मुजफ्फरपुर : परम्परागत फूड दिलाएगा मां एवं शिशु को पोषणयुक्त थाली

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मुजफ्फरपुर। पूरा भारत 1 सितंबर से 30 सितंबर तक पोषण माह मनाएगा। पोषण माह मनाने की परंपरा देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में शुरू की। जिसे इस वर्ष 2022 में एक नई सोच और नए आयाम के साथ मनाया जा रहा है। पोषण माह खास तौर पर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में पोषण का स्तर ठीक रखने को लेकर मनाया जाता है। राष्ट्रीय पोषण माह 2022 के इस बार चार बेसिक थीम हैं- महिला एवं स्वास्थ्य, बच्चा व शिक्षा, पोषण भी पढ़ाई भी, लैंगिक संवेदनशीलता के साथ जल संरक्षण व प्रबन्धन एवं आदिवासी क्षेत्र में महिलाओं व बच्चों के लिए पारंपरिक खान-पान। यह बातें आईसीडीएस में जिला समन्वयक और डायटिशियन सुषमा सुमन ने कही।

उन्होंने कहा कि इस वर्ष पोषण माह का मुख्य फोकस महिला और बच्चे के स्वास्थ्य की बढ़ोतरी पर है। वह कहती हैं कि भारत में सभी के पास इतने संसाधन नहीं है कि वे किसी डायटिशियन के पास जाएँ या विशेष प्रकार का डायट चार्ट फॉलो कर सकें। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम जो भी खाएं वह भोजन अपने आप में संपूर्ण और पोषण से युक्त हो।

परंपरागत भोजन है सर्वश्रेष्ठ

डायटिशियन सुषमा सुमन कहती हैं कि खाने के संबंध में हमारी संस्कृति बहुत ही समृद्ध रही है। ग्रामीण परिवेश से दूरी और पाश्चात्य संस्कृति से नजदीकी ने हमारी थाली से पोषक तत्वों को छीन लिया है। मेरा सुझाव होगा कि हम अपने खाने में जितना साबूत अनाज शामिल करेंगे, उतना ही हम पोषक तत्वों से भरपूर रहेंगे। चना, अलसी, जौ, बाजरा, मड़ुआ, सोयाबीन, लाल साग, गेनारी का साग, नींबू, पपीता, दाल आदि का सेवन हमेशा करें। साबूत अनाज हरेक नजरिए से हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है।

नवजात के सुनहरे एक हजार दिन

डायटिशियन सुषमा सुमन के अनुसार, किसी भी नवजात के लिए उसके दो वर्ष तक का पोषण महत्वपूर्ण होता है। यह उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है। इस एक हजार दिनों में गर्भवती के वह नौ महीने भी आते हैं। प्रथम तीन महीने में तो गर्भवती को अतिरिक्त पोषण की उतनी जरूरत नहीं होती पर दूसरी तिमाही में 150-200 कैलोरी तथा 12 ग्राम प्रोटीन की अतिरक्त आवश्यकता होती है। कैलोरी और प्रोटीन की यही मात्रा तीसरी तिमाही में 350 कैलोरी और 15 से 18 ग्राम बढ़ जाती है। किसी भी धात्री महिला को 550 कैलोरी तथा 25 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता भी अतिरिक्त होती है। छह महीने तक नवजात को सिर्फ मां का दूध देना है। इसके अतिरिक्त पानी या किसी अन्य तरह का लिक्विड भी नहीं देना होता है। छह महीने के बाद सेमी फूड, जैसे दाल का पानी, प्लेन खिचड़ी मैसा हुआ, साबुदाने की खीर से क्रमशः बढ़ते हुए हम एक वर्ष के बाद सॉलिड फूड देना चालू कर सकते हैं।

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किशोरियों में पोषण का ख्याल जरूरी

सुषमा सुमन कहती हैं कि किशोरियां जिनकी उम्र 15 से 19 वर्ष हैं, सबसे ज्यादा एनिमिक पायी जाती हैं। ऐसे में हम उस पीढ़ी को कुपोषित देखते हैं जो आगे चलकर गर्भ धारण करने वाली  हैं। इसके लिए उन्हें भी पोषण का समुचित ख्याल रखना चाहिए। अपने खाने में दाल, साग और हरी सब्जी की अधिकता रखनी चाहिए।

कुपोषण भी हो सकता है थकान और हाइपरग्लेसेमिया का कारण

थकान और हाइपरग्लेसेमिया यह दर्शाता है कि आपके शरीर में किसी न किसी रूप में पोषक तत्वों की कमी है। आप में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन की कमी न हो इसके लिए दाल खाइए। मछली, अंडा या सोयाबीन भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसके अलावे जितने भी तरह के साग सब्जी हैं, उनमें विटामिन और कैल्सियम प्रचुर मात्रा में होती है। अलसी ओमेगा3 और फैटी एसिड का बड़ा और सस्ता स्रोत है। धनिया पत्ते की चटनी और टमाटर भी पोषण से भरपूर है। हमें बस अपना नजरिया परंपरागत भोजनों पर एकत्र करना है और हमें पोषण से भरपूर थाली अपने सामने मिलेगी।

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