नियमित टीकाकरण से बच्चों के बीमार होने की कम होती है संभावना, रहते हैं स्वस्थ
बच्चों को 12 जानलेवा बिमारियों से बचाते हैं 11 टीके
बक्सर, 08 नवंबर | शून्य से लेकर पांच साल तक के बच्चों की मृत्युदर कम करने को लेकर सरकार और स्वास्थ्य विभाग स्तर से कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण नियमित टीकाकरण कार्यक्रम है। जिसके तहत पांच साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को 16 प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए विभिन्न टीके दिए जाते हैं।
गर्भवती महिलाओं और प्रसव के बाद बच्चों के नियमित टीकाकरण से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है। जिसकी बदौलत वे जल्दी किसी भी प्रकार की बीमारी की चपेट में नहीं आते हैं। यदि बच्चा किसी बीमारी की चपेट में आ भी गया, तो वह उससे जल्द ही ठीक भी हो जाता है। बावजूद इसके जिन गर्भवती महिलाओं और बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाता तो उन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता उतनी मजबूत नहीं होती और वो किसी भी बीमारी की चपेट में जल्द ही आ जाता है।
इसके अलावा इससे उबरने में भी उसे काफी परेशानी होती है। शिशुओं को दिया जाने वाला टीका शिशुओं के शरीर में जानलेवा संबंधित बीमारियों से बचने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित और मजबूती प्रदान करते हैं। इस प्रकार कई तरह की जानलेवा बीमारियों से शिशुओं को बचने के खास टीके विकसित किये गये हैं, जिनका टीकाकरण करवाना आवश्यक है।
बीमारियों होने वाली मौत में सबसे ज्यादा संख्या पांच वर्ष तक के बच्चों की
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह डीएमओ डॉ. शैलेंद्र कुमार ने कहा कि विभिन्न बीमारियों से बच्चों की होने वाली मौत में सबसे ज्यादा संख्या शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों की होती है। जो जरूरी टीकों के अभाव में अपनी जान गवां बैठते हैं। इसकी कारण से सरकार ने बच्चों की मृत्युदर कम करने के लिए नियमित टीकाकरण अभियान शुरू किया। ताकि, शून्य से पांच साल तक के बच्चों को बीमारियों से बचाया जा सके।
नियमित टीकाकरण बच्चों को बीमारियों से बचाने में एक कवच का काम करती है। उन्होंने बताया कि महाभारत काल में भगवान सूर्य ने कर्ण को शक्तिशाली बनाने के लिए जन्म के साथ की कवच कुंडल प्रदान किया था। ठीक उसी प्रकार बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए सभी माता पिता को नियमित टीकाकरण के माध्यम से सुरक्षा कवच प्रदान करना चाहिए।
बार बार बीमार पड़ने से बच्चों आईक्यू होता है कमजोर
एसीएमओ डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया, एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। बच्चों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य आपस में इंटरलिंक्ड हैं। यदि कोई बच्चा बार बार बीमार पड़ता है तो उसका शारीरिक विकास तो बाधित होता ही है, साथ में बीमारी के कारण उसके मानसिक विकास को भी क्षति पहुंचती है।
क्योंकि बार बार बीमारी की चपेट में आने वाले बच्चे अवसाद में पड़ जाते हैं जिसके कारण उनका आईक्यू लेवल भी कम होता है। सरल भाषा में कहें तो सुस्त व कमजोर बच्चों की अपेक्षा चंचल और स्वस्थ बच्चों का मानसिक विकास ठीक से होता है। इसलिए बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए सबसे जरूरी है उनको नियमित टीकाकरण का लाभ दिलाना।
12 जानलेवा बीमारियों के लिए बच्चों को दिए जाते हैं 11 टीके
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया, शून्य से 12 महीने तक के बच्चे को टीबी, पोलियो, डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनेस, हेपेटाइटिस बी, इनफ्लुएंजा, जेई, डायरिया सहित कुल 12 जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए गर्भवती माता को एक टीका लगाने के अलावा प्रसव के बाद नवजात को कुल 11 टीके दिए जाते हैं।
उन्होंने बताया कि सरकारी अस्पताल में पड़ने वाले सभी टीके लाभुकों को नि:शुल्क दिया जाता है। जिनकी कुल कीमत 26 हज़ार के आसपास है। नियमित टीकाकरण के माध्यम से सरकार नि:शुल्क उपलब्ध करा रही है, जबकि यही टीका बाहर में 40 हज़ार के ऊपर के होते हैं।
ये हैं जरूरी टीके
जन्म होते ही – ओरल पोलियो, हेपेटाइटिस बी, बीसीजी
डेढ़ माह बाद – ओरल पोलियो-1, पेंटावेलेंट-1, एफआईपीवी-1, पीसीवी-1, रोटा-1
ढाई माह बाद – ओरल पोलियो-2, पेंटावेलेंट-2, रोटा-2
साढ़े तीन माह बाद – ओरल पोलियो-3, पेंटावेलेंट-3, एफआईपीवी-2, रोटा-3, पीसीवी-2
नौ से 12 माह में – मीजल्स-रुबेला 1, जेई 1, पीसीवी-बूस्टर, विटामिन ए
16 से 24 माह में – मीजल्स-रुबेला 2, जेई 2, बूस्टर डीपीटी, पोलियो बूस्टर, जेई 2
बच्चों के लिए ये भी हैं जरूरी
5 से 6 साल में – डीपीटी बूस्टर 2
10 साल में – टेटनेस और डिप्थीरिया
15 साल में – टेटनेस और डिप्थीरिया
गर्भवती महिला को – टेटनेस डिप्थीरिया 1 या टेटनेस/डिप्थीरिया बूस्टर 1 तथा टेटनेस और डिप्थीरिया 2