औद्योगिक हब समाप्ती होने के साथ अब धीरे-धीरे रिहायशी क्षेत्र में तब्दील

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कभी औद्योगिक हब के रूप में डुमरांव की पहचान, आज युवा कर रहें दूसरे राज्यों में पलायन

डुमरांव. लोकसभा व विधानसभा चुनाव निरंतर होते रहा. लेकिन इस क्षेत्र के बेरोजगारों की समस्या को लेकर किसी जनप्रतिनिधि ने पहल नहीं किया. जिसके चलते लगातार इस क्षेत्र के लोग पलायन को विवश होते गए. अनुमंडल क्षेत्र कृषि आधारित क्षेत्र है. लेकिन सिंचाई व्यवस्था बेहतर नहीं रहने के कारण गरीब व मध्यम वर्ग के किसान के बच्चें पलायन करने को विवश है.

बता दें कि अनुमंडल मुख्यालय में किसी न किसी कारणवश लगभग सात फैक्टी बंद हो चुकी है. लेकिन किसी ने उद्योग लगाने पर पहल नहीं किया, न किसी ने लोकसभा व विधानसभा में इस मुद्दे को रखा. इसका मलाल इस क्षेत्र के लोगों को पहले भी था, और हमेशा रहेगा. अगर देखा जाय तो बक्सर लोकसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा मुदा लोगों का लगातार रोजगार को लेकर पलायन है.

डुमरांव की औद्योगिक हब के रूप में थी पहचान

बिहार का एकलौता डुमरांव का सूता मिल, देश के दूसरे लालटेन फैक्ट्री, सुप्रभात स्टील फैक्ट्री सहित आधा दर्जन छोटी बड़ी इंड्रस्टी को लेकर आजादी के बाद सूबे में डुमरांव क्षेत्र को औद्योगिक हब के रूप पहचान थी. लेकिन आज केवल इतिहास बन कर रह गई. कभी औद्योगिक हब के रूप में पहचान बना चुके डुमरांव रेलवे स्टेशन के समीप इन दिनों सन्नाटा पसरा हुआ है.

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इतिहास गवाह है सामान्य ज्ञान के किताब में डुमरांव लालटेन फैक्ट्री, सूता मिल का नाम अंकित है. अब उक्त सामान्य ज्ञान के किताब के पन्ने से डुमरांव लालटेन फैक्ट्री, आईस कोल्ड फैक्ट्री का नाम हटा देना ही मुनासीब होगी. अंततः डुमरांव सूता मिल्स बंद होने के साथ लगातार जमीनें बिक्री होते गई. वहीं सुप्रभात स्टील्स फैक्ट्री का नामोनिशान मिट चुका है.

लालटेन फैक्ट्री पूरे देश में मात्र दो ही था

राज प्रथा के जमाने में डुमरांव राज के उदार हृदय के महाराजा कमल सिंह ने सबसे पहले डुमरांव में लालटेन फैक्ट्री का नींव देश के आजादी काल वर्ष 1947 रखी. डुमरांव में निर्मित लालटेन का शिशा पूरे सूबे में ही नहीं, अपीतु उत्तर प्रदेश से लेकर दक्षिण भारत के प्रांतो में रौशनी बिखेरने का काम किया. लालटेन फैक्ट्री पूरे देश में मात्र दो ही था, एक मोदीनगर और दूसरा डुमरांव.

लेकिन समय के चक्का का रफ्तार धीरे-धीरे इस कदर कम हुआ कि डुमरांव के लालटेन की रौशनी हमेशा के लिए वर्ष 1988 में बूझ गई. दूसरा फैक्ट्री राज परिवार ने वर्ष 1954 में डुमरांव कोल्ड आईस फैक्ट्री की नींव डाली. लेकिन वर्ष 2002 में डुमरांव आईस कोल्ड फैक्ट्री भी बंद हो गई. इसी प्रकार डुमरांव में दो उद्योग के चलते एक उद्योगपति का रूझान डुमरांव में लोेहे का पाईप फैक्ट्री खोलने की ओर हुआ.

1980 में खुला था सुप्रभात स्टील्स फैक्ट्री

डुमरांव राज ने क्षेत्र में उद्योग को बढ़ावा देने की नियत से उद्योगपति बबुना जी परिवार को करीब 20 बीघा जमीन मुहैया कराया. यहां सुप्रभात स्टील्स फैक्ट्री वर्ष 1980 में खुला. उत्पादन कार्य आरम्भ हुआ. लेकिन उक्त फैक्ट्री ने महज सात साल में दम तोड़ दिया. आज फैक्ट्री विरान पड़ी हुई है. धीरे धीरे जमीन बिक रहे है. आज आवागमन करने वाले लोग अपने बच्चों को पाईप फैक्ट्री दिखलाते नजर आते है.

प्रबंधन व सरकार के बीच कानूनी दांव पेंच हो गया फैक्ट्री बंद

डुमरांव सूता मिल की नींव डुमरांव राज परिवार ने वर्ष 1968 में रखने का काम किया. सूता मिल लंबी अवधि तक तेज रफ्तार में दौड़ता रहा. लेकिन शनैः शनैः सूता मिल का रफ्तार कम होता गया. थक हार डुमरांव राज परिवार ने डुमरांव सूता मिल का कमान कलकता की पटवारी एसोसिएट को सौंप खुद को किनारे कर लिया.

सूता मिल अपने पुराने रफ्तार को पकड़ भी लिया. लेकिन समय की रफ्तार पर शनि की वक्र दृष्टि इस प्रकार पड़ी कि सूता मिल का चक्का भी बंद हो गया. प्रबंधन और सरकार के बीच व्याप्त कानूनी दांव पेंच का खामियाजा श्रमिकों को भुगतना पड़ा. लगभग छह-सात साल से फैक्ट्री बंद. सूता मिल का जमीनें बिक गई. जिससे इस मिल का अस्तित्व मिटता नजर आ रहा है.  

ग्लेज्ड टाईल्स फैक्ट्री नहीं हो सका उदघाटन

1988 में बक्सर-आरा एनएच 84 मार्ग नया भोजपुर में केन्द्र सरकार में तत्कालीन उद्योग मंत्री केके तिवारी की पहल पर सरकारी उपक्रम ग्लेज्ड टाईल्स फैक्ट्री की नींव रखी. तत्कालीन मुख्यमंत्री विंदेश्वरी दूबे ने फैक्ट्री का शिलान्यास किया. इसमें का कार्यरत मजदूर गोपाल प्रसाद बताते है कि फैक्ट्री बनकर पूरी हुई, इस फैक्ट्री में छः प्राडक्ट बनने की बात कही.

लेकिन सूबे में सत्ता परिवर्तन हो गया और नई सरकार ने फैक्ट्री में उत्पादन शुरू करने को लेकर कोई रूचि नही ली. जिससे फैक्ट्री में लगे करोड़ो रूपये की मशीन भी चोरी होने लगी. आज खंडहर में तब्दील हो गया. इसी परिसर में नया भोजपुर ओपी थाना मौजूद है.

डुमरांव के लिए दुर्भाग्य कहां जायेगा कि रेलवे स्टेशन परिसर के आस-पास का औद्योगिक हब समाप्ती होने के साथ अब धीरे-धीरे रिहायशी क्षेत्र में तब्दील होने लगा है. लोग फैक्ट्री बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार हुए है तो क्षेत्र से लोगों का पलायन भी जारी है.

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