कम उम्र में हार्ट अटैक से मौत सोचनीय : डा हरि शंकर चौबे

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बक्सर : हमारे ऋषि महर्षि कहते हैं यदि शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु बनाना है तो भोजन, नींद, आहार विहार, ऋतूर्चया, दिनर्चया और ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। यह शरीर के स्तंभ होते हैं और इनका पालन नहीं करने से शरीर में घातक रोगों की होने की संभावना रहती है। अब बुड्ढों की बात छोड़िए युवक युवतियों हदय रोगो की चपेट में आ चुके हैं और मौतें भी रोज हो रही है। हदय रोग के होने के बहुत सारे कारण हैं। देश के युवाओं को पहली अव्यवस्थित जीवन शैली के कारण आज के युवा कम उम्र में ही हार्ट अटैक के शिकार बन रहे हैं।

सबसे पहले आवश्यकता से अधिक तनाव लेना, खानपान के गलत तरीके, जिससे चयापचय की विकृति उत्पन्न होती है, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर देर रात तक काम करना, धूम्रपान, तंबाकू, मद्यपान, फास्ट फूड, नमक जैसी तीक्ष्ण वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक सेवन करना, पर्यावरण प्रदूषण, वनस्पति तेल, डालडा यह हदय रोग को दुषित करने का मुख्य स्रोत हैं,उन से बचे, रिफाइन जैसे तेलों का निषेध कर सरसों तेल या तिल का तेल का प्रयोग करें। हृदय रोग के प्रमुख कारण आज की जिवनशैली और खानपान है।

आयुर्वेद में हृदय रोगो के कारण और चिकित्सा आदि में बहुत ही गंभीरता से विचार किया गया है। मुख्य रूप से वे सभी कारण हृदय रोग उत्पन्न करते हैं जिनसे रस धातु दूषित होती है। जिसके फलस्वरूप ओजक्षय होता है और जिन कारणों से शरीर के रक्तवहस्त्रोततस दुषित हो जातें हैं। जैसे अत्यंत गरिष्ठ भोजन, अत्यंत शीतल पदार्थ, अति चिकनाई युक्त पदार्थ, अधिक मात्रा में भोजन, करना। यह सब स्रोत को दूषित कर देते हैं। जिससे हृदय रोग उत्पन्न होने की संभावना बन जाती है।

ईर्ष्या, द्वेष, असंतोष,लोभ, काम, क्रोध, मद, यह रस धातु को दूषित कर ह्रदय रोग उत्पन्न करते हैं। जलन पैदा करने वाले खानपान, स्निग्ध द्रव पदार्थों के अधिक सेवन से, तेज धूप तथा वेगवानवायू के वेग रोकने से भी रक्तवहस्रोत दूषित हो जाते हैं और हृदय रोग उत्पन्न होता है अधिक व्यायाम, अधिक शारीरिक श्रम, अनशन, चिंता, अधिक रुखा भोजन, अल्प भोजन, और तेज धूप में रहना, शोक, चिंता, अधिक मधपान सेवन करना, रात्रि जागरण और मल का अधिक निकलना, ये सब हृदय रोग का प्रमुख कारण बन जाते हैं। इसके अलावा मधुमेह रोगी भी हृदय रोग कारण होता है।

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भारत में कम उम्र में हार्ट अटैक वाले मामले दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं यह बहुत सोचनीय है। इसके लिए योग, प्रणायाम, जप,गुरु सेवा, अच्छे लोगों की संगति करना चाहिए। जिससे तनाव दूर होता है।मन निर्मल होकर शक्तिशाली बनता है।आत्मविश्वास बढ़ता है चित्त की शांति और एकाग्रता बढ़ती है जिससे शरीर के अंतर्गत वायू संतुलित रहता है योग और जप पर तो आधुनिक विज्ञान भी मुहर लगा रहा है समय-समय पर पंचकर्म द्वारा शरीर के शोधन के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। जिससे हृदय स्वस्थ हो सके।

सुबह शाम टहलना भी बहुत फायदेमंद है। अगर सिने में दर्द चक्कर चलने में दिक्कत आने लगे तो ईसीजी, एंजियोग्राफी, ईको, आधुनिक जांचें करवा लेनी चाहिए। आयुर्वेद में बहुत सारी औषधियां है, जो की आयुर्वेदाचार्य के देखरेख में लेना चाहिए। इसमें अर्जुनारिष्ट जरमोहरा पिष्टी, अकीक पिष्टी, प्रवाल पिष्टी, रस सिंदूर, इत्यादि चिकित्सक के देख के देखरेख में लेना चाहिए।

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