बक्सर | जिले में कालाजार उन्मूलन को लेकर सिंथेटिक पैराथायराइड (एसपी)पाउडर का छिड़काव किया जा रहा है। साथ ही, लोगों को कालाजार के प्रति जागरूक करने के लिए जनप्रतिनिधियों की सहायता भी ली जा रही है। ताकि, लोगों को कालाजार रोग के प्रति जागरूक करते हुए, उन्हें बीमारी के लक्षण और दुर्गामी पारिणामों से अवगत भी कराया जा रहा है। लोगों को बताया जा रहा है कि कालाजार से उबरने के बाद भी मरीज के शरीर पर त्वचा सम्बन्धी लीश्मेनियेसिस रोग होने की संभावना रहती है। इसे त्वचा का कालाजार (पीकेडीएल) भी कहा जाता है।
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया, पीकेडीएल का इलाज पूर्ण रूप से किया जा सकता है। इसके लिए लगातार 12 सप्ताह तक दवा का सेवन करना पड़ता है। साथ ही, इलाज के बाद मरीज़ को 4000 रुपये का आर्थिक अनुदान भी सरकार द्वारा दिया जाता है।
मरीज के शरीर पर चकत्ते निकलने लगते हैं
डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया, कई मामलों में यह भी देखा जाता है कि कालाजार से उबरने के बाद भी मरीजों में कालाजार के लक्षण फिर से दिखाई देने लगते हैं। इलाज के क्रम में तो वे ठीक हो जाते हैं। उसके बाद उनके शरीर पर चकत्ते निकलने लगते हैं और नाक पर गांठ निकल आती है। जो बढ़ते भी रहते हैं। ऐसे मरीज़ में मैकुलर तथा नोड्युलर दोनों तरह के पीकेडीएल के लक्षण मौजूद हैं। हालांकि, अब तक जिले में किसी भी मरीज में ऐसे लक्षण देखने को नहीं मिले हैं, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी होनी जरूरी है। ताकि, वो इस बीमारी की गंभीरता को समझे और उसके अनुरूप अपना इलाज कराएं।
मरीजों की खोज के लिए चलाए जाते हैं अभियान
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण सलाहकार राजीव कुमार ने बताया, पीकेडीएल के मरीजों की खोज के लिए समय समय पर अभियान चलाए जाते हैं। इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं को निर्देशित किया जाता है कि यदि किसी परिवार में कोई 15 दिनों से अधिक समय से बुखार से पीड़ित है या शरीर में सिभुली जैसा दाग-धब्बा हो तो उसकी रिपोर्ट रजिस्टर में दर्ज निश्चित रूप दर्ज करें। दो सप्ताह से जिस व्यक्ति को बुखार लग रहा है, उसे आशा स्वास्थ्य केंद्र पर जांच के लिए भेजती है। जांच के बाद अगर कालाजार रोग का लक्षण मिलता है, तो सरकार की तरफ़ से मरीज को निःशुल्क दवा दी जायेगी।
कालाजार का असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है
कालाजार के लक्षणों की पहचान होना बहुत जरूरी है। कालाजार एक वेक्टर जनित रोग और संक्रमण वाली बीमारी है जो परजीवी लिस्मैनिया डोनोवानी के कारण होता है। जिसका असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है। यह परजीवी बालू मक्खी के जरिये फैलता है। इससे ग्रस्त मरीज खासकर गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। रुक-रुक कर बुखार आना, भूख कम लगना, शरीर में पीलापन और वजन घटना, तिल्ली और लीवर का आकार बढ़ना, त्वचा सूखी व पतली होना और बाल झड़ना कालाजार के मुख्य लक्षण हैं। इससे पीड़ित होने पर शरीर में तेजी से खून की कमी होने लगती है।