डुमरांव. समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत लाकर निवंधन की मांग करना गलत है. भारतीय संस्कृति के खिलाफ है, उक्त बातें वरिष्ठ महिला नेत्री समाजसेविका ओम ज्योति भगत ने कही. उन्होंने कहां कि समलैंगिक विवाह भारतीय व्यवस्था के विरुद्ध है. इसे कानूनी मान्यता नही दिया जाना चाहिए. यह सामाजिक मान्यताओं और पारिवारिक व्यवस्था के खिलाफ होगा. भारत में परिवार कि अवधारणा पति-पत्नी और उन दोनों की संतानें है, समलैंगिक विवाह इस सामाजिक धारणा के खिलाफ है.
समलैंगिक व्यस्कों के बीच सहमति से बनें शारीरिक संबंध को अपराध न मानना और उनकी शादी को कानूनी दर्जा देना दो अलग-अलग चीजें है, समलैंगिकता शादी को मौलिक अधिकार बताना गलत है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालो में कपल सुप्रीयो चक्रवर्ती और अभय डांग, पार्थ फिरोज, मेहरोत्रा और उदय राज आनंद के अलावा कई लोग शामिल है. विवाह कानून और अलग-अलग धर्मों की परंपरा समलैंगिक विवाह को स्वीकार नहीं करती है.
सरकार द्वारा बनाए गए कानून एक पुरुष को पति और महिला को एक पत्नी मानकर बनाया गया है. समलैंगिक विवाह की मान्यता मिलने से दहेज, घरेलू हिंसा कानून, तलाक, गुजारा भत्ता, दहेज हत्या जैसी तमाम कानून प्रभावित होगा और आदिकाल से चली आ रही भारतीय संस्कृति व परंपरा पर कुठारा घात होगा. आदि काल से विवाह को पुरुष और महिला के मध्य विवाह की मान्यता दी है, विवाह को विभिन्न नियमों, अधिनियमों, लेखों एवं लिपियों में परिभाषित किया गया है.
सभी धर्मो में दो विपरीत लिंग के बीच ही विवाह का उल्लेख है. इसी आधार पर भारत का समाज विकसित हुआ है, पाश्चात्य देशों ने भी दो पक्षों के मध्य अनुबंध या सहमति की मान्यता नही दी है. 26 अप्रैल को मातृ शक्तियों द्वारा महामहिम राष्ट्रपति, महामहिम राज्यपाल एवं मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के नाम प्रेषित ज्ञापन देश के सभी जिलाधिकारी एवं जिला एवं सत्र न्यायाधीश को दिया जाएगा.