वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज के हरियाणा फार्म पर प्रक्षेत्र दिवस एवं फसल संगोष्ठी का आयोजन

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डुमरांव. प्रक्षेत्र दिवस एवं फसल संगोष्ठी का आयोजन जलवायु (मौसम) के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज के हरियाणा फार्म पर मनाया गया. परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक डा. आनंद कुमार जैन ने विस्तार पूरक चल रहंे प्रयोगों के बारे में उपस्थित विभिन्न गांवों से आये किसानों को अवगत कराया, कहां की आज आवश्यकता है कि बदलते जलवायु के अनुकूल खेती करने कि आवश्यकता है. जिसमें फसल चक्र, फसल अवशेष प्रबंधन तथा विभिन्न गेहूं के प्रभेदों के बारे में कहां कि फसल चक्र अपनाने से फसलों के उत्पादकता के साथ आर्थिक लाभ एवं मिट्टी की उर्वरता शक्ति में सुधार होता है.

उन्होंने कहां कि जलवायु के अनुकूल खेती से फसल चक्र में सुधार देखने को मिल रहा है. इससे मौसम में बदलाव का असर कम हुआ है और फसल की उत्पादकता भी बढ़ी है. फसल अवशेष प्रबंधन के बारे जानकारी देते हुए डा. जैन ने बताया कि किसानों के समक्ष फसलों के अवशेष खेत में जलाने की समस्या बीते कई वर्षों से देखी जा रही है. देश में कई क्षेत्र ऐसे है, जहां अगली फसलों की बुवाई तथा खेत तैयार करने के लिए किसान फसलों के अवशेषों को जला देते हैं. यह उन क्षेत्रों में देखा गया है, जहां धान और गेहूं की फसल की कटाई कम्बाइन हार्वेस्टर से की जाती है. जिससे बची हुई फसलों के अवशेष जलाए जाने के कारण न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है.

साथ ही साथ मिट्टी में उपलब्ध कई पोषक तत्त्व नष्ट होने के कारण मिट्टी को काफी नुकसान पहुंच रहा है. यदि किसान भाई इन फसल अवशेषों को खेत में मिलायेंगे तो न केवल मिट्टी अधिक उपजाऊ होगी. बल्कि खाद पर होने वाले खर्च पर करीब दो हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की बचत होगी. हैप्पी सीडर यंत्र का इस्तेमाल कर के हम धान की पराली को खेत से निकाले बिना गेहूं की बुआई कर सकते हैं, जो कि यहां पर किसान भाई आप लोग देख रहे हैं. इस यंत्र के द्वारा एक दिन में करीब 6 से 8 एकड़ खेत की बुआई की जा सकती है. समय एवं मेहनत की बचत होती है.

मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है. डा. जैन ने संगोष्ठी में गरमा मूंग के बारे में बताया कि दलहन फसल लगाने से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. इससे खरीफ फसल की अच्छी पैदावार होगी. ग्रीष्म में खरपतवारों का प्रकोप कम होता है. कम आद्रता के कारण बीमारियों व कीड़ों का प्रकोप कम होता है.जल्दी पकने से वर्षा इत्यादि से बचाव होता है, प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग हो जाता है. किसानों की अतिरिक्त आय हो जाती है. इस कार्यक्रम में परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक डा. अखिलेश कुमार सिंह एवं तकनीकी सहायक इंजीनियर अनमोल कुमार उपस्थित थे. आस-पास के विभिन्न गांवों से किसानों ने भाग लिया, जिसमें महिलाएं भी शामिल थी.

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