मक्खापुर बना हरित क्रांति का प्रतीक : शिक्षक कैलाश मौर्य की पहल ने जगाई पर्यावरण चेतना

आजमगढ़। फूलपुर ब्लॉक के अंतर्गत आने वाला मक्खापुर गांव आज एक नई पहचान बना रहा है—प्रकृति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक। इस बदलाव के केंद्र में हैं कम्पोजिट विद्यालय मक्खापुर के समर्पित शिक्षक कैलाश मौर्य, जिन्होंने न केवल बच्चों को शिक्षा दी, बल्कि उन्हें प्रकृति से जोड़ने की अनूठी मुहिम भी चलाई।
पिछले डेढ़ वर्षों से कैलाश मौर्य बच्चों के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी व्यवहारिक गतिविधियों को विद्यालय और गांव में सक्रिय रूप से चला रहे हैं। उनके प्रयासों का असर अब केवल कक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि विद्यालय की दीवारों को पार कर गांव की गलियों तक पहुंच गया है। उन्होंने बच्चों में प्रकृति के प्रति प्रेम, संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भाव विकसित करने के उद्देश्य से अनेक नवाचार किए हैं।
बच्चों को मिला प्रकृति से जुड़ाव का अवसर
शिक्षक कैलाश मौर्य ने अपनी स्वयं की नर्सरी तैयार की, जिसमें से वे बच्चों को पौधे वितरित करते हैं। यह केवल पौधे देने तक सीमित नहीं है, बल्कि बच्चों को इन्हें पालने, देखभाल करने और उनकी नियमित निगरानी की जिम्मेदारी भी दी जाती है। इस प्रक्रिया ने बच्चों में प्रकृति के प्रति अपनापन और जिम्मेदारी की भावना पैदा की है। इसके अलावा पक्षियों के लिए बर्ड हाउस बनवाना और उनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था भी इस अभियान का हिस्सा है, जिससे जैव विविधता के प्रति भी बच्चों में संवेदनशीलता बढ़ी है।
इको क्लब की पहल से हरा हुआ विद्यालय परिसर
कैलाश मौर्य के नेतृत्व में विद्यालय में ‘इको क्लब’ की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से अब तक 110 से अधिक पौधे लगाए जा चुके हैं। इनमें नीम, चितवन, बरगद, पाकड़, कदम, ढिढोर, शीशम और अशोक जैसे स्थानीय प्रजातियों के पौधे शामिल हैं। विद्यालय में चहारदीवारी न होने के बावजूद, उन्होंने खजूर की पत्तियों से ‘ट्री केयर गार्ड’ बनाकर करीब 50 पौधों को सुरक्षित किया। बच्चों द्वारा हर सप्ताह पौधों की निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की जाती है, जिससे उनमें नियमितता और वैज्ञानिक सोच का भी विकास हो रहा है।
डिजिटल तकनीक से भी जोड़ा प्रकृति से
पृथ्वी दिवस पर कैलाश मौर्य ने एक अभिनव पहल करते हुए बच्चों के साथ मिलकर पौधों पर क्यूआर कोड लगाए। इन कोड्स को मोबाइल से स्कैन कर पौधे की जानकारी प्राप्त की जा सकती है—जैसे उसकी प्रजाति, लगाए जाने की तिथि, देखभाल करने वाला छात्र आदि। यह न केवल डिजिटल साक्षरता बढ़ाने का कार्य कर रहा है, बल्कि बच्चों को पौधों की जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित भी कर रहा है।
गांव में भी दिखा सकारात्मक असर
जहां पहले गांववाले विद्यालय में लगे पौधों को नुकसान पहुंचाते थे, वहीं अब वही लोग उनकी सुरक्षा करते हैं। बच्चों के प्रयासों ने गांव के लोगों में भी पर्यावरण के प्रति सोच को बदल दिया है। अब बच्चे अपने घरों और आसपास सफाई रखने, पौधे लगाने और जल संरक्षण के उपायों पर चर्चा करते हैं। कई बच्चों ने अपने घरों के आंगन में पौधे लगाए और अपने परिवार को भी पर्यावरण के प्रति जागरूक किया है।
शिक्षा को दिया व्यवहारिक रूप, बना समाज में बदलाव का जरिया
कैलाश मौर्य और उनके इको क्लब के बच्चों का यह कार्य इस बात का उदाहरण है कि यदि शिक्षा को केवल पुस्तकों तक सीमित न रखकर व्यवहारिक गतिविधियों से जोड़ा जाए, तो बच्चे समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। उनके छोटे-छोटे प्रयासों ने मक्खापुर गांव में प्रकृति चेतना की अलख जगा दी है, जो आने वाले समय में गांव को एक हरित, स्वच्छ और जागरूक समुदाय में बदलने की नींव रख रही है।
इस अभियान में सहयोगी शिक्षकों जितेन्द्र कुमार मिश्र, अरविन्द कुमार यादव और नीलिमा यादव की भूमिका भी उल्लेखनीय रही, जिन्होंने हर कदम पर कैलाश मौर्य का साथ दिया। मक्खापुर आज प्रेरणा का केन्द्र बन गया है, जहां से हर गांव को हरित और स्वच्छ भविष्य की ओर अग्रसर होने की सीख मिल सकती है।