साहित्यिक संस्था धर्मपुर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिषद धमदाहा भी कार्यालय राय साहित्य सेवा आश्रम में हर्षोल्लास के साथ मनी महान लेखक फणीश्वर नाथ की जयंती
रेणु स्मृति सह काव्यपाठ कार्यक्रम समारोह में कवि राय के दो शब्द
पूर्णिया (धमदाहा). सोमवार को बहुचर्चित उपन्यास मैला आंचल एवं पारिवारिक फिल्म तीसरी कसम के महान लेखक फणीश्वर नाथ की जयंती देश-विदेशों में मनाई जा रही है. साथ ही हमारी साहित्यिक संस्था धर्मपुर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिषद धमदाहा भी कार्यालय राय साहित्य सेवा आश्रम में हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है.
रेणु स्मृति सह काव्यगोष्ठी कार्यक्रम समारोह को प्रमुखता से सफल बनाने वाले आप अध्यक्ष विपीन कुमार भारती, कार्यक्रम अध्यक्ष सत्यम राय, मुख्य अतिथि ललितेश कुमार, कवि कामेश्वर मंडल, कवयित्री जुली कुमारी जुली, संपर्क प्रतिनिधि दिलीप कुमार, (समदन, नीगुण, होली, सोहर आदि) के प्रसिद्ध गायक योगेन्द्र राय, जनार्दन मेहता एवं विनय भारती को मैं संस्थापक सह कवि आकाशवाणी केंद्र पूर्णिया हार्दिक अभिनन्दन करता हूं साथ ही भारत वंदन करता हूं.
अधिक खुशी की बात यह है कि किशोर वसंत राज की बहार में आज लेखक रेणु जयंती का जलवा और चार चांद लगा रखा है. लेखक रेणुजी का जन्म 4 मार्च 1931 को अररिया जिला स्थित औराही हिंगना नामक गांव में हुआ था. उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद सन 1942 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख सेनानी के रूप में उभरा. पुनः उन्होंने सन् 1950 में नेपाली सम्राट की तानाशाही के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति लाकर उसे धूल चटाई और नेपाली जनता को अमन चैन दिलाने का काम किया.
उन्होंने उक्त क्रांतिकालीन प्राप्त पद्म श्री उपाधि भारत सरकार को वापस कर दी. दुखद 11 अप्रैल 1977 को उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई. वे हिंदी कथाकारों में से एक थे. जिनकी रचनाएं हमारे लिए ज्ञानवर्धक के रूप में ठहरी. जिन्हें हमारी भावी पीढ़ियां भी आत्मसात कर अपने जीवन को बदलने की कोशिश करेंगी. उन्होंने हिन्दी कथा साहित्य के अलावा संस्मरण रेखा चित्र, रिपोर्ताज आदि विधाओं में लेखन का काम किया. लेकिन उनका आंचलिक उपन्यास मैला आंचल ने प्रथमतः अन्तर्राष्ट्रीय फलक तक उनकी उच्च प्रतिभा का प्रसार किया.
अब उनकी एक आंचलिक कहानी लालपान की बेगम, जिसमें ग्राम्य जीवन से प्राप्त सुख-दुख की बातें परोसी गई हैं. प्रथम नायक के रूप में 7-8 वर्षीय बिरजू की मां जिसमें किसी रानी की रौनक समाहित है तथा वह संपन्नता के बल गुस्सेल दिखती है. वह अपने पति के आश्वासन पर परिवार समेत बैलगाड़ी से बलरामपुर का नाच देखने की महत्वाकांक्षा रखती है. पर उसका पति बैलगाड़ी की जुगत में कोयरी टोला जाता है. पर निराशा के साथ घर वापस आता है, पुनः वह मालदहिया जाकर बैलगाड़ी ले घर लौटता है.
देखक्त इंतजार बाद उसकी पत्नी शकरकन्द्रकी मीठी रोटी पकाने लगती है। फिर वह पति के जल्द न आने पर क्रोध की ज्वाला में आ पति पर का ठीकरा बेटा बिरजू पर फोड़ती है. शकरकन्द मांगे जाने पर वह बिरजू को तमाचे की रसीद कर देती है. उसी क्रम में मंगनी फुआ अकस्मात आ धमकती है और पूछ बैठती है कि क्या वह नाच देखने नहीं जाएगी. इसी पर बिरुजू की मां उसे दिलतोड बात कह बैठती है. क्रमशः वह अपने पति के बदले बेटा बिरजू और बिटिया चंपिया पर गुस्सा उतारती रही.
अत में अपने दोनों बच्चों को आंखें दिखाती हुई बिन खाएं पीए सो जाने की नसीहत देती है और अपने पति को कोसने लगती है. इसी बीच वह पति के आने पर उसे गड़ी खोटी कह बैठती है. गुस्सा उतारती रही. पति ने देर से आने की सारी राम कहानी सुनाई तो वह ठंडा गई. तदोपरांत पति के कहने पर वह नाच देखते जाने की तैयारी में लग गई.
विरोधी बहुओं को भी साथ ले गाड़ी पर बैठी. पूर्णिमा की रात ठहरी. बिरजू की मां नवेली दुल्हन -सी दिख रही थी. आपस में हंसी-ठिठोली चल रही थी. उसी क्रम में जेगी की पतोहू ने चंपिया कान में पूर्व की भांति बातें दोहराई कि बिरजू की मां बेगम है लाल पान की बेगम. बिरजू की मां की अन्य आकांक्षा नहीं रह गई थी. वह झपकी ले रहीं थी.