प्रकृति प्रेम से निखर रहा है आजमगढ़ का देवारा क्षेत्र

डॉ. अर्चना सिंह की अनूठी पहल : बच्चों को सिखा रहीं पर्यावरण संरक्षण के मूल मंत्र
आजमगढ़। महाराजगंज ब्लॉक के देवारा क्षेत्र स्थित कंपोजिट विद्यालय देवारा तुर्कचारा में कार्यरत शिक्षिका डॉ. अर्चना सिंह ने बच्चों में प्रकृति और पर्यावरण के प्रति प्रेम जगाने की एक मिसाल कायम की है। पिछले चार वर्षों से वह न केवल किताबों के माध्यम से बल्कि व्यावहारिक गतिविधियों के जरिए भी बच्चों को जागरूक कर रही हैं। उनके प्रयासों का असर अब विद्यालय की दीवारों से निकलकर गांव की गलियों तक महसूस किया जा सकता है।
गतिविधियों के जरिए जागरूकता की अनूठी पहल
डॉ. अर्चना सिंह ने बच्चों के साथ मिलकर कई अनूठी गतिविधियों की शुरुआत की है, जिनका मकसद है बच्चों में प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भाव पैदा करना।
उनकी प्रमुख गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:
पलाश के पत्तों से दोना बनाना
प्लास्टिक के बढ़ते खतरे को देखते हुए डॉ. सिंह ने बच्चों को पलाश के पत्तों से दोना बनाने की कला सिखाई। इससे न केवल पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण हो रहा है बल्कि प्लास्टिक मुक्त समाज की दिशा में भी एक सार्थक प्रयास हो रहा है।
प्राकृतिक रंगों से होली का उत्सव
रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए बच्चों को फूलों और सब्जियों से प्राकृतिक रंग तैयार करना सिखाया गया। इससे बच्चों ने सीखा कि त्योहार भी पर्यावरण के अनुकूल तरीके से मनाए जा सकते हैं।
मिट्टी के दीयों का निर्माण
दियों को मिट्टी से बनाना सिखाकर डॉ. सिंह ने बच्चों को स्वदेशी हस्तकला से जोड़ा, साथ ही दीपावली जैसे त्योहारों को प्रकृति के नजदीक लाने का प्रयास किया।
जन्मदिन पर पौधा उपहार में
विद्यालय में बच्चों के जन्मदिन पर एक पौधा भेंट करना एक नई परंपरा बन गई है। इससे बच्चे पौधे को पालने और उसकी देखभाल करने का जिम्मा खुद उठाते हैं, और प्रकृति के साथ एक गहरा जुड़ाव महसूस करते हैं।
बर्ड हाउस बनाना और जल संरक्षण
पक्षियों के संरक्षण के लिए बर्ड हाउस बनवाना और उनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था कराना भी इस मुहिम का हिस्सा है। इसके साथ-साथ बच्चों को जल संरक्षण के उपायों की भी जानकारी दी जा रही है, जिससे वे अपने गांवों में जल बचाने के लिए दूसरों को भी प्रेरित कर सकें।
पर्यावरणीय गतिविधियों से बढ़ा बच्चों का आत्मविश्वास
डॉ. अर्चना सिंह के नेतृत्व में इको क्लब के बच्चों ने विद्यालय और उसके आसपास लगभग 50 से 60 पौधे लगाए हैं, जिनमें नीम, पाकड़, आम, अमरूद, सागौन और फाइकस के पौधे शामिल हैं। ये पौधे न सिर्फ लगाए गए बल्कि उनकी नियमित मॉनिटरिंग और देखभाल भी की जा रही है। बच्चे हर सप्ताह पौधों का निरीक्षण करते हैं और उनकी वृद्धि को लेकर रिपोर्ट तैयार करते हैं।
पृथ्वी दिवस पर क्यूआर कोड से अनोखी पहल
पृथ्वी दिवस के अवसर पर डॉ. सिंह ने बच्चों के साथ मिलकर विद्यालय परिसर में लगे पौधों पर क्यूआर कोड लगाने की अभिनव पहल की। इन क्यूआर कोड को मोबाइल से स्कैन कर पौधों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस तकनीकी पहल से बच्चों में डिजिटल जागरूकता भी बढ़ रही है और पौधों के प्रति उनकी जिम्मेदारी भी।
गांव में भी फैल रहा है पर्यावरण प्रेम
डॉ. अर्चना सिंह के प्रयास अब विद्यालय की चारदीवारी से निकलकर पूरे गांव में फैलने लगे हैं। बच्चे अपने घरों में और आस-पड़ोस में सफाई रखने, पौधे लगाने और जल संरक्षण के उपायों पर चर्चा करते हैं। कई बच्चों ने अपने घर के आंगन में पौधे लगाए हैं और घरवालों को भी पर्यावरण के प्रति जागरूक किया है।
छोटे प्रयास, बड़ा बदलाव
डॉ. अर्चना सिंह और उनके इको क्लब के बच्चों का यह प्रयास एक उदाहरण है कि यदि शिक्षा को किताबों तक सीमित न रखते हुए व्यवहारिक रूप दिया जाए, तो बच्चे समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। उनके इन छोटे-छोटे प्रयासों ने देवारा क्षेत्र में प्राकृतिक चेतना की अलख जगा दी है, जो भविष्य में एक हरित और स्वच्छ गांव के निर्माण की मजबूत नींव रख रही है।
