाकर सेल्फ़ी भी ली।
इस दौरान समा अनन्द ने सभी को पेंटिंग कला के बारे में बताया तो रखी शर्मा ने किशोरियों को करियर पर कैसे और क्यों फोकस करें इस बारे में बताया। आरती ने महिलाओं और किशोरियों को योगा के माध्यम से अपने स्वास्थ्य पर कैसे काम करें इस बारे में बताया। सहयोगी टीम द्वारा जेंडर आधारित फोरम थिएटर का भी आयोजन किया गया ।
पर्यावरण ही जीवन का एकमात्र आधार
एमिटी बिज़नेस स्कूल की सहायक निदेशिका डॉ चेतना प्रीति ने कहा कि पर्यावरण का इस्तेमाल सिर्फ़ निजी स्वार्थ एवं जीवन को आरामदायक बनाने तक सीमित होता जा रहा है। यह जीवन अस्तित्व के ख़तरे की घंटी हो सकती है। विगत वर्षों में तापमान में बढ़ोतरी एवं मौसम की अनिमियता इस बात की साक्षी है कि पर्यावरण का शोषण अधिक बढ़ा है।
इसके विषम परिणामों से सबको गुजरना होगा अगर हम इसकी रक्षा के लिए काम ना करें। महिला अधिकार और पर्यावरण दोनों को सुरक्षित रखने के लिए हमे आगे आकर नेतृत्व करने की आवश्यकता है। तरु मित्र की प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर देव प्रिया दत्ता ने बताया कि जीवन के अस्तित्व को सुरक्षित रखने में पर्यावरण ही एकमात्र आधार है।
किसी भी विषम परिस्थिति कि असर सबसे ज़्यादा वंचित समुदाय को होता है। हमारे समाज में जेंडर ग़ैर-बराबरी अधिक होने के कारण महिलाएँ कई तरह के वंचन का सामना करती हैं। पर्यावरणीय परिवर्तन का असर भी सबसे अधिक महिलाओं पर ही होगा।