बड़े-बड़े महापुरुष भी गलत संगत में पड़कर दूषित हो जाते हैं : जीयर स्वामी  

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नावानगर : मनुष्य को पाप करने से बचना चाहिए। न पाप करना चाहिए, न देखना चाहिए और ना ही पाप करने वाले का सहयोग या समर्थन करना चाहिए। पापी की सहायता करना भी पाप ही है। इससे दोष लगता है। उक्त बाते नावानगर प्रखंड अंतर्गत रूपसागर गांव में ग्रामीणो द्वारा आयोजित सप्ताहिक श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ को संबोधित करते हुए कही। प्रवचन करते हुए श्री जीयर स्वामी जी ने कहां कि बड़े-बड़े महापुरुष भी गलत संगत में पड़कर दूषित हो जाते हैं। भीष्म पितामह जैसे महापुरुष भी दुष्ट दुर्योधन की संगत में आने व उसका अन्न खाने के चलते दूषित हो चुके थे। जिसके कारण उनकों कष्ट झेलना पड़ा। पराक्रमी महापुरुष का भी मन दुष्ट व्यक्ति के साथ रहने से दूषित हो जाता है। अपने फायदे के लिए किसी दूसरे को कष्ट नहीं देना चाहिए।

स्वामी जी ने कहा कि इंद्रियों को जीतने का प्रयास करना चाहिए। भोजन शुद्ध होना चाहिए। भोजन शुद्ध है तभी मन व विचार शुद्ध हो सकता है। भोजन के साथ व्यवहार भी शुद्ध होनी चाहिए। धर्म का विनाश कभी नहीं होता। बुरी आदत सुधार लो बस हो गया भजन। मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन। अगर हम अपनी गलत आदत को सुधार लें तो प्रभु का भजन हो गया। यह नहीं की भजन करते रहें और बुरा कर्म करते रहें। भजन का मतलब है कि पहले गलत मार्गों को छोड़े। कहा कि पूरे सावन बम भोले-बम भोले कहते रहें, नवरात्रि में जय माता दी-जय माता दी बोलते रहें और फिर गलत मार्ग पर चलते रहें तो इससे कोई फायदा नहीं होने वाला।

उन्होंने कहा कि जीवात्मा व परमात्मा में कोई दोष नहीं है। जिस प्रकार सोना से बना आभूषण सोना ही कहा जाता है। उसी तरह से जीवात्मा परमात्मा के अंश से ही प्रकट हुआ है। जिस तरह बिना मिलावट के आभूषण ठीक नहीं होता है, उसी तरह से जीवात्मा में प्रकृति, माया समेत परमात्मा के अन्य तत्वों का मिलावट कर दिया जाता है। जब तक परमात्मा इस जीवात्मा में मौजूद रहते हैं तभी तक पीड़ा, परेशानी के बाद भी जीवात्मा से कोई तत्व बाहर नहीं निकलता है। लेकिन विषय की सामग्री को अकेले जीवात्मा ग्रहण करता है, तो उस दोष का फल जीवात्मा को ही अकेले चखना पड़ता है। स्वामी जी ने कहा कि भले ही किसी समस्या के समाधान की प्रक्रिया संत महात्माओं के द्वारा बताई जाती है। लेकिन समाधान हमारे अंदर ही है।

उन्होंने कहा कि अयोध्या, मथुरा, वृंदावन में समाधान की प्रक्रिया ही मिलेगी। परन्तु समाधान अपने में ही मिलेगा। श्री स्वामी जी ने नव ब्रह्मा के अवतार की बखान करते गृहस्थ और संत को समझाते गृहणी को भी परिभाषित किया। स्वामी जी ने उत्तर भारत और दक्षिण भारत में जन्मे सीता माता एवं विष्णु चित के संदर्भ में समझाते अंत में कहा की गृहस्थ का लक्षण संत का लक्षण होता है की बात कहते सन्यासी संतान को भी परिभाषित किया और अपने अमृत वाणी से सबका रसपान कराया। मौके पर मनोज सिंह, पूर्व सरपंच उमाशंकर पाण्डेय, चुनमुन सिंह, कृष्णकांत सहाय, गांव के ग्रामीण सहित आसपास के दर्जनो गांव के ग्रामीण उपस्थित रहे।

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