बक्सर : टीबी से मुक्ति के लिए जरूरी है नियमित रूप से दवाओं का सेवन

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बक्सर, 05 नवंबर | राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत 2025 तक जिले से टीबी का पूरी तरह से उन्मूलन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जिसके लिए सरकार और विभाग अपने स्तर से पूरी तरह से प्रयासरत है। लेकिन, अब जरूरत है लोगों के जागरूक होने की। ताकि, टीबी के खिलाफ जंग की दोतरफा लड़ाई जीती जा सके। टीबी उन्मूलन को लेकर स्वास्थ्य विभाग लगातार अभियान भी चला रहा है। जिले के सभी सरकारों अस्पतालों में इसके इलाज से लेकर जांच तक की मुफ्त व्यवस्था है। साथ ही, दवाओं के साथ टीबी के मरीज को पौष्टिक भोजन के लिए पांच सौ रुपये प्रतिमाह सहायता राशि भी दी जाती है। इसके बावजूद देखा जा रहा है कि कुछ लोग इलाज कराने के लिए बड़े निजी अस्पताल या फिर बड़े शहर की ओर जाते हैं। फिर वहां से निराश होकर जिले के सरकारी अस्पतालों का चक्कर काटना पड़ता है। ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है। जैसे ही टीबी के बारे में पता चले तो पहले नजदीकी सरकारी अस्पताल ही जाएं। जिले में अब टीबी के इलाज के साथ मुकम्मल निगरानी और अनुश्रवण की व्यवस्था की जाती है।

शहरी की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों के मरीजों में होता है जानकारी का अभाव

इटाढ़ी प्रखंड की एसटीएस इंदु कुमारी ने बताया, शहरी की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों में अभी लोगों के बीच अभी भी भ्रांतियां हैं। जिन्हें दूर करने के लिए टीबी मरीजों के साथ उनके परिजनों की नियमित काउंसिलिंग करनी पड़ती है। लोगों में अभी भी जागरूकता की कमी है। टीबी मरीजों के लक्षणों की पहचान से लेकर उनकी जांच, इलाज के साथ नियमित अनुश्रवण तक उन्हें कई बार टीबी उन्मूलन और बीमारी से संबंधित जानकारी देनी पड़ती है। यहां तक कि कई बार एक-एक मरीज को सिर्फ जांच के लिए तीन से चार काउंसिलिंग कर जागरूक करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि यह परेशानियां सिर्फ उन मरीजों के साथ उत्पन्न होती हैं, जिनके पास टीबी के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। शहरी इलाकों के मरीजों के साथ इतनी परेशानी नहीं होती है। उन्हें अधिक समझाने या प्रेरित करने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन, दवाओं के नियमित सेवन को लेकर उनका भी फॉलोअप करना जरूरी हो जाता है।

विभाग और एसटीएस का किया आभार व्यक्त

इटाढ़ी प्रखंड के प्रखंड मुख्यालय के निवासी अब्दुल जब्बार की दो बेटियां टीबी से ग्रसित थी। जिनका इलाज जिले में हुआ। दोनों ने नियमित रूप से टीबी की दवाओं का सेवन किया। जिसके बाद दोनों को टीबी से निजात मिल गयी । जिसके लिए वह विभाग और एसटीएस का आभार मानते हैं। जिनकी नियमित फॉलोअप की बदौलत आज उनकी दोनों बेटियां टीबी से मुक्त हो सकी हैं। उन्होंने बताया कि उनकी बेटियां कोरोना काल में टीबी से ग्रसित हुई थी। लेकिन, विभाग के अधिकारियाें और कर्मचारियों ने उस संकट की घड़ी में बच्चियों का अनुश्रवण किया। जिसके कारण नियमित समय पर विभाग की ओर से दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकी। अब्दुल जब्बार ने कहा कि कई लोगों ने उन्हें निजी संस्थान में उनकी बच्चियों का इलाज कराने की सलाह दी थी। लेकिन, एसटीएस दीदी ने उन्हें भराेसा दिलाया कि उनकी बेटियां पूरी तरह से ठीक हो जाएंगी।

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