शास्त्र, संस्कार एवं सत्संग से जीवों का उद्धार व कल्याण होता है : जीयर स्वामी

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नावानगर : साधन संसाधन का उपयोग कैसे करना चाहिए यह हम भूल जाते है और वो साधन और संसाधन हमारे जीवन का भार बन जाता है। जब संत सत्संग और शास्त्र से हम अपना जीवन यापन करते है, तो ये साधन और संसाधन हमारे लिए उपहार बन जाता है, श्रृंगार बन जाता है और हमारे लिए वह समय का जीवन का व्यवहार बन जाता है। उक्त बातें रुपसागर गांव में चल रहें श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में प्रवचन देते हुए श्री जीयर स्वामी ने कहा। उन्होने कहां कि हर कर्म ही साधना हो जाती है आराधना हो जाती है। उपासना हो जाती है। जब हम संत,सत्संग और शास्त्र तीनों का सहारा लेते है।

इसलिए आप जीवन में जितनी भी ऊंचाई पर पहुचिए उतनी ही रफ्तार में उतने ही अनुवाद में संत संत सत्संग और शास्त्र का सहारा लेना चाहिए अगर ऐसा नहीं करते है तो आप शायद अपने स्वरूप को समझने में उदासी करते है।और इससे आपको अच्छा नहीं होगा आगे जीयर स्वामी ने कहा कि राष्ट्र का सबसे शासित कथा श्रीमदभागवत महापुराण है। शास्त्र, संस्कार एवं सत्संग से जीवों का उद्धार व कल्याण होता है।जीयर स्वामी ने कहा कि जीव अपने माता के गर्भ में संकल्प के साथ स्वीकार करता है कि धरती पर जाने के बाद सर्वशक्तिमान परमात्मा को कभी नहीं भूलेंगे।

लेकिन, इस संसारिक माया में उलझकर अपना एकरारनामा व संकल्प भूल जाता है। श्रीमद भागवत महापुराण के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्र का सबसे शासित कथा श्रीमद्भागावत पुराण है। वाल्मिकी जैसे कुख्यात अपराधी प्रवृति के प्राणी जब प्रतिष्ठित पद को प्राप्त कर सकता है तो इस संसार के हर लोग भगवत भजन व सत्संग से परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। इन्होंने कहा कि महाभारत ग्रंथ पंचम वेद है। इसका श्रवण करने से घर में होनेवाले उपद्रव शांत हो जाते हैं।

संत शिरोमणी श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत की रचना ही शांति के लिए हुई है। कई वेद पुराणों की रचना के बाद भी जब महर्षि वेदव्यास को शांति नहीं मिली तो उन्होनें जीवों के कल्याणार्थ श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की। इसलिए श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण मात्र से जीवों का कल्याण होता है। मौके पर यज्ञ समिति के मनोज सिंह, पूर्व सरपंच उमाशंकर पाण्डेय, कृष्णकांत लाल सहित ग्रामीण और आसपास के ग्रामीण उपस्थित रहे।

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