डुमरांव. आदर्श ग्राम दक्षिण टोला में वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज के वैज्ञानिकों द्वारा मिर्च की उन्नत खेती के बारे में जानकारी दी गई. वैज्ञानिकों ने कहां की हरी मिर्च का उपयोग पूरी दुनिया में एक खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है. इसका उत्पादन पूरे दुनिया में होता है. बाजार में इसकी मांग सालों भर रहती है. मिर्च का ज़ायका काफी तीखा होता है. इसका उपयोग अचार, मसाले, सब्जी, औषधीय और सास बनाने में होता है. डा. अखिलेश कुमार सिंह ने बताया कि हरी मिर्च की खेती लगभग हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है. अच्छी पैदावार के लिए हल्की उपजाऊ और पानी के अच्छे निकास वाली ज़मीन जिस में नमी हो, इसकी खेती के लिए अनुकूल होती है.
हरी मिर्च की फसल अधिक पानी में नहीं उगाई जा सकती
मिर्च की अच्छी पैदावार के लिए जमीन की पीएच छह-सात के औसत में अनुकूल होती है. इसके अलावा मिर्च की खेती के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है, जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो. चौपाल कार्यक्रम के संचालक डा. आनंद कुमार जैन ने कहां कि हरी मिर्च की फसल अधिक पानी में नहीं उगाई जा सकती है. इसलिए सिंचाई आवश्यकतानुसार ही करें. ज्यादा पानी देने के कारण पौधे के हिस्से लंबे और पतले आकार में बढ़ते हैं और फूल गिरने लगते हैं. हालांकि सिंचाई की मात्रा और मिट्टी और मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है. यदि पौधा शाम के चार बजे के करीब मुरझा रहा हो, तो इससे पता चलता है कि पौधे को सिंचाई की जरूरत है.
20 से 25 दिन बाद पहली निंदाई
फूल निकलने और फल बनने के समय सिंचाई बहुत जरूरी है. कभी भी खेत या नर्सरी में पानी न रूकने दें. इससे फसल में फंगस पैदा होने का खतरा होता है. खरपतवार नियंत्रण के बारे में डा. जैन ने किसानों को बताया कि मिर्च की नर्सरी की रोपाई होने के 20 से 25 दिन बाद पहली निंदाई और दूसरी निंदाई 35 से 40 दिन बाद करें. जिससे खरपतवार नियंत्रण के साथ साथ मृदा नमी का भी संरक्षण करें. अगर आप खरपतवारनाशी से खरपतवार की रोकथाम करना चाहते है तो 300 ग्राम आक्सीफ्ल्यूओरफेन का पौध रोपण से ठीक पहले छिड़काव 600 से 700 लीटर पानी घोलकर प्रति हेक्टेयर स्प्रे करें. अंत में उपस्थित किसानों का आभार व धन्यवाद डा. अखिलेश कुमार सिंह ने दिया.