बक्सरबिहार

मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रबंधन के साथ संस्थागत प्रसव जरूरी

गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान बेहतर सुविधा देने के लिए विभाग पूरी तरह सजग

पिछले साल जिले के सरकारी व निजी अस्पतालों में कराए गए 19,637 प्रसव

बक्सर | जिले में मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए सुरक्षित प्रसव जरूरी है। सुरक्षित प्रसव के लिए उचित स्वास्थ्य प्रबंधन जरूरी है। लेकिन, सुरक्षित प्रसव के लिए संस्थागत प्रसव को प्राथमिकता देना उससे भी अधिक जरूरी है। हालांकि, सरकार और विभाग के प्रयासों से अब प्रखंड से लेकर जिला स्तर के सरकारी अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव के लिए पूरी सुविधा उपलब्ध है।

जिसका लाभ लोग उठा रहे हैं। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के स्तर से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिनके माध्यम से लाभुक महिलाओं को न केवल नि:शुल्क सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है, बल्कि उन्हें मुफ्त में दवाएं भी दी जाती है। जिससे लोगों की जेब पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव भी कम हो जाता है।

लाभुक महिला के खाते में भेजी जाती है 1400 रुपये प्रोत्साहन राशि

सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा ने बताया कि संस्थागत प्रसव से शिशु व मातृ मृत्यु दर में कमी आती है। सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव कराने पर लाभुक महिला के खाते में 1400 रुपये प्रोत्साहन राशि भेजी जाती है। इसके अलावा सभी तरह की आवश्यक दवाइयां भी सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध कराई जाती है।

उन्होंने बताया कि गर्भवती माताओं को प्रसव पूर्व एएनसी जांच कराई जाती है। एएनसी जांच में हर तरह की जटिलता डाक्टरी परामर्श से दूर की जाती है। सरकारी संस्थानों में प्रसव के पश्चात जच्चा व बच्चा को घर छोड़ने के लिए नि:शुल्क एम्बुलेंस उपलब्ध कराया जाता है। प्रसव के तुरंत बाद परिवार नियोजन के स्थायी साधन अपनाने पर लाभुक महिला को तीन हजार रुपये प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है।

संस्थागत प्रसव के मामलों में हुई है बढ़ोत्तरी

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार जिले में संस्थागत प्रसव के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 81.6 प्रतिशत था, जो 2019-20 में बढ़ कर 89.5 प्रतिशत हो गया। पिछले वर्ष 2023-24 में जिले के सरकारी और निजी संस्थानों में 47,025 प्रसव कराने का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें से लक्ष्य के अनुरूप 19,637 प्रसव ही कराया जा सका। जिनमें फरवरी में 1841 व मार्च में 1582 प्रसव कराए गए।

वहीं, लेबर ओटी में दक्ष चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के प्रतिशत की बात करें तो 2015-16 में ये आंकड़ा 83.6 प्रतिशत था, जो 2019-20 में बढ़ कर 90.6 प्रतिशत हो गया है। वहीं, प्रसव पूर्व जांच की बात करें तो 61.5 प्रतिशत महिलाएं पहली एएनसी जांच कराती हैं और 27.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं ही चारों एएनसी की जांच करा पाती हैं। जिसको बढ़ाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविकाओं को जिम्मेदारी दी गई है।

सुरक्षित प्रसव के लिए स्वास्थ्य संस्थानों में उपलब्ध है पर्याप्त सुविधा

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया, सुरक्षित प्रसव के लिए सदर अस्पताल के अलावा पीएचसी व अनुमंडलीय अस्पताल में पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हैं। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी एएनएम और आशा अपने-अपने पोषक क्षेत्र में घर-घर जाकर लोगों को जागरूक कर करती हैं।

उन्होंने कहा कि सुरक्षित प्रसव के लिए प्रसव पूर्व जांच की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इससे गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की सही जानकारी मिलती है। एनीमिया प्रबंधन के लिए प्रसव पूर्व जांच के प्रति महिलाओं की जागरूकता ना सिर्फ एनीमिया रोकथाम के साथ सुरक्षित मातृत्व की आधारशिला भी तैयार करती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *