नावानगर : रूपसागर गाँव मे चल रहे श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ में प्रवचन के दौरान जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि धर्म सबसे सर्वोपरि है। मां को मां कहना, बहन को बहन मानना यह धर्म है। धर्म यही सिख देता है। जो धर्म को नहीं मानता वह पशु से भी बदतर है। धर्म हमें ज्ञान देता है। जीवन जीने की पद्धति के बारे में बताता है अगर हम पशु-पक्षी की बात करें तो उनका जीवन भी धर्म नहीं मानने वाले से श्रेयस्कर है। गाय दूध देती है। उसे आस्तिक भी पीता है नास्तिक भी। पशु पक्षी अपने स्वभाव के धनी हैं। सुबह जग जाते हैं।
उनका जीवन और शरीर भी मानव जीवन के कल्याण में काम आता है। पर किसी नास्तिक को देखे वह तो अपने पिता का आदर भी नही करता स्वामी जी ने बताया कि धर्म के दस लक्षण हैं। घृति(संयम), क्षमा, दम (इंद्रियों पर संयम रखने की क्षमता), सत्येयम यानी गलत वृति से धन नहीं कमाना, शौच, इंद्रियों का निग्रह, बुद्धि व विचार, सत्य एवं क्रोध। उन्होंने कहा कि धर्म दो तरह के होते हैं। एक धर्म और दूसरा परम धर्म। धर्म मर्यादा सीखाता है और परम धर्म है परमेश्वर को जानना। उन्होंने कहा कि ईश्वर और परमेश्वर में भी अंतर है। जो संसार में लौकिक हुए जैसे राम, कृष्ण आदि यह ईश्वर हैं। पर परमेश्वर तो परम सत्ता है। जो पूरे सृष्टि में विद्यमान है।
उन्होंने कहा कि परोपकार से बड़ा धर्म नहीं। अर्थात जो दूसरों की मदद करता है। भले वह पूजा न करे पर वही धार्मिक है। स्वामी जी ने शास्त्र संत और संस्कृति का होना हमारे लिए जरूरी है को अपनाने की बात कहते रावण का उदाहरण देते समझाया कि रावण शास्त्र का ज्ञाता था लेकिन पढ़ा नहीं की बात को समझाते सत्संग की महिमा पर प्रकाश डाला और कई उदाहरण देकर लोगो को अपने कथा से रसपान कराया मौके पर मनोज सिंह,पूर्व सरपंच उमाशंकर पाण्डेय,कृष्णकांत लाल,चुनमुन सिंह,निक्की सिंह सहित गाँव के ग्रामीण सहित आसपास के दर्जनों गाँव के ग्रामीण उपस्थित थे।
