आराबिहारस्वास्थ्य

अस्पतालों में बुखार एवं खासी से ग्रसित मरीजों की होगी माइक्रो फाइलेरिया की जांच

राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में होगा समुचित उपचार

8:30 से 12 के बीच में ही लिया जाएगा मरीजों के खून का सैंपल

आरा, 19 दिसंबर | सरकार ने वर्ष 2027 तक फाइलेरिया बीमारी के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसको लेकर भोजपुर जिला समेत पूरे राज्य में सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम के अलावा विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। ताकि, समय पर इस गंभीर बीमारी से बिहार को मुक्त किया जा सके। हाल ही में पूरे जिले में नाइट ब्लड सर्वे और सर्वजन दवा सेवन के चक्र चलाए गए थे।

लेकिन, स्वास्थ्य विभाग अब फाइलेरिया अभियान को और गति देने के उद्देश्य से नई रणनीति तय की है। जिसके तहत माइक्रो फाइलेरिया की जांच को और व्यापक स्तर पर किया जाना है। अब सरकारी और प्राइवेट अस्पताल में आने वाले बुखार और खांसी से ग्रसित मरीजों की भी जांच की जायेगी। साथ ही, उन्हें स्थानीय स्तर पर समुचित इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। ताकि, जल्द से जल्द जिले को माइक्रो फाइलेरिया से मुक्त कराया जा सके।

मरीजों के खून का लिया जायेगा नमूना

सिविल सर्जन डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि यह व्यवस्था उन सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में होगी जहां पर अंतरवासीय चिकित्सा उपलब्ध है। राज्य स्वास्थ्य समिति से प्राप्त निर्देशों के तहत इन अस्पतालों में बुखार एवं खासी के कारण भर्ती होने वाले मरीजों को चिह्नित करते हुए रात 8:30 से 12 के बीच में रक्त का नमूना लिया जायेगा।

जिसके बाद उसकी फाइलेरिया की जांच की जायेगी और जांच में घनात्मक पाये जाने वाले व्यक्तियों को 12 दिवसीय डीईसी दवा का सम्पूर्ण कोर्स (6 एमजी/ केजी वजन/दिन में तीन विभाजित खुराकों में) तत्काल प्रदान किया जाएगा। उन्होंने बताया कि विभाग के इस निर्णय से समाज में फाइलेरिया का संक्रमण एवं संचार कम होगा व भविष्य में लिम्फेडिमा और हाइड्रोसील के नए रोगी भी उत्पन्न नहीं होंगे।

रात में ही एक्टिव रहते हैं माइक्रो फाइलेरिया

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह डीएमओ डॉ. केएन सिन्हा ने बताया कि माइक्रो फाइलेरिया दिन के समय शरीर के लिम्फैटिक सिस्टम में रहते है और रात में ही एक्टिव रहते हैं और रक्त वाहनियों में भ्रमण करते हैं। इसलिए विभाग के गाइड लाइंस के तहत रात में ही मरीजों के खून का नमूना लिया जाता है। ताकि, उनमें माइक्रो फाइलेरिया का पता लगाया जा सके।

उन्होंने कहा कि फाइलेरिया बीमारी के संचार व संक्रमण को रोकने हेतु रोगी की तुरंत पहचान व दवा का सम्पूर्ण कोर्स प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए सभी प्रखंडों में साथित सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को इसके लिए सूचित किया जायेगा। साथ ही, उनका नियमित रूप से अनुश्रवण किया जायेगा। जिससे फाइलेरिया उन्मूलन अभियान को गति दिलाई जा सके।

प्रसव के छह सप्ताह बाद

माहवारी शुरू होने के सात दिन के अंदर

गर्भपात होने के तुरंत बाद या सात दिन के अंदर

अंतिम इंजेक्शन के 4 महीने बाद गर्भधारण संभव :

अंतरा के इंजेक्शन को महिलाएं अपने माहवारी के दिनों में 1 से 7 दिन के बीच में इस इंजेक्शन को लगवा सकती हैं। अगर महिलाएं गर्भवती होना चाहती है तो अंतिम इंजेक्शन के 4 महीने बाद गर्भधारण संभव होता है।

इस इंजेक्शन से महिला को किसी प्रकार का नुकसान या दर्द अनुभव नहीं होता है और इसकी खास बात यह है कि बच्चा होने के बाद (डिलीवरी के बाद) अगर महिला दोबारा जल्दी गर्भवती नहीं होना चाहती तो डिलीवरी के (प्रसव के) डेढ़ महीने बाद (6 हफ्ते बाद) यह इंजेक्शन लगवा सकती हैं।

माहवारी के ऐंठन को कम करता है

डीसीएम हिमांशु सिंह ने बताया कि अंतरा की सुई तीन महीने में सिर्फ एक बार लेने की अवश्यकता होती है। जो महिलाएं गोली नहीं खा सकतीं। बंद करने के पश्चात गर्भधारण में कोई समस्या नहीं होती। माहवारी के ऐंठन को कम करता है। यह सुई पूरी तरह से सुरक्षित है। पहले से चल रही किसी भी दवा के साथ इसे लिया जा सकता है। साथ ही, यह गर्भाशय व अंडाशय के कैंसर से बचाता है। इसके अलावा अंतरा की सुई लगवाने पर लाभुक और प्रेरक को 100-100 रुपए प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *