डुमरांवबक्सरबिहार

उद्घोष और उद्बोधन के कवि थे रामधारी सिंह दिनकर

डुमरांव. महारानी उषा रानी बालिका उच्च विद्यालय में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 116वीं जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन हुआ. जिसमें विद्यालय की छात्राओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. पुष्पांजलि अर्पित करने के पश्चात दो मिनट का मौन रखकर रामधारी सिंह दिनकर के पुत्र केदारनाथ सिंह जिनका 22 सितंबर को देहावसान हुआ, को श्रद्धांजलि दी गई.

तत्पश्चात हिंदी विषय की शिक्षिका रीना कुमारी ने दिनकर जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कवि दिनकर जी 23 सितंबर 1908 को जन्मे थे. ये अपनी राष्ट्रीयता प्रधान और वीर रस से ओतप्रोत कविताओं के लिए जाने जाते हैं. रश्मिरथी, संस्कृति के चार अध्याय, रेणुका, हुंकार, उर्वशी इत्यादि इनकी प्रमुख कृतियां हैं.

साहित्यकार सह शिक्षिका मीरा सिंह “मीरा” ने दिनकर जी को ऐसा लेखक बताया, जिसमें राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक चेतना के साथ-साथ सांस्कृतिक चेतना भी गहरे रूप में मौजूद थी. वे ‌उद्घोष और उद्बोधन के कवि थे. देश की आन के कवि थे. पराधीनता के दौर में उन्हें विद्रोही कवि और आजादी के पश्चात राष्ट्रकवि कहा गया. सत्ता के करीब होने के वावजूद व्यवस्था के आलोचक थे.

हिंदी भाषा और साहित्य को राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वालों में प्रमुख नाम रामधारी सिंह दिनकर का रहा है. दशम वर्ग की छात्रा महिमा “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” कविता पाठ की. मंच संचालन मीरा सिंह “मीरा” ने किया. छात्राओं में अनामिका, करीना, प्रिया, रिया रूचि, कात्यायनी, शालिनी, जाह्नवी, रेखा, आकांक्षा, रागनी, विभा, स्नेहा, निशा इत्यादि की भूमिका सराहनीय रही.

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