दैनिक जीवन से जुड़ी शिक्षा की मिसाल : कुकुरजरी के विद्यालय में लंबाई मापन पर आधारित कार्यशाला

शिक्षक सोहराब आलम की अनोखी पहल से बच्चों में बढ़ी पढ़ाई में रुचि
पूर्वी चंपारण, बंजरिया। उत्क्रमित हाई स्कूल कुकुरजरी में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका विषय था “लंबाई मापन – एक दैनिक जीवन से जुड़ा अनुभव”। इस कार्यशाला का संचालन विद्यालय के समर्पित शिक्षक श्री सोहराब आलम द्वारा किया गया। इस अभिनव पहल का उद्देश्य बच्चों को गणित जैसे विषय को रोचक और जीवनोपयोगी बनाकर पढ़ाई में उनकी रुचि बढ़ाना था।
ज्ञान को जीवन से जोड़ने का प्रयास
शिक्षक सोहराब आलम ने कार्यशाला की शुरुआत करते हुए कहा, “हमारे द्वारा पढ़ाया गया ज्ञान तब तक सार्थक नहीं होता जब तक उसे जीवन के विभिन्न पहलुओं से न जोड़ा जाए।” उन्होंने बच्चों को बताया कि मापन जैसे विषय केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये रोजमर्रा के जीवन में हर कदम पर उपयोगी साबित होते हैं — जैसे कपड़े की लंबाई नापना, घर की दीवारों की ऊंचाई जानना या किसी जगह की दूरी मापना।
कार्यशाला में गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा
इस कार्यशाला में बच्चों को समूहों में बांटकर विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में शामिल किया गया। कुछ बच्चों को दीवारों की लंबाई मापने को कहा गया, तो कुछ ने रजाई, दरी, स्कूल के मैदान आदि की माप की। इस दौरान इंचटेप, फीता और मीटर रॉड जैसे माप उपकरणों का प्रयोग करके बच्चों ने प्रत्यक्ष रूप से सीखा कि गणित का उपयोग कितना व्यावहारिक और उपयोगी हो सकता है।
रटंत पढ़ाई से हटकर अनुभव आधारित शिक्षा
सोहराब आलम ने जोर देकर कहा कि “सिर्फ किताब देखकर पढ़ना, लिखना और याद करना बच्चों को उबाता है। वे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं। अगर हम हर विषय को दैनिक जीवन से जोड़ें, तो बच्चों की जिज्ञासा बढ़ती है और वे सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “पढ़ाई का अर्थ केवल किताबी ज्ञान नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य बच्चे का सर्वांगीण विकास होना चाहिए।”
बच्चों और शिक्षकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया
कार्यशाला के अंत में बच्चों ने उत्साहपूर्वक अपनी सीख साझा की। एक छात्रा ने कहा, “पहली बार समझ आया कि मीटर और सेंटीमीटर का असली उपयोग क्या है। अब गणित से डर नहीं लगता।” वहीं, विद्यालय के अन्य शिक्षकगणों ने भी इस प्रकार की गतिविधियों को नियमित रूप से आयोजित करने की आवश्यकता जताई।
उत्क्रमित हाई स्कूल कुकुरजरी में आयोजित यह कार्यशाला एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे शिक्षण को रोचक, व्यावहारिक और जीवनोपयोगी बनाया जा सकता है। शिक्षक सोहराब आलम की यह पहल बताती है कि यदि शिक्षा को जीवन से जोड़ा जाए, तो न केवल बच्चे उसे बेहतर समझते हैं, बल्कि उसका स्थायी प्रभाव उनके व्यक्तित्व विकास पर भी पड़ता है। ऐसी कार्यशालाएं शिक्षा के प्रति बच्चों के दृष्टिकोण को बदलने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।