
साउथ एशिया डेवलपमेंट इनिशिएटिव अंतरराष्ट्रीय सेमिनार एवं अवार्ड समारोह में माला त्रिपाठी “मालांशी” को मिला सम्मान
लुंबिनी, नेपाल/पटना । दक्षिण एशियाई देशों की एकजुटता, शिक्षा, संस्कृति और स्त्री सशक्तिकरण के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों और शोधकर्ताओं को सम्मानित करने हेतु साउथ एशिया डेवलपमेंट इनिशिएटिव (SADI) द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार एवं बुद्धा इंटरनेशनल आईकॉन एजुकेशन अचीवर्स अवार्ड 2025 का आयोजन लुम्बिनी बुद्धिस्ट यूनिवर्सिटी, लुंबिनी, रूपनदेही, नेपाल में किया गया।
इस गरिमामयी आयोजन का विशेष आकर्षण रहा माला त्रिपाठी “मालांशी” की रचना “बुद्धमारानी” का लोकार्पण। यह ऐतिहासिक क्षण भगवान बुद्ध की जन्मभूमि लुंबिनी में सम्पन्न हुआ, जो साहित्य प्रेमियों और स्त्री सम्मान की अवधारणाओं के लिए अत्यंत भावुक एवं प्रेरणास्पद रहा।
“बुद्धमारानी”: स्त्री स्वाभिमान और संयम की अमर कथा
“बुद्धमारानी” एक प्रेरणादायक कथा है, जो नारी स्वाभिमान, मर्यादा और साहस को समर्पित है। माला त्रिपाठी “मालांशी” ने इस रचना में एक ऐसी स्त्री की गाथा प्रस्तुत की है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी सूझ-बूझ और आत्मबल के माध्यम से मर्यादा की रक्षा करते हुए जीवन के निर्णय स्वयं लेती है। यह कहानी आधुनिक नारी के संघर्ष, धैर्य और निर्णय क्षमता का प्रतीक बनकर उभरती है।
लेखिका ने इस अवसर पर कहा,
“भगवान बुद्ध की भूमि लुंबिनी में ‘बुद्धमारानी’ जैसी स्त्री स्वाभिमान की कथा का लोकार्पण मेरे लिए गर्व और सौभाग्य की बात है। मैंने प्रयास किया है कि इस कहानी के माध्यम से स्त्री के भीतर छिपी शक्ति को शब्दों में पिरो सकूं। पाठकों ने इसे जिस स्नेह और अपनत्व से स्वीकार किया है, उसके लिए मैं कोटिशः आभारी हूँ।”
सम्मान और संस्कृति का संगम
कार्यक्रम में दक्षिण एशियाई देशों के कई प्रतिष्ठित विद्वान, लेखक, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे। माला त्रिपाठी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए विशेष सम्मान बुद्धा इंटरनेशनल आईकॉन एजुकेशन अचीवर्स अवार्ड 2025 से भी नवाज़ा गया।
सेमिनार में “बौद्ध दर्शन, नारी चेतना, और दक्षिण एशियाई सांस्कृतिक धरोहर” विषय पर हुए विमर्श ने सबका ध्यान आकर्षित किया। वक्ताओं ने क्षेत्रीय सहयोग, शांति, शिक्षा, और साहित्य के माध्यम से सामाजिक सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
समापन में सांस्कृतिक एकता की झलक
कार्यक्रम के अंत में विभिन्न देशों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से दक्षिण एशियाई एकता, विरासत और सौहार्द का सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया गया। “बुद्धमारानी” का लोकार्पण इस आयोजन की आत्मा बना और यह आयोजन साहित्य एवं समाज में नारी चेतना के नवोदय का प्रतीक बनकर उभरा।

