डुमरांव. भारत सरकार के निर्देशन में सांस्कृतिक विभाग सीसीआरटी टीम के सदस्यों ने रविवार को अनुमंडल के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र और शहरी क्षेत्रों का दौरा किया. इस दौरे में सांस्कृतिक टीम के सदस्यों ने स्थानीय लोगों, कलाप्रेमी, जनप्रतिनिधि, चिकित्सक, वकील, व्यवसाय इत्यादि माध्यमों से बात करते हुए भारत की आजादी में स्थानीय इतिहास को खंगालने, टटोलने का विस्तृत प्रयास किया.
भारत के अमृत महोत्सव कार्यक्रम अंतर्गत ऐसे इतिहास की तलाश विगत महीना, माह से जारी है. इसके अंतर्गत शिक्षा विभाग, राज्य शिक्षा प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान, सांस्कृतिक विभाग के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधि का भी सहयोग ऐसे इतिहास लेखक को प्राप्त हो रहा है. अनुमंडल डुमराव के शहरी और ग्रामीण परिवेश में गुमनाम सितारों की तलाश जारी है. साधनसेवी शिक्षक डॉ मनीष कुमार शशि ने शहर के रामदास सोनार और रामदास लोहार से जुड़ी हुई बातों को जानने का प्रयास किया.
उनके परिजनों ने बताया कि यह लोग क्रांतिकारी विचार के साथ अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए अनवरत शहर में बैठकों का आयोजन करते थे, इस बात की भनक अंग्रेजों तक भी थी, जिसके कारण वे लोग अंग्रेजी सरकार की आंखों में खटक रहे थे. गांधीजी और देश के स्वतंत्रता के अग्रदूत लोगों के आवाहन पर डुमरांव में भी यह लोग सरकारी भवन पर राष्ट्र ध्वज को फहराने का प्रयास कर रहे थे, जो बातें अंग्रेजी सेना को अच्छी नहीं लग रही थी. यही कारण है कि जब शाम को 4 बजे के आस पास यह लोग पुराना थाना परिसर के आसपास इकट्ठे होने लगे तो वहां की फौज ने इन्हें हटने के लिए कहां, देशभक्ति का जुनून सवार होने के कारण वहां से हटना नहीं चाहते थे.
परिवार आर्थिक स्थिति में कमजोर था, इसके बावजूद देश को आजाद कराने के लिए यह लोग शाम 5 बजे के आस पास अंग्रेजी सेना के गोली के शिकार हो गए. 16 अगस्त 1942 को यह दुखद घटना हुई. रामदास सोनार के पुत्र बाद में राउरकेला चले गए थे, उनके कुछ संबंधी आज भी यहां रहते हैं. रामदास सोनार युवावस्था में अंग्रेजी सेना के गोली के शिकार हो गए, एक साथ चार लोगों को मौत के घाट उतार के देख शहर में आंदोलन की ज्वाला फूटी. रामदास लोहार शादी भी नहीं कर पाए थे, उनके परिजन शादी की बात कर रहे थे, इसी दौरान वह आंदोलन में मृत्यु को प्राप्त कर देश पर निछावर हो गए.
शहीद कपिल मुनि और गोपाल जी कमकर का इतिहास भी पिछले दिनों लिखा गया था. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह धरती आंदोलन की धरती रही है, कम पढ़े लिखें लोगों के कारण यहां का इतिहास भारत के मानस पटल पर नहीं जा सका है. बक्सर जिला अंतर्गत अनुमंडल में ऐसे 21 लोगो को गुमनाम ऐतिहासिक व्यक्तित्व को रूप में चिन्हित किया गया है.