लाखनडिहरा गांव में वरिष्ठ नागरिकों के अधिकार एवं संरक्षण के संबंध में विधिक जागरूकता शिविर

डुमरांव. लाखनडिहरा गांव में वरिष्ठ नागरिकों के अधिकार और उनके संरक्षण के संबंध में विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. जिसमें पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं पीएलवी अनिशा भारती उपस्थित रहीं.
उच्च न्यायालय पटना एवं बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार के निर्देशानुसार तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकार बक्सर आनंद नंदन सिंह, मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सह सचिव देवराज, जिला विधिक सेवा प्राधिकार बक्सर के नेतृत्व में आयोजन हुआ. आगामी 9 दिसंबर 2023 को साल का अंतिम लोक अदालत लगने वाला है, जिसमें लोगों से बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की अपील किया गया.
पैनल अधिवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने लोगों को समझाते हुए बताया कि वरिष्ठ नागरिकों के अधिकार एवं संरक्षण के लिए एक कानून है जो ’सीनियर सिटीजन एक्ट 2007’ है, जो उनके अधिकारों की रक्षा करता है और शक्तिशाली भी बनाता है.
देश मे बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है. वर्तमान में लगभग 13.8 करोड़ के आसपास है. उनके लिए कई तरह की सुविधाएं दी जा रही है और योजनायें चलाई जा रही है. जिनकी उम्र 60 साल या उससे अधिक, वो सीनियर सिटीजन एक्ट के दायरे में आते हैं.
वरिष्ठ लोगों को परेशान करने वाले किसी भी व्यक्ति को आपराधिक धमकी के लिए धारा 506 आईपीसी, गाली-गलौज या अश्लील शब्द बोलना या सुनाना या मानसिक रूप से प्रताड़ित करने पर धारा 294 आईपीसी के तहत मामला दर्ज होता है. जहां बुजुर्गों को बरगद की छांव का दर्जा दिया जाता है, वहीं उनके साथ दुर्व्यवहार, उन्हें छोड़ देना और नजरअंदाज करने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.
पैनल अधिवक्ता ने लोगों को बताया की आमतौर पर वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति बच्चों के नाम ट्रांसफर कर देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वो उनकी देखभाल करेंगे. बच्चंे उन्हें बुनियादी सुविधाएं और उनकी जरूरतें पूरी करेंगे. यदि वो ऐसा नहीं करते हैं, तो सीनियर सिटीजन एक्ट के इस्तेमाल किया जा सकता है.
बुजुर्गों के साथ ऐसे मामलों को रोकने और उनके भरण पोषण के लिए 2007 में सीनियर सिटीजन एक्ट यानि (वरिष्ठ नागरिक अधिनियम) लागू किया गया था. इस एक्ट के जरिए उन्हें आर्थिक रूप से मजबूती, मेडिकल सिक्योरिटी, जरूरी खर्च और प्रोटेक्शन देने के लिए कानून लाया गया.
इनमें जन्म देनेवाले माता-पिता, गोद लेनेवाले पेरेंट्स और सौतेले मां-बाप भी शामिल हैं. ऐसे मां-बाप या बुजुर्ग जो अपनी संपति से या आय से अपना खर्च तो वहन नहीं कर पा रहे हैं, तो इस अधिनियम के तहत बच्चों पर मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं. बुजुर्ग इस अधिनियम के तहत एक से अधिक बच्चों पर भी दावा कर सकते हैं. इनमें बेटा-बेटी और पोता-पोती भी शामिल है.
लेकिन वो किसी नाबालिग पर दावा नहीं कर सकते. अगर किसी बुजुर्ग के बच्चें नहीं है तो वो भी मेंटेनेंस या संपति का इस्तेमाल करने वाले या उसके वारिस पर बुजुर्ग की देखभाल के लिए दावा किया जा सकता है. यह दावा करने के लिए वो स्वतंत्र है.
बुजुर्ग जहां रह रहंे हैं या जहां पहले रह रहंे थे या फिर जहां पर बच्चंे रिश्तेदार रहते हैं, तीनों जगहों पर सुविधा के मुताबिक दावा कर सकते हैं. आजकल वरिष्ठ नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार के मामले असमान्य नहीं है.
पीएलवी अनिशा भारती ने बताया कि अपने से बड़ों का सम्मान करें, उन लोगों से सीखे जो आपसे पहले इस रास्ते पर चले हैं. उनका सम्मान करें, क्योंकि किसी दिन और उससे पहले आप सोंच सकते हैं कि आप भी बूढ़े होने वाले हैं.
बुजुर्गों को अत्यधिक नियंत्रण और अपर्याप्त समर्थन का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें अपनी संपत्ति बेचने और वृद्धाश्रम में जाने के लिए अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
पैनल अधिवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने कहां कि कुछ बात हमारे दिलों को तोड़ देती है. वह यह है कि उनकी हालत के लिए जिम्मेदार ’अपराधी’ कोई और नहीं बल्कि उनके अपने बच्चे हैं, जो सत्ता, धन और भौतिकवाद की लालसा में अंधे हो गए हैं.
संविधान के अनुच्छेद 41 वरिष्ठ नागरिकों को रोजगार, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार सुरक्षित करता है. वहीं अनुच्छेद 46 में कहां गया है कि बुजुर्गों के शैक्षिक और आर्थिक अधिकारों की रक्षा राज्य द्वारा की जानी चाहिए.
वह यह भी सुनिश्चित करता है कि राज्य को विकलांगता, वृद्धावस्था या बीमारी के मामलों में इन अधिकारों पर गहराई से ध्यान रखना चाहिए. मौके पर उपमुखिया रंभा देवी, वार्ड सदस्य पुष्पा देवी, ऋषिकेश दुबे,
अमित कुमार, धनजी सिंह, शंकर भगवान दुबे, पूनम देवी, दुर्गावती देवी, संध्या देवी, अलगू सिंह, मुन्ना यादव, अरविंद कुमार, सोनू सिंह, लीलावती देवी, दिव्यांशु भारद्वाज के अलावे अन्य गणमान्य नागरिक भी उपस्थित रहें.