सीतामढ़ी। कोई भी बदलाव एक दिन में संभव नहीं होता है। इसके लिए सकारात्मक सोच एवं सुनियोजित तरीके से निरंतर प्रयास करने की जरूरत होती है। कुछ ऐसी ही सोच रखने वाली डुमरा पीएचसी में कार्यरत वरीय यक्ष्मा पर्यवेक्षिका श्वेतनिशा सिंह हैं, जो क्षेत्र में बदलाव लाकर टीबी के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में सफल हुई हैं। क्षेत्र में टीबी के प्रति लोगों की सोच बदलने में उनकी एक अलग पहचान बनी है। कोरोना महामारी के दौरान भी गृह भ्रमण के दौरान समुदाय को जागरूक करने में उनकी भूमिका सराहनीय रही है।
सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य टीबी पर जन-भागीदारी बढ़ा कर इसे जनांदोलन में तब्दील करना है। श्वेतनिशा का प्रयास भी टीबी पर जन-भागीदारी को सुनिश्चित करने के साथ जिले को टीबी मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है। इनके प्रयास का सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। घर-घर जाकर टीबी मरीजों की तलाश करना और इसके खिलाफ लोगों को जागरूक करना श्वेतनिशा को अन्य से अलग करता है।
टीबी रोगियों के लिए काम करना सुनहरा अवसर
श्वेतनिशा सिंह ने बताया कि मेरे लिए यह एक सुनहरा अवसर था कि मैं टीबी रोगियों के लिए काम कर सकूं। उन्होंने बताया कि वे क्षेत्र में गृह भ्रमण कर मरीजों को नियमित दवा का सेवन करने के लिए जागरूक करती हैं। परिवार के सदस्यों को भी समझाती हैं कि टीबी रोगी के साथ किसी भी तरह का भेदभाव न करें। उसे प्यार और सहयोग दें। आधी बीमारी तो वैसे ही ठीक हो जाएगी। टीबी पूरी तरह से ठीक होने वाली बीमारी है। यदि घर व पड़ोस में किसी को भी टीबी के लक्षण दिखें तो निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर जाएं। स्वास्थ्य केंद्र पर जांच एवं इलाज निःशुल्क उपलब्ध है। डॉट सेन्टर पर जाएं और वहां दी गई सलाह को मानें।
घर समाज का मिल रहा साथ
श्वेतनिशा सिंह ने बताया कि मुझे शुरू से ही घर और परिवार का भरपूर साथ मिला। लोगों ने मेरे मन को समझा है और सम्मान भी दिया है। उनकी एक डेढ़ वर्ष की मासूम बच्ची है। जिसपर वो ढेर सारा प्यार लुटाती हैं, लेकिन इस बीच वो मरीजों को भी नहीं भूलतीं। प्रतिदिन फील्ड में मरीजों के बीच घंटों समय बिताती हैं। उन्हें समझती हैं। श्वेतनिशा ने बताया कि हम टीबी मरीजों के इतने पास होते हैं कि 90 प्रतिशत हमें संक्रमण का खतरा होता है, पर मरीजों के चेहरे की मुस्कान जीवन के सारे दर्द को दूर कर देती है।