बिस्मिल्लाह खान के पुण्यतिथि पर विशेष : ख्वाहिश रह गई अधूरी, इंडिया गेट पर शहनाई बजा शहीदों को देना चाहते थे श्रद्धांजलि 

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डुमरांव (रिर्पोट – मनोज कुमार मिश्रा ) : आज से 16 साल पहले आज ही के दिन शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खान दुनिया को अलविदा कह गए. वाराणसी में जब उनको सुपुर्द ए खाक किया गया तो उनकी एक शहनाई भी उन्हीं के साथ दफन की गई थी और भारतीय सेना द्वारा 21 गन सैल्यूट के राजकीय सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी गई थी. उनके जन्म स्थली वाले डुमरांव शहर में यादों के संजोने के लिए कुछ नहीं बचा. भारत रत्न और प्रख्यात शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की आज पुण्यतिथि है. दुनिया भर के मंचों पर शहनाई को पहुंचाने का श्रेय उनके हिस्से में जाता है. बिहार सरकार भी भारत रत्न प्राप्त शहनाई के जादूगर कहें जाने वाले खान साहब के नाम पर कुछ नहीं किया. केवल आश्वासन तक मिलता रहा. सरकारी बदलती रही, जनप्रतिनिधि बदलते रहे। लेकिन डेढ़ दशक बाद भी उनके यादों को सजाने के लिए उनके शहर में कुछ भी नहीं होना अपने आप में एक बड़ा सवाल है. 

बड़े भाई के साथ चर्चित रही जुगलबंदी 

कभी प्रखंड मुख्यालय परिसर में उनके नाम पर एडोटोरियम बनाने की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन वह भी धुधला पड़ गया. आज की पीढ़ी ने उनका नाम तो सुना है, लेकिन बहुत सारी बातें उनके बारे में पता नहीं होतीं. दिल का खिलौना हाय टूट गया. यह गीत जब लोग सुनते है, तो अक्सर खान साहब की याद आ जाती है. उन्हें अपनी शहनाई से बहुत प्यार था, तभी वो उसे अपनी बेगम कहते थे, जब उनको सुपुर्द ए खाक किया गया तो साथ में उनकी एक शहनाई को भी दफना दिया गया था. बिस्मिल्लाह खान अपने बड़े भाई शमशुद्दीन खान के साथ शुरुआत में जुगलबंदी किया करते थे, दोनों काफी चर्चित हो चले थे, लेकिन शमशुद्दीन की कम उम्र में मौत ने ये जोड़ी तोड़ दी.

शहनाई के जरिए शहीदों को देना चाहते थे श्रद्धांजलि 

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की आखिरी इच्छा मरते दम तक पूरी नहीं हो पाई थी. लाल किले से लेकर ब्रिटेन की महारानी के दरबार तक में शहनाई बजा चुके बिस्मिल्लाह खान की बड़ी ख्वाहिश थी कि वो एक दिन इंडिया गेट पर शहनाई बजाएं और इसका एक खास मकसद था, वो शहीदों को अपनी शहनाई के जरिए श्रद्धांजलि देना चाहते थे.

सोमा घोष को बेटी मानते थे उस्ताद 

बिस्मिल्लाह खान के 3 बेटे और 5 बेटियां थीं, फिर भी उन्होंने एक लड़की को अपनी बेटी मान लिया था, जो आज शास्त्रीय गायिका सोमा घोष के तौर पर जानी जाती हैं. सोमा भी बनारस से थीं, एक कंसर्ट में उन्होंने बिस्मिल्लाह खान को आमंत्रित किया था, वहां वो उनकी गायकी सुनकर दंग रह गए. इससे उन्हें अपनी फेवरेट रसूलन बाई की याद आ गई, तब से वो उन्हें बेटी मानने लगे, और सोमा उन्हें ‘बाबा’.

उस्ताद के पिता राजदरबार में थे संगीतकार 

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बिस्मिल्लाह खान का असली नाम कमरुद्दीन था, क्योंकि बड़े भाई का नाम शमशुद्दीन था, सो पिता ने मिलता जुलता नाम कमरूद्दीन रख दिया. उनका जन्म बिहार के डुमरांव में हुआ था, उनके पिता वहां के राजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में संगीतकार थे.

संगीत बिना अधूरा थे, सरस्वती की पूजा करते थे उस्ताद 

बिस्मिल्लाह खान शिया थे और इसके चलते कट्टर शियाओं के विरोध का उनको शुरुआत में सामना करना पड़ा था, वो कहते थे कि संगीत इस्लाम में हराम है, लेकिन संगीत उनकी नस-नस में था, वो सरस्वती की पूजा करते थे और संगीत के बिना जिंदा नहीं रह सकते थे. एक बार तो उन्होंने ये भी कहा था, कि जब भी मुझे कहीं शहनाई बजानी होती है, मैं अपनी शहनाई को बाबा विश्वनाथ के मंदिर की दिशा में रखता हूं.

मोहर्रम के जुलूस में पसंद था शहनाई बजाना

उनकी हमेशा ये कोशिश रहती थी कि वो मोहर्रम के दिन बनारस में ही रहें, उन्हें मोहर्रम के जुलूस में शहनाई बजाना काफी पसंद था, कहते थे, ‘ये सब हुसैन की खिदमत है’. जब वो ह्वील चेयर पर आ गए, तब भी कई बार जब तक मुमकिन हो सका, उन्होंने इस परम्परा को जारी रखा था.

उस्ताद के नाम पर होगा पुस्तकालय का नाम

स्थानीय विधायक डा. अजीत कुमार सिंह ने पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देते हुए कहां कि शहर के छठिया पोखरा स्थित निर्माण हुए पुस्तकालय का नाम उस्ताद के नाम पर होगा. 

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