
भूमिका : गरीबी में पलती उम्मीदें
पूर्णिया। बिहार के एक छोटे से गांव पिपरा की ज़मीन पर कई ऐसे मासूम बच्चे हैं जो हर रोज़ जिंदगी की जंग लड़ते हैं। घर की छत टपकती है, पेट की भूख दबती है, लेकिन शिक्षा के लिए आंखों में चमक और दिल में उम्मीद बनी रहती है। ऐसे ही दो बच्चों की कहानी है — सुहानी और सनातन की, और उनके जीवन में एक उम्मीद की किरण बनकर आईं शिक्षिका लक्ष्मी कुमारी।
सुहानी : ईंट भट्टे से सपनों की उड़ान
सुहानी की मां ईंट भट्टे पर काम करती हैं। गरीबी इतनी कि दो वक़्त की रोटी भी मुश्किल से जुटती है। एक दिन भट्टे के पास खेलते हुए सुहानी का पूरा पैर माटी में जल गया। दर्द से कराहती बच्ची को देखकर गांव वालों की आंखें नम हो गईं। उस घटना ने लक्ष्मी मैम का दिल भी तोड़ दिया।
फिर भी सुहानी ने हार नहीं मानी। वह स्कूल नहीं जा सकती थी, पर स्कूल की ओर जाती मैम को देखने की ख्वाहिश उसे आंगन में ले आती। वह मां से कहती, “मां मुझे आंगन में सुला दो, मैम को स्कूल जाते देख लूंगी।” यह शब्द किसी पत्थर दिल को भी पिघला सकते हैं।
संघर्ष में साथी : सनातन की व्यथा
सनातन भी एक ग़रीब बच्चा है। उसका घर भी टूटी झोपड़ी से ज्यादा कुछ नहीं। सुविधाएं तो दूर की बात, दो जोड़ी कपड़े भी मुश्किल से हैं। लेकिन इनमें जो सीखने का जज़्बा है, वह अभूतपूर्व है। ये बच्चे दिखाते हैं कि हालात चाहे जैसे भी हों, सच्चे मन से की गई कोशिशें कभी व्यर्थ नहीं जातीं।
एक शिक्षिका की ममता : लक्ष्मी कुमारी की कहानी
लक्ष्मी कुमारी, प्राथमिक विद्यालय उचित ग्राम पिपरा की शिक्षिका, न केवल शिक्षा देती हैं, बल्कि बच्चों की जिंदगी में मां जैसी ममता भी भरती हैं। एक दिन जब वह विद्यालय जा रही थीं और सुहानी से मिलने की योजना थी, तभी सुहानी खुद घायल अवस्था में उनके पास दौड़कर आई और गले लग गई। वह पल इतना भावुक था कि दोनों रोने लगे।
लक्ष्मी मैम ने कहा, “मेरी प्यारी बाबू सुभाशीष, मैं आपसे हर दिन मिलने आऊंगी। आपको जो चाहिए, मैं दूंगी।” सुहानी का जवाब था — “मुझे तो बस आपका प्यार चाहिए, मुझे आपके पास रहना है।” लेकिन एक टीचर के पास खुद का घर नहीं, वह उसे अपने पास नहीं रख सकती।
उम्मीद का संदेश : प्यार और शिक्षा से बदलेगा भविष्य
यह कहानी केवल सुहानी या सनातन की नहीं, बल्कि भारत के लाखों ग़रीब बच्चों की है। और यह कहानी यह भी बताती है कि एक समर्पित शिक्षक किस तरह इन बच्चों की ज़िंदगी में रोशनी ला सकता है। लक्ष्मी कुमारी जैसी शिक्षिकाएं ही समाज की असली रीढ़ हैं, जो शिक्षा के साथ-साथ प्रेम और मानवीय संवेदना भी देती हैं।
दुआओं में बसी शिक्षा की लौ
शब्द कम पड़ जाते हैं जब ममता और संघर्ष की बात होती है। लक्ष्मी मैम का सुहानी के लिए प्यार और सुहानी का उनसे जुड़ाव यह बताता है कि सच्चे रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं। माता रानी से प्रार्थना है कि ऐसे बच्चों को एक सुरक्षित छत और बेहतर भविष्य मिले।
लक्ष्मी कुमारी, शिक्षिका, प्राथमिक विद्यालय उचित ग्राम पिपरा, पूर्णिया (बिहार)