नावानगर : भगवान सृष्टि का विस्तार करने में किसी का सहयोग नहीं लेते हैं, न ही उन्हें किसी की आवश्यकता पड़ती है। जिस प्रकार मकड़ी अपने मुंह के लार्वा से बड़े जाल का विस्तार कर लेती है और फिर उसे खा भी जाती है। ठीक उसी प्रकार से परमात्मा भी सृष्टि का विस्तार स्वयं ही करते हैं। उक्त बाते रूपसागर गांव में चल रहे श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ मे प्रवचन के दौरान जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा। उन्होने आगे कहां कि भगवान अलग-अलग सत्यकाम तथा सत्य संकल्प से अलग-अलग सृष्टि का विस्तार करते हैं। स्वामीजी ने कहा कि पाप-पुण्य अलग नहीं होता है।
ब्रम्हा जी के दाहिने वक्षस्थल से धर्म और पीठ से अधर्म प्रकट हुआ। जिस मंदिर में पुण्य है, वहीं पाप भी है। ब्रम्हा जी के हृदय से काम प्रकट हुआ। काम का प्रवेश पांच अंगों से होता है। जबकि, उसकी पुष्टि हृदय से होती है। कान, वाणी, आंख, जीभ और नाक द्वारा काम की उत्तेजना प्रकट होती है। दस-बीस दासियों से घिरा रहने वाला इन दिनों राज ऋषि कहा जा रहा है। जो गलत है। ऐसे लोगों को कुकर्मी होते हैं। यह अधर्म है। वह साधु-संत की वेशभूषा बनाया है तो कलियुग की कालनेमि राक्षस है। उन्होंने कहा कि ऐसे साधुओं को प्रश्रय देने से उसका परिणाम भोगना पड़ेगा।
जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि वरुण जी के श्राप के कारण ब्रम्हा जी को अपनी बेटी सरस्वती जी के प्रति काम की भावना जागृत हो गई। वे अपनी बेटी पर मोहित हो गए। वे अपकृति की भावना करने लगे। इसी के चलते उनका आदर और पूजन नहीं किया जाता है। प्रवचन शुरू होने के पहले जीयर स्वामी जी महाराज द्वारा श्रीमन नारायण का भजन व आरती किया गया। ब्रम्हा जी की स्वतंत्र मूर्ति बनाकर कहीं पूजा नहीं होती है मौके पर मनोज सिंह, पूर्व सरपंच उमाशंकर पाण्डेय, बबलू सिंह सहित रूपसागर गांव के ग्रामीण सहित आसपास के दर्जनो गांव के ग्रामीण उपस्थित थे।