कभी लाखों किसानों के सिचाईं के लिए वरदान बनी कांव नदी का अस्तित्व अब मिटने …
कभी किसानों के लिए वरदान कांव नदी, आज नाला में तब्दील, कभी नहीं बना लोकसभा व विधानसभा में मुद्दा
डुमरांव. शाहाबाद कृषि आधारित क्षेत्र है. खेत को सिंचित करने के लिए कांव नदी कभी वरदान थी. नदी में भरपूर मात्रा में पानी नहीं रहता है. लेकिन आज अतिक्रमण होने से संकीर्ण हो गई है. सरकार लाखों रूपया किसान को अनुदान पर बोरिंग लगाने के लिए राशि उपलब्ध करा रहीं है.
अगर सरकार इस क्षेत्र के लिए कांव नदी पर कार्य करें, तो फिर किसानों के चेहरें पर खुशी की लकीर देखने को मिल सकती है. क्योकि कभी यह नदीं इस क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबित हो रहीं थी. कभी लाखों किसानों के सिचाईं के लिए वरदान बनी कांव नदी का अस्तित्व अब मिटने के कगार पर पहुंच गया है.
अपनी निर्मल जल से लाखों हेक्टर भूमि को सीचने वाली कांव नदी आज एक-एक बुंद जल के लिए तरस गयी है. पूर्व काल में कैमुर पहाड़ी से निकलकर विशाल धारा के साथ सासाराम, विक्रमगंज, दावथ, नावानगर, मलियाबाग, सिकरौल, डुमरांव होते हुए नया भोजपुर के कोकिला ताल में इस नदी का पानी गिरने के बाद गंगा नदी में मिल जाती है.
इतिहासकारों की मानें तो इस नदी का अस्तित्व आदिकाल से है, कांव नदी के तट पर चेरो खरवार वंश निवास करता था. परंतु अब कांव नदी अतिक्रमण का रूप धारण करते जा रहे है. लोगों की मानें तो यह नदी काफी सम्पन्न थी. पूर्व काल में एक बार प्लेग जैसी महामारी फैली थी. जिससे बचने के लिए लोगांे ने कांव नदी के तट का सहारा लिया था.
इसके बाद लोग यही बस गये और यह जगह बस्ती के रूप में तब्दील हो गया. नदी की विषाल धारा के कारण लोगो को काफी परेषानी बाढ़ के कारण बर्बादी उठानी पड़ती थी. आम जनता की परेशानियों से निजात दिलाने के लिए डुमरांव महाराजा राम रणविजय प्रताप सिंह ने बांध का निर्माण कराया था. इसके बाद भी नदी की षक्ति में कोई अंतर नही पड़ा, तब इसे ठोरा नदी में काट कर गिराया गया.
इसके बाद भी नदी इस क्षेत्र से विमुख नही हुई. अंततः कांव नदी को सोन नदी में काट दिये जाने के बाद कांव नदी की हिम्मत ही टुट गयी. इसके बाद आस-पास निवास करने वाले लोगों के खेतों के लिए पानी मिलना मुश्किल हो गया. कांव बसने से मालुम पड़ता है कि यह नदी पहले काफी समृद्ध थी.
पानी की अधिकता के चलते ही नगर के दक्षिण दिशा में चेरों खरवार भी इसी तट पर अपनी किला बावन दुअरिया किला बनाए हुए थे. गौरतलब हो कि ब्रिटिश काल में भी इस नदी के अस्तित्व पर संकट आया था. नदी के तट का मनोरम दृष्य था, जिसे देखने उज्जैनी राजा राज राजेश्वर आया करते थे.
यहां मंदिर पूर्व बारादरी (गेस्ट हाउस) था, जो बाद में केवड़ा बाग के नाम से प्रसिद्ध हुआ. कांव नदी का तट स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ा है. देश के बड़े स्वतंत्रता सेनानीयों का सम्मेलन हुआ करता था. जिसमें महात्मा गांधी, प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, यमुना काजी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी भी शामिल हुए थे.
सुशासन सरकार द्वारा वर्ष 2008 में नदी बचाओं वर्ष के रूप में मनाया गया था. राज्य सरकार तथा जनप्रतिनिधियों द्वारा इस नदी के अस्तित्व को लेकर कोई पहल नही किया गया. कारण लोग उक्त नदी को खेत के रूप में बढ़ाते जा रहे है. खतरे में कांव नदी का अस्तित्व, एक नदी ही विलुप्ति के कगार पर, जनप्रतिनिधि और प्रशासन चुप्पी साध रखी है.
कभी हजारों हेक्टेयर को अपने जल से सींचने वाली कांव नदी का अस्तित्व अब सिमटने लगा है. कांव नदी को विकसित करने को लेकर लोकसभा में मुद्दा नहंी बन पाता है. इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधि और प्रशासन मौन रहते है. जब कल-कल करती इसकी धारा सालों भर बहती थी. न सिर्फ इससे एक बड़े भूभाग की सिंचाई होती थी.
बल्कि कई प्रजाति के वन्य प्राणियों की शरण स्थली काव नदी थी. जहां पशु पक्षियों को विचरण करते देखना आनंद विभोर करने वाला दृश्य होता था. लेकिन आज इसका अस्तित्व सिमटने से वीरानगी छायी हुई है. अब न तो यहां हिरणों के झुंड आते हैं और न ही तोता, मैना, कोयल जैसे असंख्य पक्षियों की चहचाहट. बल्कि शनैः-शनैंः यह नदी अब जमींदोज होते जा रही है.
उपेक्षा व अतिक्रमण का आलम यह है कि अनुमंडल सहित स्थानीय नगर में भी इसकी जमीन पर प्रभावशाली लोगों के द्वारा खेती की जाती है. इसी बहाने कांव नदी के जमीन को अतिक्रमण करने का प्रयास जारी है.
बता दें कि विधानसभा में कांव नदी के अतिक्रमण व जमीन बिक्री का मामला स्थानीय भाकपा माले विधायक डा. अजीत कुमार सिंह ने प्रमुखता से उठाया था, जिस पर सरकार ने संज्ञान लेते हुए नदी के संरक्षण का फैसला लिया है. इसके तहत जिस प्रखंड से कांव नदी भी गुजर रही है,
वहां के सीओ को नदी क्षेत्र का सीमांकन करने का निर्देश जारी किया है. डीएम ने इस संबंध में जिले के सभी सीओ को निर्देशित करते हुए सीमांकन के रिपोर्ट मांगी थी. लेकिन यह मामला अभी ठंडे बस्ते में पड़ा है.