लाखनडिहरा में विधिक सेवा प्राधिकार जागरूकता शिविर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 व पॉक्सो एक्ट 2012 से संबंधित दी गई जानकारी

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डुमरांव. लाखनडीहरा पंचायत अंतर्गत पंचायत भवन में रविवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव धर्मेन्द्र कुमार तिवारी के निर्देशन में विषय जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 और पॉक्सो एक्ट 2012 से सम्बंधित जानकारी लोगों को डालसा के पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव के द्वारा दी गई. साथ में पीएलवी अनिशा भारती भी मौजूद रही. कार्यक्रम की अध्यक्षता मुखिया मुखलाल महतो द्वारा किया गया. इसके अलावे उपमुखिया रम्भा देवी, अंजू देवी जीवन अध्यक्ष, रेखा देवी, मनरखनी देवी, फूलकुमारी देवी, सुनील कुमार विकास मित्र, प्रिंस यादव, उत्तम कुमार, सौरभ कुमार, कमलेश महतो, रोहित कुमार सिंह, रामसुजन राम, महेश राम, सुजीत कुमार सिंह आदि उपस्थित रहे.

पैनल अधिवक्ता ने लोगों को उपरोक्त विषय से संबंधित विस्तार से समझाते हुए बताया कि बच्चे दिल के कमजोर होते हैं. बचपन में हीं इनके अंदर किसी चीज का डर बैठा दिया जाये तो बड़े तक उन्हें उस चीज से डर लगता है. इसी को ध्यान में रखते हुए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 में बच्चों के लिए बहुत से नियम बनाये गए हैं. अगर कोई व्यक्ति, संरक्षक, कोई सामाजिक संचालक जैसे (हॉस्टल,बालगृह आदि), किसी किशोर के साथ क्रूरता का व्यवहार करेगा, उस पर हमला करेगा, उसे गृह निवास से भगाएगा,उसे उत्पीड़न करेगा या किसी भी प्रकार से डाँटेगा. जिससे उसके अंदर डर बैठ जाए, तब ऐसा करने वाला व्यक्ति जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 75 के अंदर दोषी होगा. उसे तीन साल का कारावास या 1 लाख रुपए तक जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है.

जानबूझकर बिना गलती के उत्पीड़न, हमला करने वाले, क्रूरता या घर से निकालने वाले यदि यही अपराध किसी संगठन, संस्था, हॉस्टल के द्वारा प्रबंधक या कर्मचारियों द्वारा किया जाता है तो उसे 5 साल एवं 5 लाख रुपया दोनों से दण्डित किया जा सकता है. धारा 376 डीबी में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र की नाबालिग लड़की के साथ सामुहिक बलात्कार का दोषी पाया जाता है, तो कोर्ट के पास उपरोक्त सजा या उससे अधिक मौत की सजा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

पैनल अधिवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि अध्ययन से यह भी पता चलता है कि किशोर अपराध का मुख्य कारण उचित पारिवारिक नियंत्रण का अभाव, परिवार में संघर्ष, आवासीय क्षेत्र की स्थिति, फिल्मों, टेलीविजन, मोबाईल का प्रभाव आदि किशोर अपराध के लिए समान रूप से जिम्मेदार है. धारा 82 (1) शारीरिक दंड देने का दोष सिद्ध होने पर शिक्षक पर 10 हजार रुपया जुर्माना, दूसरी बार दोष सिद्ध होने पर तीन माह जेल, धारा 82 (2) सम्बंधित शिक्षक को बर्खास्त करना अनिवार्य है. धारा 82 (3) जांच में सहयोग नहीं करने वाले को तीन माह सजा है.

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भारत सरकार नाबालिग बच्चों की सुरक्षा के लिए पाक्सो एक्ट बनाया था।यह कानून 18 वर्ष से कम उम्र के लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है. इसमें 7 साल से लेकर उम्रकैद और अर्थदण्ड भी लगाया जा सकता है. पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले आते हैं, जिनमें बच्चों को दशक या कुकर्म के गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो. इसमें 10 साल से लेकर उम्रकैद तक कि सजा तय है. 16 साल से कम उम्र के साथ रेप पर 10 साल से बढ़कर 20 साल किया गया है।पॉक्सो एक्ट से बचने का अब कोई उपाय नहीं है.

केवल यौन इरादे से बच्चों के निजी अंगों को छूना पाक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न के रूप में माना जाने के लिए पर्याप्त है. इसके लिए चोट का प्रदर्शन करने वाला, मेडिकल सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं है. बच्ची का दुपट्टा खींचना, गलत इरादे से उसे छूना, पैंट का जीप खोलना और नाबालिग का हाथ पकड़ना, लैंगिक अपराध, लड़कियों को परेशान करने पर आदि अपराध इसके अंतर्गत आते हैं.

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