डुमरांव. वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज द्वारा ग्राम करवच में चौपाल का आयोजन किया गया। जिसमें पशु विज्ञान विभाग के डा. राजकुमार शाह ने विस्तार पूर्वक उपस्थित ग्रामीणों को लिप्पी वायरस के बारे में जानकारी दी। डा. शाह ने कहां कि ये एक वायरल बीमारी है, जो एक पशु से दूसरे पशु में पहुंचती है. जब शरीर पर गांठें और घाव होते है, तो उस पर मच्छर और मक्खियां बैठती है। इन घावों से उठकर मच्छर दूसरे पशुओं के शरीर पर बैठते है। उनका खून चूसते है. तो ये बीमारी उस पशु में भी पहुंच जाती है।
ये एक वायरल संक्रमण है
इसके अलावा बीमारी पशु के झूठे पानी और चारे को दूसरा पशु खाता है, तो लार की वजह से एक से दूसरे में ये बीमारी पहुंच जाती है। ये एक वायरल संक्रमण है। जिसका सीधे तौर पर कोई इलाज नहीं है। लेकिन जैसे कोरोना से बीमार होने पर इंसान को बुखार नियंत्रण और एनर्जी की कई दवाईयां दी जाती थी। वैसे ही इस बीमारी में भी पशु के बुखार को नियंत्रित करने, शरीर के घावों पर नियंत्रण और गांठों को कम करने के लिए अलग-अलग तरह की दवाईयों का इस्तेमाल लिया जा रहा है
पशु में लक्षण दिखते ही सावधान हो जाएं
इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए कोई एक दवा दी जा सकती है। इसके अलावा पशु चिकित्सक से सलाह लेकर ब्रोड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक और एक कैल्शियम का इंजेक्शन दिलाने से भी फायदा मिल सकता है। चूंकी ये एक वायरल बीमारी है। इसलिए इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बुखार नियंत्रित करने और घाव को बढ़ने से रोकने के लिए कई तरह की अलग अलग दवाएं बाजार में है, जिसका इस्तेमाल लोग कर रहे है। लेकिन अभी तक कोई ऐसी बीमारी सामने नहीं आई है। जो वैश्विक स्तर पर इसी बीमारी के इलाज के लिए मान्यता प्राप्त हो। डा. राजकुमार ने कहा किसी पशु में लक्षण दिखते ही सावधान हो जाएं।
बीमार जानवर को खुला नहीं छोड़ना चाहिए
बीमार पशु को तुरंत अन्य पशुओं से अलग कर दें। बीमार पशु के खाने-पीने की व्यवस्था अलग करनी चाहिएं। बीमार पशु का जूूठा दूसरे पशुओं को नहीं खिलाना-पिलाना चाहिए। बीमार जानवर को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि खुले में वो भी घास खाएगा। उसी घास पर बीमार पशु की लार भी लगेगी। जिससे वो अन्य पशुओं में भी फैलेगी। ऐसे कीटनाशकों का स्प्रे करें। जिससे मच्छर, मक्खियां उस पशु को न काटें। डा. आनन्द कुमार जैन ने हरे चारे की फसलों के बारे में जानकारी दी। पशुओं के भोजन में हरे चारे की एक खास भूमिका होती है। यह दुधारु पशुओं के लिए फायदेमंद भी होता है।
हरे चारे का इंतजाम करने में परेशानी होती है
हरे चारे के रूप में किसान अनेक फसलों को इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कुछ फसलें ऐसी होती हैं, जो लम्बे समय तक नहीं चल पाती हैं। यहाँ कुछ खास फसलों के बारे में जानकारी दी गई है, जो सेहतमंद होने के साथ-साथ लम्बे समय तक हरा चारा मुहैया कराती हैं। भारत के जो किसान खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं, उनके लिए दुधारु पशुओं और पालतू पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या से दोचार होना पड़ता है। बारिश में तो हरा चारा खेतों की मेंड़ या खाली पड़े खेतों में आसानी से मिल जाता है, परन्तु सर्दी या गरमी में पशुओं के लिए हरे चारे का इंतजाम करने में परेशानी होती है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित थे करवच के 20 किसान
डा. जैन ने कहां कि ऐसे में किसानों को चाहिए कि खेत के कुछ हिस्से में हरे चारे की बुआई करें, जिससे अपने पालतू पशुओं को हरा चारा सालोें भर मिलता रहे। चौपाल में इस पशु प्रशिक्षण कार्यक्रम में ग्राम करवच के 20 किसान थे। यह कार्यक्रम पंचायत भवन में आयोजित किया गया। अंत में डा. अखिलेश ने उपस्थित किसानों का आभार एवं धन्यवाद व्यक्त किया और कहां की भविष्य में इस तरह के कार्यक्रम, जिसमें पशुओं के बीमारियों के बारे में जानकारी मिलती रहेगी।