“जादू पिटारा” से रंगों की दुनिया में सफर : खेल-खेल में सिखा रही हैं शिक्षिका सुषमा कुमारी

बच्चों को रंगों की पहचान सिखाने की अनोखी गतिविधि
तलवाड़ा, रियासी (जम्मू-कश्मीर)। सरकारी मिडिल स्कूल कच्ची खेरा, तलवाड़ा रियासी की शिक्षिका सुषमा कुमारी बच्चों को रंगों की पहचान कराने के लिए एक बेहद रचनात्मक और मजेदार गतिविधि “जादू पिटारा” का संचालन कर रही हैं। इस अभिनव शिक्षण पद्धति के माध्यम से बच्चे खेल-खेल में न केवल रंगों को पहचानना सीखते हैं, बल्कि दृश्य माध्यमों के जरिए उनका गहरा और व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त करते हैं।
खेल के साथ सीखना बना आसान
शिक्षिका सुषमा कुमारी का मानना है कि बच्चे जब देख-सुनकर और गतिविधियों में भाग लेकर सीखते हैं, तो वे विषयवस्तु को जल्दी और स्थायी रूप से समझते हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने “जादू पिटारा” नामक गतिविधि की शुरुआत की, जिसमें गुब्बारों की मदद से बच्चों को रंगों की पहचान कराई जाती है।
गुब्बारों और दृश्य माध्यमों का कमाल
गतिविधि के दौरान सुषमा कुमारी रंग-बिरंगे गुब्बारों का उपयोग करती हैं। बच्चे जब गुब्बारे उठाते हैं, तो उन्हें उस रंग का नाम बोलना होता है। इसके साथ-साथ वह हर रंग से जुड़ी कोई वस्तु या चित्र भी दिखाती हैं, जिससे बच्चों को दृश्य और वस्तुगत संदर्भ मिलते हैं। उदाहरण के लिए, लाल गुब्बारा दिखाते समय वह सेब या गुलाब का चित्र दिखाती हैं। इससे बच्चों के मन में रंग और वस्तु के बीच संबंध स्पष्ट होता है।
बच्चों की भागीदारी और उत्साह
इस गतिविधि में बच्चों की भागीदारी देखने लायक होती है। वे उत्साह से गुब्बारे उठाते हैं, रंगों के नाम बोलते हैं और अपनी समझ से उन रंगों से जुड़ी चीज़ों के नाम बताते हैं। शिक्षिका सुषमा कुमारी ने बताया कि इस गतिविधि से बच्चों में बोलने, पहचानने और समझने की क्षमता में उल्लेखनीय सुधार आया है।
शिक्षा में नवाचार की मिसाल, सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य को मिल रही गति
सुषमा कुमारी की यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति और सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्यों के अनुरूप है, जो बाल केंद्रित और आनंददायक शिक्षण को बढ़ावा देती है। यह गतिविधि खास तौर पर उन बच्चों के लिए फायदेमंद है जो पारंपरिक पढ़ाई में रुचि नहीं ले पाते या सीखने में कठिनाई महसूस करते हैं।श
सुषमा कुमारी की यह नवाचारी पद्धति उन शिक्षकों के लिए एक प्रेरणा है जो सीमित संसाधनों में भी शिक्षा को सार्थक और प्रभावशाली बनाने का प्रयास कर रहे हैं। “जादू पिटारा” जैसे सरल लेकिन प्रभावी प्रयोग यह सिद्ध करते हैं कि शिक्षण को रोचक और व्यावहारिक बनाकर हर बच्चे तक गुणवत्ता वाली शिक्षा पहुंचाई जा सकती है।
शिक्षिका सुषमा कुमारी का यह नवाचार स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर भी एक उदाहरण बन सकता है। उनकी सोच, सृजनशीलता और समर्पण निश्चित ही आने वाले समय में शिक्षा की गुणवत्ता में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक सिद्ध होगा।