डुमरांव. कहां जाता है कि विद्या दान सर्वोत्तम दान होता है. खासकर तब वो ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, जब संसाधनों से वंचित इलाके में कोई अपने जीवन को बच्चों को शिक्षित करने में गुजार दे. जी हां, बक्सर जिले के कोरान सराय पंचायत के कचईनिया गांव में एक ऐसे ही आदर्श शिक्षक हैं. जिनका नाम बबन पांडेय. जिनकी शुरू से हॉबी रही ग्रामीण इलाके के बच्चों को शहर से भी बेहतर शिक्षा देने की. उनके इस प्रयास ने 35 सालों में हजारों बच्चों के भविष्य को संवारा है. वर्तमान में बबन पांडेय से विद्यार्जन करने वाले बच्चे देश के विभिन्न कोनों में राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं. कई बच्चें सरकारी बैंकों में सीनियर मैनेजर, जेनरल मैनेजर के रूप में कार्यरत हैं. वहीं दूसरी ओर कई बच्चे राष्ट्रीय स्तर के मीडिया संस्थानों में अपनी सेवा दे रहे हैं.
प्रतिभाशाली बच्चों पर रहता है विशेष ध्यान
बबन पांडेय ने बीएड करने के बाद ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने की शुरुआत की. कम संसाधनों में उन्होंने बच्चों को बेहतरीन शिक्षा दी और आज भी पिछले 35 साल से बच्चों को अनवरत पढ़ा रहे हैं. प्रतिभाशाली बच्चों पर उनका विशेष ध्यान रहता है, उन्हें वे इनकरेज करते हैं. वे कहते हैं- उन्होंने कभी शिक्षा शुल्क पर ध्यान नहीं दिया. कई बार प्रतिभाशाली बच्चों के पास पैसे नहीं होते, लेकिन उन्होंने उनकी पढ़ाई कभी बंद नहीं कि. उनका कहना है कि उन्होंने कभी भी शिक्षा के मंदिर में पैसे की एंट्री नहीं होने दी. वे हमेशा एक नॉन प्रॉफिट संस्थान की तरह अपना ग्रामीण कोचिंग चलाते रहे.
बच्चे आज भी आते हैं और शिक्षा ग्रहण करते हैं. बिहार सरकार की ओर से कई गैरसरकारी शैक्षणिक संस्थानों को बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने के लिए अनुदान मिलता है, लेकिन बबन पांडेय पूरी तरह से बिना किसी मदद के समर्पित होकर बच्चों को पढ़ाते हैं.
5वीं से लेकर ग्रेजुएशन तक के स्टूडेंट्स
बक्सर जिले के किसी ग्रामीण इलाके में स्टैडर्ड शिक्षा देने का अलख किसी ने जगाया है, तो वो नाम है बबन पांडेय. ग्रामीण अभिभावक, गुलाबचंद, अजीत कुमार सहित विजय साहू सहित विपिन बिहारी तिवारी बताते हैं कि बबन पांडेय की पढ़ाने की शैली इतनी सुंदर है कि बच्चों को दूसरी जगह पढ़ना पसंद नहीं आता. एक बार जब वे उनके यहां पढ़ लेते हैं तो कहीं और जाने का नाम नहीं लेते. पांचवी से लेकर ग्रेजुएशन तक के स्टूडेंट्स को साइंस और मैथ में परांगत कर देना बबन पांडेय की खासियत रही है.
आज भी गांव में हाईटेक स्कूलों और कोचिंगों के आडंबर से दूर बबन पांडेय का शिक्षा का मंदिर चल रहा है. जहां शुल्क कोई मायने नहीं रखता, बल्कि प्रतिभा मायने रखती है.
रोज़ाना 50 बच्चें आते हैं नियमित रूप से पढ़ने
समाजसेवी सुमित गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने शिक्षा को लेकर इस तरह के समर्पित शिक्षक को आजतक नहीं देखा. जिन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चों को पढ़ाने में होम कर दिया. बबन पांडेय के पास रोजाना पचास बच्चे नियमित रूप से पढ़ने आते हैं, वहीं उनके छोटे से स्कूल में सैकड़ों बच्चे ज्ञानर्जन कर रहे हैं. बबन पांडेय के पढ़ाए बच्चों ने कई प्रतियोगी परीक्षाओं में नाम किया है और आज देश के विभिन्न कोने में सेवा दे रहे हैं.
कई बार उनके पास ऐसे अभिभावक आते हैं जिनके पास बच्चों को अतिरिक्त शिक्षा या टियूशन देने की हैसियत नहीं होती. उनके बच्चों को भी वे प्रेम से पढ़ाते हैं. अंग्रेजी, हिंदी और मैथ के अलावा कई विषयों पर पकड़ रखने वाले बबन पांडेय बक्सर जिले के वो ज्ञानदाता वॉरियर हैं, जो लगातार 35 सालों से ग्रामीण बच्चों में आदर्श शिक्षक के तौर पर अलख जगा रहे हैं.