मोतिहारी। सरकार द्वारा वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित है। टीबी मुक्त समाज के लिए अभियान की आवश्यकता है जिसमें समाज के सभी वर्गों को आगे आने की जरूरत है। ये बातें जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. रंजीत रॉय ने कही। उन्होंने कहा कि टीबी लाइलाज नहीं है। बशर्ते मरीज खुद सामने आयें , अन्यथा संक्रमण पूरी तरह खत्म नहीं होगा। उन्होंने बताया कि कई लोग लक्षण होने के बाद भी इसे हल्के में लेते हैं परंतु बाद में गम्भीर होने पर फिर सरकारी अस्पताल की ओर रूख करते हैं। इस तरह टीबी गम्भीर हो जाता है। टीबी रोग को जड़ से मिटाने के लिए सभी को जागरूक होने की जरूरत है।
किसी को भी हो सकता है टीबी
सदर अस्पताल के डॉ. शत्रुघ्न कुमार ने बताया कि टीबी किसी को भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि दो सप्ताह से ज्यादा खांसी, रात के समय बुखार आना, बलगम में खून आना, वजन का कम होना व रात को सोते समय पसीना आना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत नजदीकी जांच केंद्र में टीबी की जांच करवानी चाहिए। अधिक से अधिक लोग टीबी के लक्षणों के बारे में जानें और अपने आसपास रहने वाले लोगों में यदि इनमें से कोई लक्षण दिखे तो जांच के लिए प्रेरित करें। अधिसूचित रोगी का जब तक उपचार चलता है, तब तक प्रतिमाह 500 रुपये वित्तीय सहायता राशि निक्षय पोषण योजना के तहत सीधे मरीज के खाते में भेजी जाती है।
4300 टीबी के मरीज नियमित रूप से दवा का सेवन कर रहे हैं
जिला यक्ष्मा केंद्र के अमरेंद्र कुमार ने बताया कि जिले में अभी 4300 टीबी के मरीज हैं, जो नियमित रूप से दवा का सेवन कर रहे हैं। मरीजों में हर वर्ग और समुदाय के लोग हैं। इसलिए इस बीमारी को भेदभाव से नहीं देखना चाहिए। उन्होंने बताया कि टीबी एक संक्रामक बीमारी है। इसे जड़ से मिटाने के लिए हम सभी को इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने की जरूरत है।
बीमारी ठीक होने तक लें दवा की पूरी डोज
डॉ रंजीत राय ने बताया कि कोई भी टीबी मरीज जबतक वह पूरी तरह से ठीक न हो जाय, तब तक उन्हें टीबी की दवा खानी चाहिए। न कि बीच में ही दवा छोड़ देनी चाहिए। उनका कहना है कि टीबी की बीमारी में दवा बीच में छोड़े जाने पर बीमारी और बढ़ जाती है। वहीं एमडीआर टीबी होने का खतरा हो जाता है।