डुमरांवबक्सरबिहार

सत्संग से ही व्यक्ति के विचार महान बनते हैं, चरित्र का सुंदर चित्रण होता है : सुदीक्षा कृष्णा

डुमरांव. एक पल का भी सत्संग किसी को मिल जाए, उसे सत्संगी के बराबरी कोई नहीं कर सकता. ना स्वर्ग कर सकता है, ना मुक्ति कर सकती है. उक्त बातें जंगल बाजार स्थित शक्ति द्वार के समीप उदासीनमठ परिसर में चल रहें सातदिवसीय श्रीमदभागवत कथा के छठवें दिन कथा व्यास सुदीक्षा कृष्णा जी महाराज ने कहीं.

उन्होने आगे कहां कि यह बात नितांत सत्य है. क्योंकि दुर्योधन ने जीवन में सौ, दौ बार भी कृष्ण का दर्शन नहीं किया था. लेकिन फिर भी वह अपनी क्रोध पर विजय प्राप्त नहीं कर पाए. इसका बहुत सीधा सा मतलब है कि उन्हें भगवान का दर्शन तो मिला था, लेकिन सत्संग नहीं मिला था. सत्संग से ही व्यक्ति के विचार महान बनते हैं, चरित्र का सुंदर चित्रण होता है. इसलिए भगवान से मिलने का कभी समय मत विचार करो, परमात्मा से मिलने की आकांक्षा जिस दिन जाग जावे. उसी दिन से शुरू हो जाओ. कभी तारीख मत बदलो.

क्योंकि क्या पता समय का कोई भरोसा नहीं है और बिना सत्संग के जीव को विवेक नहीं मिलता और राम की कृपा के बिना वह सत्संग भी सुलभ प्राप्त नहीं हो सकता. परमात्मा जब पूरी कृपा करते हैं, अनुकंपा करते हैं, तब जाकर कहीं जीव को सत्संग की प्राप्ति होती है. सत्संग का चस्का जिसको लग जाता है, सत्संग का अनुराग एक बार जिसको हो जाए. उस पर परमात्मा की कृपा तो बरसाती ही है, लक्ष्मी उसे घर को छोड़कर कभी नहीं जाती, यह कंफर्म बात है. लक्ष्मी अस्थाई रूप से वहां वास करती है.

मीरा सत्संग के महत्व को मीराबाई ने समझा मीराबाई से लोगों ने पूछा कि तुमने इतने बड़े साम्राज्य का त्याग क्यों कर दिया. यह वृंदावन में एक एक गोपी की भांति एक साधारण स्त्री की बातें तुम इतने बड़े साम्राज्य की रानी हो. इतने बड़े राज परिवार की बेटी हो और वृंदावन में एक साधारण स्त्री की भांति क्यों घूमती हा,े क्या मिलता है तुम्हें यह सब करके. अपने समस्त कूल के मर्यादा को त्याग करके तुम्हें क्या मिला. मीराबाई ने कहां मुझे जो मिला है वह संसार नहीं दे सकता.

क्योंकि मुझे गोविंदा के नाम का परम धन मिला है. इसलिए भगवान के लिए हृदय में मनुष्य मात्रक है. भाव अवश्य होना चाहिए. दान से भगवान मिल जाएं. यज्ञ करने से भगवान मिल जाएं, वैदिक कर्म करने से भगवान मिल तो जाएंगे. लेकिन कितना समय लगेगा कितने हजार वर्ष बीत जाए. कितना जन्म बीत जाए. कोई कह नहीं सकता. लेकिन हृदय में यदि प्रेम है, तो वह गोविंद आप मन मंदिर में ही अवस्थित है. उपस्थित है, वह आपसे अलग नहीं है.

छठवें दिन प्रसंग में भगवान के बाल लीला पर उपस्थित श्रोता भाव विभोर हो गए. साथ ही भगवान गिरीराज भगवान, मां अन्नपूर्णा का चर्चा के दौरान छप्पन भोग लगाए गए है. कथा में चेयरमैन सुनीता गुप्ता, प्रतिनिधि सुमित गुप्ता सहित नगर के स्थानीय लोगों की सराहनीय भूमिका रहीं.

मौके पर आयोजन समिति अध्यक्ष नप उप चेयरमैन विकास ठाकुर, उपाध्यक्ष बब्लू जायसवाल, सचिव अरविंद श्रीवास्तव, उप सचिव विनोद केशरी, कोषाध्यक्ष कन्हैया तिवारी, बिहारी यादव, संयोजक मुन्ना जी सहित मनीष मिश्रा, राजेेश यादव, मनीष यादव, अमीत मिश्रा, देवेंद्र सिंह, सोनू ठाकुर, सुडु प्रसाद, मो एकराम, रामजी प्रसाद, सुनील मिश्रा, शशि कुमार की सराहनीय भूमिका रहीं.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *