माहवारी : स्त्री जीवन की सामान्य क्रिया…….डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘ आर्या ‘ की कलम से…..
बात दो वर्ष पूर्व की है। संयुक्त राष्ट्र संघ की योजना के अन्तर्गत यूनिसेफ के तत्वाधान में बिहार सरकार ने विद्यालय की बच्चियों के लिए मासिक धर्म संबंधी जागरूकता प्रदान करने की शुरुआत की। यह एक सराहनीय पहल थी। मैं विद्यालय में जागरूक अध्यापिका होने के नाते भी बहुत सजग थीं। विशेष रूप से सजग इसलिए भी थी कि मैं महिला के रूप में अपनी छात्राओं से अधिक समीप थी और इस प्रकार की स्थितियों से मैं भी परिचित थी। विद्यालय। में बच्चियों को जागरूक करना था और उनके लिए सैनिटरी पैड हेतु कुछ अनुदान भी आने थे। जैसा कि पिछड़े इलाके में होता है कुछ बच्चियां पैसा मिलेगा इस सोच के कारण ज्यादा उत्साहित थीं।
मेरा विद्यालय आर्थिक और सामजिक रूप से अति पिछड़े इलाके में है। लगभग सभी छात्र – छात्रायें मुस्लिम हैं। मुझसे अधिकतर छात्रों और छात्राओं का विशेष लगाव है। छात्राओं के जागरण और उन्मुखीकरण का कार्य चल रहा था। छात्राओं को मासिक धर्म के बारे में मैं बता रही थी। मैं सप्तम वर्ग में बता रही थी। इस वर्ग की अधिकतर छात्राओं को मैं नाम से भी जानती थी। रुकसाना प्रवीण, मेहरुनिशा, प्यारा खातून, चांदनी खातून, रुखसार प्रवीण, सलीमा खातून, हलीमा खातून इत्यादि तो मुझसे मेरी सगी बेटी जैसी छाया की तरह आस – पास रहने का प्रयास करती थीं।
मुझे भी इनके प्रति आसक्ति की अनुभति होती थी लेकिन मैं तनिक कठोर दिखने का प्रयास करती थी। जब मैं मासिक धर्म की जैविक किया के बारे में बता रही थी तो अधिकतर छात्राओ के चेहरे और भाव – भंगिमा में लज्जा और तनिक उत्साह और उदंडता का मिश्रित भाव था। कुछ के तो मासिक धर्म शुरू हो गए थे जबकि कुछ के नहीं हुए थे। लेकिन लगभग सबको मासिक धर्म होता है, इसकी जानकारी थी। मैं जब बता रही थी कि महिलाओ में एक उम्र के बाद मासिक धर्म अर्थात् माहवारी की जैविक क्रिया का होना सामान्य घटना है, इसमें किसी आश्चर्य या दैविक कृपा या अपराध जैसी कोई बात नहीं है, तभी रुखसार ने इधर उधर देखना शुरू किया,वो मुझसे नजर नहीं मिला रही थी। मैनें डपटते हुए कहा तुम्हारा ध्यान किधर है?
चल खड़ी हो जा.. मैडम जी हम तो ऐसे ही.. समझ नहीं पा रहे थे ना.. रुखसार बोली। क्या नहीं समझ पा रही थीं? मैनें पूछा। वह शर्माते हुए बोली कि आखिर औरतों को ही क्यों होता है .. अल्लाह ने मर्दों को क्यों नहीं.. मुझे अंदाज था कि हो सकता है किसी कोने से यह प्रश्न आए। लेकिन सातवीं कक्षा की छात्रा को आखिर जीव विज्ञान के जटिलता में लेजाकर समझा पाना भी परिपक्वता नहीं होगी। अतः मैनें कहा पुरुषों के शरीर की विशिष्ठ रचना है और उनके प्रजनन संबंधी क्रियाएं स्त्री से भिन्न है, इसलिए उनमें यह संभव नहीं है। सोचो हमें ऊपरवाले में विशेष शक्ति दी है हम सृष्टि का सृजन करते हैं, इसलिए हम विशिष्ट है।
जैसे है विशिष्ट व्यक्ति का अन्य की अपेक्षा विशेष कर्तव्य होता है अतः हमारा भी है। यह कर्तव्य हमारा अपने शरीर के प्रति है और तब ही हम मानवता के प्रति अपना कर्तव्य का निर्वहन कर पाएंगे। अतः हमें अपना सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मेरी बात जारी थीं। कुछ छात्राएं ध्यान से सुन रही थी तो कुछ के मन में प्रश्न उथल – पुथल मचाए हुए थे। मैं आगे बढ़ते हुए रोचक बनाने हेतु पूछा कि क्या तुम लोगों में पैडमैन देखा है। ज्यादातर लड़कियों ने ना में जवाब दिया। कुछ ने हामी भरी। रेहाना खातून हामी भरने वालों में थी। मैनें पूछा बता तो उसमें कौन हीरो है और क्या करता है? रेहाना एक शर्मीली लेकिन होनहार छात्रा थी। थोड़ी झिझक के साथ खड़ी हुई और मेरे हौसला बढ़ाने पर उसने बताया कि इसमें हीरो अक्षय कुमार है और वो पैड के बारे में बतलाता है। फिर वो पूछ बैठी मैम ये पैड क्यों जरूरी है? सुनो!
हमलोगों को जब माहवारी होती है तो शरीर से अवांछित रक्त का स्राव होता है। तू सब जानती होगी की यह स्राव हमारे किस अंग से होता है। इसमें शर्माने या छुपाने की बात नहीं है। जैसा कि मैनें पहले ही बताया कि यह प्राकृतिक नियम है और हमारी विशिष्टता है। यह महीने में तीन से पांच दिनों तक रह सकता है। उन दिनों हमें सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए और कपड़े नहीं पैड प्रयुक्त करने चाहिए। यानी पैड हम महिलाओं के लिए विशेष दिनों के दौरान प्रयुक्त किया जाने वाला विशेष रूप से निर्मित कपड़ा जैसा पदार्थ है लेकिन यह सामान्य कपड़ा नहीं है। इसके उपयोग से हमें संक्रमण का खतरा नहीं होता है जबकि कपड़ा हमें संक्रमित कर सकता है। इसे सैनिटरी पैड भी कहते हैं। एक पैड को एक बार ही प्रयुक्त करना है।
ध्यान रहे ५ दिनों से अधिक माहवारी रहने पर और बहुत अधिक रक्तस्राव होने पर डाक्टर से संपर्क करना चाहिए। मैं अपना काम कर रही थी। सुनो हमें स्नान करना चाहिए। लोगों को यह भ्रम है कि इन दिनों महिलाएं अछूत होती है। हम इन दिनों भी सामान्य होती है किसी किसी को थोड़ी परेशानी होती है। पेट में दर्द भी होता है। अधिक दर्द होने या लगातार अधिक स्राव होने या किसी रक्त क अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार का स्राव होने पर डाक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। गंदगी से बचना आवश्यक है। बच्चों ध्यान रहे यह किसी प्रकार का अभिशाप नहीं है और ना ही यह शर्म की बात है। अपना ख्याल रखने से हम बीमारियों से स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं। यह काम कोई और नहीं कर सकता है।
स्वयं की यह सेवा आने वाले जीवन के प्रति हमारा कर्तव्य भी है।तुम सब समझ गईं कि नहीं। जी मैडम। मैं अपनी बात बताकर संतुष्टि के साथ वर्ग से बाहर निकली। फिर लंच ब्रेक हुआ। थोड़ी देर बाद मैनें देखा रुखसार मेरे आस- पास घूम रही थी। कभी मुझे देखती कभी नजर चुराती। वैसे वो मेरे करीब आने कि कोशिश करती रहती थी। उस दिन उसकी आंखें कुछ कहना चाहती थीं। मैनें उसे बुलाया। वो शर्माते हुए आई। मैनें पूछा क्या बात है, खाना खा लिया? नहीं मैडम जी। खा लूंगी। फिर क्या बात है? इधर उधर क्यों घूम रही हो? उसने सिर झुकाते हुए कहा” मैडम जी बुरा नहीं ना मानिएगा” नहीं नहीं बोलो ,मैनें कहा। मैडम जी जो बात आप हमलोगों को बताए यह सब तो हम लोग के अब्बा अम्मी को बताना चाहिए ना। वो पैड का इंतजाम हमलोग तो नहीं करते ना….” बच्ची ने सहमते हुए जो बात कहा निश्चित रूप से दमदार थी।
मैनें कहा ” मैं तुम्हारी मां से मिलने घर आऊंगी। तुम मुहल्ले की और औरतों को बुलाकर रखना। बोलो कब आऊँ? परसों ठीक रहेगा, संध्या ३.०० बजे ? कल तुम मुहल्ले में बता देना। परसों मैं तुम्हारे साथ चलूंगी” रुखसार प्रसन्न हो गई और बोली ” ठीक है मैडम जी” उछलती हुई रूखसार चली गई। तय समय पर मैं रुखसार के साथ तय स्थान पर गई। वहां १५-२० महिलाएं इकठ्ठा थीं। माहौल उत्सव जैसा था। कुछ महिलाओं के लिए यह बहुत विशेष पल था। कुछ के गंभीर भाव भी थे। धीरे – धीरे और महिलाएं इकठ्ठा हो गईं। सामान्य शिष्टचार के बाद वार्ता शुरू हुई।हमारी वार्ता लगभग एक घंटे तक चली। कुछ महिलाओं ने सामान्य प्रश्न किए, कुछ ने लोक लाज कि बात की। क्रमश स्थिति सामान्य हुई। मेरे सामने बैठी सबीना खातून की आँखें डबडबा गईं।
व्यक्तिगत रूप से विश्वास में लेकर पूछने पर पता चला कि बहुत कम उम्र में ही सबीना की बच्चेदानी में इंफेक्शन के कारण उन्हें कोई संतान नहीं हुई और उनके शौहर में इस बहाने दूसरा निकाह कर लिया। आज वो अपने घर में पराई जिंदगी जी रही है, उनके मायके में भी कोई नहीं है। मैनें सबीना को ढांढस बंधाया और सभा सम्पन्न हुई। इस बैठक के उपरांत महिलाओं की आंखों में विश्वास देखने पर मुझे गर्व और संतोष की अनुभूति हुई। मेरे लिए यह अद्भुत और आनंददायक अनुभव था। मुझे रुखसार की बातों की अहमियत का ज्ञान तो था लेकिन साथ आत्मानुभूति उस समागम में हुई जहाँ इस गंदगी को भोगी हुई महिलाओं के प्रेमाश्रु ने मुझे अनुगृहित किया। मैं अपने शिक्षक धर्म और सामाजिक दायित्व के सफल निर्वहन पर गौरवान्वित थी।
डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘ आर्या ‘ की कलम से…..