शिशुओं को खसरा से बचाने के लिए उन्हें अनिवार्य रूप से कराएं टीकाकृत : डीआईओ
गर्मी के मौसम में तापमान के साथ ही बच्चों में बढ़ जाता है खसरा (मीजल्स) का खतरा
नियमित टीकाकरण के दौरान एमआर के पहले एवं दूसरे डोज से वंचित बच्चों को किया जा रहा चिह्नित
बक्सर | मौसम में बदलाव को लेकर स्वास्थ्य विभाग बच्चों के स्वास्थ को लेकर अलर्ट मोड पर है। हालांकि, बढ़ती गर्मी और संक्रमण के कारण इस मौसम में बच्चे ज्यादा बीमार पड़ते हैं। जिसको लेकर जिला स्तर से लेकर पंचायत स्तर पर तक बच्चों को दिए जाने वाले टीकों की मॉनिटरिंग तेज कर दी गई है।
अमूमन गर्मी के मौसम में तापमान के साथ ही बच्चों में खसरा (मीजल्स) का खतरा बढ़ जाता है। जिसको लेकर स्वास्थ्य विभाग सतर्क है। आमतौर पर गर्मी के मौसम में बच्चों को शिकार बनाने वाला खसरा एक प्रकार का वायरल संक्रमण है। नवजात शिशु से लेकर पांच वर्ष तक के शिशु इस इन्फेक्शन के ज्यादा शिकार होते हैं। लेकिन, बच्चों को इस बीमारी से बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग बच्चों को टीकाकृत कराने पर जोर दे रहा है।
सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा ने बताया कि बीते वर्ष अप्रैल और मई माह में गर्मी के दौरान जिले के ब्रह्मपुर, नावानगर और चौगाई प्रखंड में खसरा के लक्षण वाले बच्चों की पुष्टि हुई थी। जिसके बाद उन इलाकों में सघन रूप से सर्वे करते हुए बच्चों को टीकाकृत किया गया था। साथ ही, पूरे जिले में खसरा के पहले और दूसरे टीके से वंचित शिशुओं को चिह्नित करते हुए उन्हें टीकाकृत किया गया। उसी आधार पर इस वर्ष भी बच्चों को खसरा से बचाने के लिए पूरे जिले में निगरानी रखी जा रही है। ताकि, कोई भी बच्चा खसरा के टीके से वंचित न रह पाए।
बच्चों के लिए घातक है खसरा
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. विनोद प्रताप सिंह ने बताया, खसरा बच्चों में होने वाली संक्रामक बीमारी है। खसरा एक ड्रॉपलेट इंफेक्शन है जो नाक, गले, या फेफड़ों से निकलने वाली एयरबोर्न ड्रॉपलेट के जरिए चार से छह फुट के क्षेत्र में फैलता है, इसलिए इसके मामलों में आइसोलेशन की जरूरत होती है। एक बार इसके होने की पुष्टि हो जाने के बाद मरीज को परिवार के दूसरे सदस्यों से अलग रखना चाहिए। उन्होंने बताया कि खसरे से संक्रमित बच्चे को पहले तेज बुखार आता है।
इसके साथ ही उसके हाथ, पैर और पेट आदि स्थानों पर दाने उभर आते हैं। बच्चे को जरूरत से ज्यादा कमजोरी महसूस होती है। समय पर इलाज न मिलने की दशा में उसे निमोनिया हो सकता है जिससे उसकी जान भी जा सकती है। उन्होंने बताया कि बच्चों के शरीर पर लाल रंग के दाने या फोड़े फुंसी जैसे लक्षण दिखाई दे तो उसे नजरंदान न करें। क्योंकि की यह खसरा का लक्षण हो सकता है। ऐसे लक्षण दिखने पर तत्काल सरकारी अस्पताल में संपर्क करें।
आज भी कई इलाकों में खसरा को देवी का प्रकोप मानते हैं लोग
यूनिसेफ के एसएमसी कुमुद रंजन मिश्रा ने बताया कि ग्रामीण और सुदूरवर्ती इलाकों में खसरे को लेकर अधिकांश लोग अंधविश्वास में आकर इस आधुनिक युग में भी दकियानूसी बातें करते हैं। लोग इसे देवी माता का प्रकोप मानते हुए बच्चे को दवा दिलाने से डरते हैं। लोगों का मानना होता है कि दवा दिलाने से माता नाराज हो जाएंगी। जबकि ऐसा करके वह अपने बच्चे की जान खतरे में डालते हैं।
सैकड़ों बच्चे इसी अंधविश्वास की वजह से दम तोड़ देते हैं। उन्होंने जिले के अभिभावकों को इस अंधविश्वास से दूर रहने की सलाह दी। कहा कि खसरा से बचाव को लेकर शिशुओं को टीकाकृत किया जाता है। पांच साल तक के उम्र से पहले बच्चे को एमआर के दो टीके लगाए जाते हैं। पहला टीका बच्चे के नौ से 12वें महीने के बीच लगाया जाता है।
वहीं, इसकी दूसरी खुराक 16 से 24 महीने के बीच दी जाती है। दोनों टीका देने पर बच्चा पूरी तरह संपूर्ण प्रतिरक्षित हो जाता है। दूसरी ओर, नियमित टीकाकरण की निगरानी के दौरान बच्चों को दिए जाने वाले कार्ड की जांच भी की जा रही। जिससे कोई भी बच्चा इन टीकों से वंचित न रहे।