संस्कृत, संस्कृति और संस्कार को बचाने के लिए सभी को आगे आना चाहिए : विवेक भूषण

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डुमरांव. नंदन गांव में श्री लक्ष्मी नारायण सह हनुमत प्राण-प्रतिष्ठा यज्ञ के पांचवें दिन प्रवचन में विवेक भूषण जी महाराज ने कहां कि भगवान राम की पत्नी सीता का हरण रावण ने किया, तो सीता जी विलाप करती है. सीता के विलाप सुनि भारी, भए चराचर जीव दुखारी. सीता के विलाप को सभी सुन रहें हैं और देख रहे हैं.

मगर उनकी रक्षा के लिए कोई आगे नहीं आया. तब गिद्धराज जटायु ने सीता के विलाप को सुना और रावण के पास आए और बोले अरे दुष्ट रावण तुम्हें लज्जा नहीं आती की एक अबला को अकेले पाकर हरण करके ले जा रहा है. वास्तव में सीता के शरीर रूप से एक नारी ही नहीं है.

सीता हमारी संस्कृति है और रावण हमारे देश के संस्कृति का हरण कर रहा था, तो अपनी संस्कृति के रक्षा के लिए हमारे देश का एक पक्षी युद्ध ठान देता है. यह वह भारत देश है, जहां का पक्षी भी संस्कृति के रक्षा के लिए अपने प्राण की आहुति देना जानता है. मगर दुख की बात है कि आज हम अपने सांस्कृति को भुलाए जा रहे हैं. इसलिए हमारा संस्कार भी बिगड़ता जा रहा है. हमें अपने संस्कृत, संस्कृति और संस्कार को बचाने के लिए आगे आना चाहिए.

क्योंकि यह गंगा, गौ और गायत्री का देश है. जब हम अपने संस्कृति और संस्कार की रक्षा करेंगे, तभी मानव कहलाने योग्य हैं. अन्यथा हम पशु से भी गए हो जाएंगे. गौ हत्या पर मस्तराम बाबा के प्रिय शिष्य विवेक भूषण जी महाराज ने कहां हमारे देश में जब तक गौ हत्या बंद नहीं होगी. तब तक यह देश उन्नति नहीं कर पाएगा. क्योंकि गौ में 33 कोटि देवताओं का वास होता है.

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