सीतामढ़ी। जिले को फाइलेरिया मुक्त बनाने की दिशा में स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। इसी के तहत जिलेभर में फाइलेरिया क्लिनिक (एमएमडीपी) की शुरुआत की जा रही है। बुधवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, बेलसण्ड और पुपरी में एमएमडीपी (फाइलेरिया) क्लिनिक का शुभारम्भ हुआ। बेलसंड में अनुमंडल अधिकारी शिवानी शुभम और जिला भीबीडी नियंत्रण पदाधिकारी ने संयुक्त रूप से क्लिनिक का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर 20 हाथी पाँव के मरीजों को एमएमडीपी किट भी वितरित किया गया। उन्हें स्वऊपचार के साथ-साथ पैर की देखभाल, व्यायाम तथा सही तरह के चप्पल पहनने आदि के बारे में मे प्रशिक्षण भी दिया गया। इस सप्ताह तक जिले के सभी पीएचसी में एमएमडीपी (फाइलेरिया) क्लिनिक की शुरुआत हो जाएगी।
फाइलेरिया मरीजों को मिलेगी बेहतर सुविधा
जिला भीबीडी नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. रवीन्द्र कुमार यादव ने बताया कि इस क्लिनिक को खोलने का मकसद है कि फाइलेरिया जैसी बीमारी को रोका जा सके। फाइलेरिया पीड़ित मरीजों को बेहतर सुविधा मुहैया कराने एवं क्लीनिकल ट्रीटमेंट उपलब्ध कराने को लेकर इसकी शुरुआत की जा रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों व हेल्थ एण्ड वेलनेस सेन्टर पर एमएमडीपी क्लिनिक खोला जा रहा है, ताकि लोगों को परामर्श हेतु बहुत दूर नहीं जाना पड़े।
जो फाइलेरिया रोगी जिला मुख्यालय तक नहीं आ सकते, उनके लिए उनके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों पर उपचार और जरूरी सुविधाएँ भी मिलेंगी। उन्होंने बताया कि समेकित सहभागिता से कालाजार की तरह फाइलेरिया से भी सीतामढ़ी मुक्त होगा। जिले में अभी 4664 हाथीपांव के मरीज, जबकि 774 हाइड्रोसील के मरीज हैं।
दूर्गा पूजा के बाद होगा नाईट ब्लड सर्वे
डॉ. यादव ने बताया कि बेलसण्ड में सबसे अधिक फाईलेरिया के रोगी पताही गाँव में चिन्हित हुए हैं। वहाँ दूर्गा पूजा के बाद शिविर लगाकर रात्रिकालीन रक्त जाँच किया जायेगा। इसी तरह सभी प्रखण्डों के सर्वाधिक प्रतिवेदित गाँव में रात्रि रक्त जाँच सर्वे किया जायेगा। सरकार फाइलेरिया से मुक्ति हेतु कटिबद्ध है।
इस अवसर पर अनुमंडल पदाधिकारी ने भी आशा कार्यकर्ता तथा जनप्रतिनिधियों से एक-एक मरीज को चिन्हित करने तथा सभी को अस्पताल भेजने एवं बताये गये तरीके से पैरों की देखभाल करने का अनुरोध किया। आशा एवं जन प्रतिनिधियों से नाइट ब्लड सर्वे में सहयोग कर इसे सफल बनाने का आह्वान किया।
फाइलेरिया एक घातक बीमारी
जिला भीबीडी नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. रवीन्द्र कुमार यादव ने बताया कि हाथीपाँव एक लाइईलाज बीमारी है जो क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। संक्रमण के बाद इसके लक्षण प्रकट होने में 5 से 6 वर्ष लग जाते हैं। सही व समुचित देखभाल के अभाव में यह हाथीपाँव का रूप ले लेता है।
परन्तु इससे बचाव बहुत ही आसान है। डीईसी और अल्बेन्डाजोल की एक खुराक साल में एक बार सभी को (2 वर्ष से छोटे बच्चे, गर्भवती स्त्री और गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को छोड़कर) अवश्य खानी चाहिए। इस बार नवम्बर माह में आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर दवा की खुराक खिलायेंगी।