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हस्तकला के माध्यम से शिक्षा में नवाचार : ई.एम.पी.एस नगवा मैदो की प्रेरणादायक पहल

शिक्षिका प्रियंका मौर्य की सृजनात्मक सोच ने बच्चों की पढ़ाई को बनाया रुचिकर और व्यावहारिक

आजमगढ़, उत्तर प्रदेश । शिक्षा के पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़ते हुए, ई.एम.पी.एस नगवा मैदो, महाराजगंज की शिक्षिका प्रियंका मौर्य ने बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को रचनात्मक बनाने के लिए हस्तकला (हैंडिक्राफ्ट) को शिक्षण का हिस्सा बनाया है। यह प्रयास बच्चों में न केवल सीखने की रुचि बढ़ा रहा है, बल्कि उनकी कल्पनाशक्ति, एकाग्रता और व्यवहारिक समझ को भी विकसित कर रहा है।

हस्तकला से सीखने में रुचि और गहराई

प्रियंका मौर्य का मानना है कि जब बच्चे खुद चीजों को बनाते हैं, छूते हैं और उनका प्रदर्शन करते हैं, तो वे विषयों को ज्यादा गहराई से समझते हैं। यह प्रक्रिया उन्हें केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उन्हें अनुभवात्मक ज्ञान भी प्रदान करती है।

आत्मविश्वास और संप्रेषण क्षमता में वृद्धि

हस्तकला गतिविधियों के दौरान बच्चे जब अपनी बनाई वस्तुएं कक्षा या विद्यालय में प्रस्तुत करते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। वे अपने विचारों को व्यक्त करना सीखते हैं, जो कि उनके संप्रेषण कौशल को निखारता है। इस प्रक्रिया में वे आलोचना को सहन करना और सुधार के लिए तैयार रहना भी सीखते हैं।

टीमवर्क और सहयोग की भावना का विकास

समूह में मिलकर हस्तकला की परियोजनाएं करने से बच्चों में टीमवर्क और सहयोग की भावना मजबूत होती है। वे एक-दूसरे की मदद करना, विचार साझा करना और मिलकर कार्य को पूरा करना सीखते हैं, जो उनके सामाजिक और नैतिक विकास में सहायक होता है।

शैक्षिक विषयों को व्यावहारिक रूप देना

प्रियंका मौर्य ने गणित, विज्ञान और पर्यावरण अध्ययन जैसे विषयों को हस्तकला के माध्यम से रोचक बनाने की कोशिश की है। उदाहरण के तौर पर, ज्यामितीय आकारों को रंगीन कागज से बनवाकर बच्चों को आकारों की पहचान कराई गई, और पौधों की संरचना को चार्ट और मॉडल के माध्यम से समझाया गया।

समाज और परंपरा से जोड़ने का प्रयास

हस्तकला केवल रचनात्मकता ही नहीं सिखाती, बल्कि बच्चों को उनकी संस्कृति और परंपराओं से भी जोड़ती है। स्थानीय कला और शिल्प को शिक्षा से जोड़कर प्रियंका मौर्य बच्चों में सांस्कृतिक चेतना विकसित कर रही हैं।

ई.एम.पी.एस नगवा मैदो की यह पहल एक प्रेरणा स्रोत बन रही है, जो यह साबित करती है कि शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि अनुभव, रचनात्मकता और भागीदारी के माध्यम से भी दी जा सकती है। शिक्षिका प्रियंका मौर्य की यह अभिनव सोच न केवल बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रही है, बल्कि भविष्य के समर्थ नागरिक भी तैयार कर रही है।

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