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बंपर फसल उत्पादन के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रभेद का करें चुनाव : प्रकाश सिंह

डुमरांव. धान लगाने का समय शुरू हो गया है. बंपर फसल उत्पादन के लिए धान के गुणवत्तापूर्ण प्रभेद के चयन के साथ फसल प्रबंधन बेहद ही जरूरी है. अगर किसान धान के गुणवत्तपूर्ण प्रभेद के चयन के साथ-साथ फसल प्रबंधन पर ध्यान दें, तो वे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं. इसके साथ ही किसानों को बीज की खरीदारी हमेशा प्रमाणित एजेंसी से ही करनी चाहिए. बीज खरीददारी करने को लेकर धान वैज्ञानिक डा प्रकाश सिंह ने जानकारी दी.

बीज का शोधण बेहद जरूरी

एक हेक्टेयर एरिया में धान लगाने के लिए 1ध् 20 भाग एरिया में नर्सरी डालना चाहिए. नर्सरी डालकर बिचड़ा तैयार करना चाहिए. नर्सरी डालने के लिए खेत की अचछी तरह से जुताई कर खर पतवार को निकाल देना चाहिए. खेत में हल्का पाटा चला देना चाहिए.

बीज डालने से पहले बीज का शोधण बहुत जरूरी है. बीज शोधण के लिए फाइरम या कैपटान दवा का घोल बनाकर हल्क पानी में बीज का शोधण करना चाहिए. तीन ग्राम प्रति किलोग्राम में घोल बना लेना चाहिए.

बाबीस्टीन अथवा कैप्टान अथवा थाइरम ढाइ से तीन ग्राम दवा को प्रति किलो बीज में शोधण करना चाहिए. बीज भीगोने के बाद आठ से दस घंटा छाव में सुखा लेना चाहिए. अब बीज को तैयार खेत में छिड़काव कर बिचड़ा तैयार कर लेना चाहिए. धान का का बिचड़ा 20 से 25 दिन के बाद रोपाई की जा सकती है.

खेत में कब डाले बीचड़ा

लंबी अवधी के धान जिसमें राजेंद्र मंसूरी, नाटी मंसूरी, स्वर्णा सभ वन, सबौरा हीरा, सबौर संपन्न आदि 150 से 160 दिन में पैदा होने वाले धान की उपज 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. संसाधन के अनुसार इस धान का बिचड़ा 25 मई से 10 जून के बीच में डालना चाहिए.

मध्यम अवधी के धान इसमें धान सांभा मंसूरी, सबौर श्री, सबौर मंसूरी, सबौर सोना, राजेन्द्र स्वेता, स्वर्णा समृद्धि आदि है. इसकी उपज 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसका बिचड़ा 130 से 145 दिन में तैयार होने वाले हैं. इसका बिचड़ा 10 से 20 जून के बीच में डालना चाहिए.

अल्प अवधी के धान जिसमें राजेंद्र भगवती, राजेंद्र नीलम, सबौर कुंवर, सबौर हर्षित, सबौर मोती, सहभागी, स्वर्णा श्रेया आदि शामिल है. ये धान 110 से 130 दिन पककर तैयार होते हैं. इसकी उपज क्षमता 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसका बिचड़ा 20 से 30 जून के बीच में डालना चाहिए.

धान की सुगंधित किस्म

धान की सुगंधित किस्मों की उपज क्षमता 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसके तैयार होने की अवधी 130 से 160 दिन होती है. सुगंधित किस्मों में राजेंद्र कस्तुरी, सबौर सुरभीत, सबौर सोना, सोनाचुर, भागलपुर कतरनी, गोविंद भोग, राजेंद्र सुहासिनी, कालानमक आदि शामिल है. सुगंधीत धान की नर्सरी 10 से 25 जून के बीच में डालनी चाहिए.

धान के पौधों की दूरी 20-30 सेंटीमिटर पर रखें

धान का बीचडा 20-25 दिन बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाता है. धान की खेत की अच्छी तरह से पानी भरकर जोताई करनी चाहिए. अंत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर देना चाहिए. एक दो पौध की ही रोपाई करनी चाहिए. इससे कल्ले निकलने की संभावना ज्यादा होती है. पौध से पौध की दूरी 20-30 सेंटीमिटर की होनी चाहिए.

ये भी जानना जरूरी

प्रति हेक्टेयर खेत में मध्यम एवं लंबी अवधी के लिए 120 किलोग्राम न नाइट्रोजन, 50 से 60 किलोग्राम फासफोरस और 35 से 40 किलोग्राम पोटास तथा 5 से 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रयाप्त होता है. उर्वरकों का आधा मात्रा एवं फासफोरस की पूरी मात्रा रोपाई के समय कर लेनी चाहिए. नाइट्रोजन एवं पोटास की आधी मात्रा को कल्ले निकलते समय रोपाइ से 30-40 दिन बाद और फूल निकलने के एक सप्ताह पहले दो बार में उपयोग करना चाहिए.

प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा

मोटे धान में 15-20 किलोग्राम, मध्यम धान में 12-15 किलोग्राम और महीन धान में 10-12 किलोग्राम. प्रति हेक्टेयर बीज प्रयाप्त होता है. राज्य के कृषि विश्विद्यालयों के अधीन कृषि विज्ञान केंद्रों और शोध संस्थानों में बीज बिक्री के लिए उपलब्ध है.

परंपरागत खेती के साथ वैज्ञानिकों एवं कृषि पदाधिकारियों की सलाह जरूरी

धान की अच्छी उपज के लिए नौ विकसित प्रभेदों का चयन और गुणवत्तापूर्ण बीज को ही किसान भाई को प्रयोग करना चाहिए. जिससे उन्हें अच्छी उपज की प्राप्ती हो सके. धान की खेती के दौरान परंपरागत खेती के साथ वैज्ञानिकों एवं कृषि पदाधिकारियों की सलाह के अनुसार खेती करने से अच्छी उपज प्राप्त होगी.

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