बेतिया। अक्सर ही किसी किराने की दुकान जाने पर हमें उत्पादों के ब्रांड के फोटो दिखाई पड़ते हैं, पर एक दुकान इससे कहीं अलग और जुदा है। वहां उन पोस्टरों के साथ टीबी के कारण,लक्षण और उपचार से संबंधित कुछ पोस्टर देखने को मिलेगें। वहीं दुकानदार से पूछने पर टीबी पर सतही जानकारी भी आपको मिलेगी। ऐसे इसलिए क्योंकि इसके दुकानदार खिरिया घाट, बैरिया के रहने वाले ललन कश्यप खुद टीबी से जंग लड़ चुके हैं। सामुदायिक स्तर पर यह जानकारी फैलाने के लिए उन्हें यह तरीका बहुत ही सरल लगी। ललन कश्यप कहते हैं ‘चाहता तो बहुत हूं कि टीबी पर व्यापक प्रचार करुं, ताकि समय रहते लोग इस बीमारी को पहचान कर इलाज करा सके। एक छोटे दुकानदार होने और बच्चों की जिम्मेवारी मुझे कहीं जाने नहीं देती। तभी मुझे लगा कि मैं खुद भी पोस्टर के माध्यम से टीबी पर दुकान आने वाले ग्राहक को कुछ तो समझा ही सकता हूं। फिर मैंने भतीजे सौरभ को इंटरनेट से कुछ निकालने को कहा और उसने यह पोस्टर दिया जिसे मैंने चस्पा कर दिया।
टीबी अनुरूप व्यवहार का किया पालन
ललन कहते हैं टीबी के दौरान दवा से जब थोड़ा लाभ मिला, तब वह फिर से अपनी दुकान पर बैठने लगे। ललन के भतीजे ने ललन को दुकान पर बैठने के दौरान मास्क लगाने का अनुरोध किया। यह जानकारी उसे इंटरनेट पर कहीं से मिली थी। इसके अलावा एक नियमित दूरी के साथ घर में रहते थे, ताकि टीबी का संक्रमण घर में न फैले। वहीं उन्होंने किसी तरह के तंबाकू उत्पाद का भी तिरस्कार कर दिया।
लक्षण जानना और पहचानना जरूरी
ललन कश्यप अपनी टीबी की जर्नी बताते हैं और कहते हैं कि आज से तीन साल पहले खांसी, बुखार और कमजोरी हुआ। दुकान और परिवार की जिम्मेदारियों के बीच उनका इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं गया। कहीं कहीं से साधारण दवा लेते और काम चला लेते। जब शरीर ने साथ देना छोड़ा तो ध्यान गया। इसी साल फरवरी में मेडिकल कॉलेज गए इलाज कराने। डॉक्टर ने टीबी की शंका पर जांच लिख दी। जांच में भी टीबी पॉजिटिव आए। अब ललन को अपनी शारीरिक परेशानियों का कारण समझ में आने लगा। जैसा कि आम टीबी मरीजों के साथ होता है। छह महीने दवा चली। नियमित दवा का सेवन किया और टीबी को मात दे दी। मैने तो यह कर दिया, पर तीन साल मेरे शरीर ने जो झेला वह कोई और न झेले इसके लिए टीबी के लक्षण और उपचार बहुत ही जरूरी है।