बक्सर : फेफड़ों के अलावा गले और पैरों में भी हो सकता है टीबी, शरीर के विभिन्न अंगों में पड़ जाते हैं गांठ

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बक्सर | अमूमन गंभीर बीमारियों के ससमय और उचित इलाज से मरीज ठीक हो जाते हैं। लेकिन, इलाज के क्रम में लापरवाही के कारण उनको और भी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। ऐसी ही स्थिति टीबी यानी की ट्यूबरक्लोसिस में भी होने की संभावना होती है। टीबी के इलाज में लापरवाही या दवाओं का कोर्स ठीक से पूरा नहीं होने की स्थिति में मरीज को गंभीर परिणामों से जूझना पड़ सकता हैं। लोगों को गलतफहमी रहती है कि टीबी का वायरस केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है। लेकिन, उन्हें मालमू होना चाहिए कि यह फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूट्रस, मुंह, लिवर , गला और किडनी आदि भी टीबी रोग से प्रभावित हो सकते हैं। फेफड़ों के अलावा टीबी मरीज के शरीर के अन्य अंगों में भी संक्रमण फैल सकता हैं, जिसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं। यह टीबी का दूसरा स्टेज होता है, जो फेफड़ों के बाद शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है।

एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी की जांच आसान नहीं

सीनियर लैब टेक्नीशियन कुमार गौरव ने बताया, टीबी के गांठों को चिकित्सीय भाषा में लिम्फ नोड ट्यूबरक्लोसिस कहते हैं। यह एक तरह का एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस की तरह यह भी माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया के कारण ही होता है। फेफड़ों की टीबी की तरह एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी की जांच करना आसान नहीं होता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी की आशंका महसूस होने पर अधिकतर डॉक्टर बायोप्सी करने की सलाह देते हैं। दरअसल, इसकी जांच एक्स-रे, सीटी स्कैन, सीबीसी इत्यादि से कराना काफी मुश्किल होता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी में बायोप्सी से ही सटीक जांच की जा सकती है। बायोप्सी के लिए गांठ से एक थोड़ा सा टिश्यू लिया जाता है। जिसके बाद इसकी जेनेक्सपर्ट और कल्चर टेस्ट होता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी की पुष्टि होने पर इसका इलाज शुरू किया जाता है।

जिले में 23 मरीज एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी से ग्रसित

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह सीडीओ डॉ. अनिल भट्‌ट ने बताया, जिले में एक जनवरी से अब तक कुल 1189 टीबी के मरीज इलाजरत हैं, जिनमें से 23 मरीज एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी से ग्रसित हैं। उन्होंने बताया कि एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी का इलाज सामान्य टीबी की तरह ही किया जाता है। इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति का इलाज करीब 6 से 8 महीनों तक चलता है। भारत के लभग सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में इसका इलाज नि:शुल्क रूप से किया जाता है। लेकिन, मरीज को इस बात का ध्यान रखना होगा कि ग्लैंड टीबी से ग्रसित होने पर आपको अधिक लक्षण नहीं दिखते हैं। वहीं, अगर शरीर में गांठे या फिर हल्के-फुल्के लक्षण दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह करें। वहीं, बिना डॉक्टर सलाह के किसी भी तरह की दवा ने लें। इससे समस्या गंभीर हो सकती है।

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