आरा | जिला सहित पूरे राज्य में 1 से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जा रहा है। वहीँ सरकार ने 2025 तक देश को टीबी रोग से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत जिले में जिला यक्ष्मा केंद्र का टीबी के खिलाफ मजबूती से काम चल रहा है। टीबी की दवा नियमित रूप व अवधि तक खाने से यह पूर्णत: ठीक हो सकता है। चिकित्सकों एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार टीबी संक्रमित माताएं भी अपने नवजात को स्तनपान करा सकती हैं।
संक्रमित माता के दूध से उसके नवजात को कोई हानि नहीं
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा ने बताया कि टीबी संक्रामक बीमारी जरूर है और इससे सुरक्षा के लिए सावधानी बरतना जरूरी है। किंतु एक महिला जो कि टीबी से संक्रमित माता भी है वह अपने नवजात को आराम से स्तनपान करा सकती है। उन्होंने बताया कि मां के दूध में मायिकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस बैसिलि नहीं पाए जाते हैं और अगर मां टीबी की दवा खा रही हो, तो भी दूध में काफी कम मात्र में दवा का अंश प्रवाहित होता है। इसलिए संक्रमित माता के दूध से उसके नवजात को कोई हानि नहीं होती है। डॉ. सिन्हा ने बताया कि स्तनपान कराते समय संक्रमित माता मास्क जरूर पहनें और यदि संभव हो तो अपना चेहरा शिशु की तरफ नहीं रखें। इससे दूध पीता शिशु संक्रमण से सुरक्षित रहेगा।
नए मरीजों की हो रही खोज
डॉ. सिन्हा ने बताया जिले में टीबी मरीजों की खोज की जा रही है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग सजग है। सदर अस्पताल से लेकर अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में शिविर लगाकर लोगों की जांच की जाती है। इसके अलावा ईंट-भट्ठों, झुग्गी झोपड़ियों, धूल-मिट्टी से भरे कार्य स्थलों आदि पर समय जांच शिविर भी लगाए जाते हैं। अगर जांच में टीबी रोग के लक्षण पाएं जाते हैं, तो इसका इलाज शुरु किया जाता है। साथ ही, उसकी पूरी जानकारी निक्षय पोर्टल पर दी जाती है। उसके बाद टीबी के मरीजों को उचित खुराक उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से निक्षय पोषण योजना चलायी गई है। जिसमें टीबी के मरीजों को उचित पोषण के लिए 500 रुपये प्रत्येक महीने दिए जाते हैं। यह राशि उनके खाते में सीधे पहुंचती है।
एमडीआर टीबी हो सकता है गंभीर
डॉ. सिन्हा ने बताया एमडीआर टीबी होने पर सामान्य टीबी की कई दवाएं एक साथ प्रतिरोधी हो जाती हैं। टीबी की दवाओं का सही से कोर्स नहीं करने एवं बिना चिकित्सक की सलाह पर टीबी की दवाएं खाने से ही सामान्यता एमडीआर-टीबी होने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन, उचित इलाज व दवाओं के सेवन से जिले के कई मरीज टीबी चैंपियन बन चुके हैं। भोजपुर जिले में टीबी रोगियों के लिए चलाई जा रही इस योजना के तहत 47 मरीजों का इलाज चल रहा है।