विद्यालय से जुड़ाव की अनोखी कहानी : जब बच्चों ने महसूस किया ‘हमारे लिए भी है स्कूल’

— प्रियंका मौर्य, शिक्षिका, इंग्लिश मीडियम प्राथमिक विद्यालय, नगवामैदो, महाराजगंज
महाराजगंज। विद्यालय केवल पढ़ाई का स्थान नहीं होता, यह बच्चों के लिए एक ऐसा परिवेश बन सकता है जहाँ वे अपनेपन, सुरक्षा और विकास का अनुभव करते हैं। हमारे इंग्लिश मीडियम प्राथमिक विद्यालय, नगवामैदो, महाराजगंज में भी कुछ ऐसी ही कहानी शुरू हुई।
शुरुआत में हमारे विद्यालय के बाहर कुछ बच्चे रोज़ गेट की खिड़कियों से झांकते थे। वे देखना चाहते थे कि स्कूल के भीतर क्या होता है, कैसे बच्चे पढ़ते हैं, क्या खेलते हैं। उनके चेहरे पर उत्सुकता तो थी, लेकिन कहीं एक झिझक भी थी—शायद यह जगह हमारे लिए नहीं है।
एक दिन सहज ही उनसे पूछा गया, “क्या तुम स्कूल में पढ़ना चाहोगे?” शुरू में उनके मन में संकोच था। उन्हें लगा कि शायद स्कूल सिर्फ ‘कुछ खास’ बच्चों के लिए है। लेकिन जैसे-जैसे हमने उनसे संवाद करना शुरू किया, उन्हें स्कूल की गतिविधियों में रुचि आने लगी। वे समझने लगे कि यह स्थान उनके लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण और खुला है।
धीरे-धीरे जब वे स्कूल आने लगे, तो उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखने लगी। उन्होंने महसूस किया कि स्कूल में कोई ऐसा है जो उन्हें समझता है, उनके मन की बात सुनता है। जब यह एहसास गहराया, तो वे न सिर्फ नियमित रूप से स्कूल आने लगे, बल्कि हर गतिविधि में आगे बढ़कर भाग लेने लगे।
आज वही बच्चे एक दिन भी अनुपस्थित नहीं होते। पढ़ाई हो, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो, खेल हो या कोई भी रचनात्मक गतिविधि—वे हर पहलू से जुड़े रहते हैं। उनमें जो आत्मविश्वास और अपनापन विकसित हुआ है, वह देखकर मन को अपार संतोष मिलता है।
बच्चों का यह बदलाव केवल उनके जीवन में नहीं, पूरे विद्यालय वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भर गया है। यह देखकर गर्व होता है कि हम शिक्षकों ने न केवल शिक्षा दी, बल्कि एक ऐसा माहौल भी दिया जिसमें बच्चे स्वयं को सुरक्षित, सम्मानित और समर्थ महसूस करते हैं।
इस अनुभव ने यह सिखाया कि बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए पहले उन्हें अपनेपन का एहसास कराना ज़रूरी होता है। जब वे समझते हैं कि कोई है जो उन्हें समझता है, तब वे सीखने और आगे बढ़ने के लिए खुद आगे आते हैं। यही एक शिक्षक की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है।